संभल हिंसा पर हम बात संविधान दिवस के मौके पर कर रहे हैं . हमेशा की तरह तथ्य सामने आरहे हैं जिसमें बताया जा रहा है कि हिंसा सुनियोजित थी , प्रशासन इस हिंसा के लिए ज़िम्मेदार है . राज्य सरकार इस हिंसा और उसमें मरने वालों के लिए ज़िम्मेदार है . अदालत और पुलिस की भूमिका पर काफी कुछ बोला जा चूका है .
500 साल पुराने मामले में 5 लोगों की जानें चली गईं . पूरे क्षेत्र का माहौल तनावपूर्ण बना दिया गया , कारोबार ठप्प, स्कूल कॉलेज बंद , और यह सब उस विचारधारा कि मंशा के मुताबिक़ हुआ जो देश में नफरत और साम्प्रदायिकता के कन्धों पर सवार होकर सरकारों में पहुंची और अब जनता के सर पर सवार है या यूँ कहें जनता खुद सवार कर लिया है .
500 साल पुराने मामले में अदालत ने 5 घंटे में किसके कहने पर यह सब कुछ करा दिया ? यह वही अदालतें हैं जिनसे इन्साफ कि आस में परिवार कि तीन पीढ़ियां ख़तम हो गईं .
क्या संभल से पहले होने वाली हिंसा पर ये सब बातें और Reports , Articles लेख नहीं पब्लिश हुए थे जो आज हो रहे हैं ? वो कोनसी घटना या हिंसा या हादसा होगा जिसके बाद देश में यह तय: होगा की अब इसके बाद ऐसा कुछ नहीं होगा .
सांप्रदायिक हिंसाओं और दंगों के लिए ज़िम्मेदारी किसकी होगी ? जनता , एजेंसीज , अदालतें या सरकारों की ?? ये सवाल तो आज भी ज्यों के त्यों हैं .और यह स्थिति उस वक़्त तक बनी रहेगी जब तक देश में कोई ईमानदार हुक्मरान नहीं आता,और वोट धुर्वीकरण की राजनीती देश से ख़त्म नहीं होती .
आज 25 नवम्बर 2024 को भारत में संविधान दिवस मनाया गया . लेकिन इस दिवस को मनाने से देश कि जनता को क्या मिला या सरकारों ने क्या प्रतिज्ञा ली यह एक सवाल है ? इसका जवाब संवैधानिक पदों पर बैठे उन सभी को देना होगा जो इसकी शपथ लेकर अपना पदभार संभालते हैं .
अफ़सोस कि बात यह है की दिन और त्यौहार …सारे मनाने के लिए हैं मगर हम मानने को कुछ तैयार नहीं हैं . जब इंसान में से मानने का जज़्बा ख़त्म हो जाता है तभी वो इब्लीस बनता है शैतान बनता है आज पूरी दुनिया में शेतनत का बोलबाला इसी लिए है की हम मानते नहीं मनवाते हैं .
न हम इश्वरिये आदेश को मानते हैं न ईश्दूत की मानते न देवताओं की मानते न ऋषियों के मानते न उस्ताद की मानते न माँ बाप की मानते और न ही हम संविधान की मानते , बस अपने मन की मानकर ज़िंदगी गुज़ारने का चलन अपना लिया है , इसी लिए दुनिया रफ़्ता रफ़्ता नर्क बनी जा रही है.
दुनिया की हर शै चमकाई जा रही है मगर दिल सियाह हो रहे है . किरदार में कांटे हैं बदबू है द्वेष है नफरत है .इसके बावजूद मसनुई चमक की दुनिया को जो लोग स्वर्ग कहते हैं कहते रहें हमारी नज़र में यह सिर्फ धोखे का सामान है .
खैर मुझे थोड़ी सी बात संभल पर इसलिए करनी है की यह मेरी मज़हबी ,अख़लाक़ी और प्रोफेशनल ज़िम्मेदारी भी है . इसलिए नहीं की वहां 5 मुस्लिम नौजवानों की मौत हो गई या 25 पुलिस वाले भी मामूली घायल हो गए .
बल्कि इसलिए की जो हालात देश के बनाये जा रहे हैं उसके परिणाम बर्बादी और तबाही की अँधेरी गुफा में बदलने जा रहे हैं . मशहूर मसल है जो बोओगे वही काटोगे …
आज देश का शासक वर्ग जिस तरह का माहौल बना रहा है वो तबाही और बर्बादी की फ़सल तैयार कर रहा है .जो लोग यह सोच रहे हैं कि अब उनका राज आएगा वो सिर्फ खुआब इ ग़फ़लत में हैं और कुछ भी नहीं .
दरअसल सत्ता और शासन की चुड़ैल अपनी औलाद और माँ बाप बहिन भाई किसी को भी नहीं छोड़ती अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए सबको कच्चा चबा जाती है .
हम तो कहते हैं मस्जिदों के नीचे मंदिरों को तलाश करने वाले पहले से मौजूद मंदिरों की विशाल इमारतों की हिफाज़त करें तो बेहतर होगा क्योंकि उनके नीचे हज़ारों बुद्ध विहार और बौद्ध मंदिर अपने मानने वालों को चीख चीख कर पुकार रहे हैं न जाने कब हिन्दू मंदिरों कि खुदाई का आंदोलन शुरू हो जाये .
क्योंकि देश के नफरती मीडिया और सांप्रदायिक सियासत ने इबादतगाहों के नीचे खुदाई का रास्ता तो साफ़ कर दिया है एक समुदाय को वर्षों से इसका इंतज़ार था .
देश में हर नए दिन में कोई नया सांप्रदायिक मुद्दा उठाया जाएगा ताकि देश की जनता को बाँट कर रखा जाए और मूल मुद्दों और सरकारी नाकामियों से दूर रखा जा सके . ऐसे में संभल की घटना भी पिछली हज़ारों हिंसाओं और घटनाओं की तरह database के कूड़ेदान में डाल दिया जाएगा .
पीड़ित परिवार कुछ दिन मातम करके खामोश होजाएंगे और कोई सरकारी अधिकारी या छुटभैया नेता यह कहकर चुप करा देगा की कहाँ चक्कर काटोगे अदालतों के ले देकर मामला सुलटा लो … क्या ऐसा है या नहीं ?
कितने पीड़ितों को आज तक इन्साफ मिला ? कितने अपराधियों को सजा हुई ? आप अच्छी तरह जाते हैं . बस अब अगली घटना का इंतज़ार करें और फिर एक रोज़ सब कुछ फना हो जाने वाले दिन महाप्रलय का.
??क्या आप जानते हैं डिजिटल क्रांति और Expresways पर दौड़ती शानदार चमकदार गाड़ियों को जिस विकास और तरक़्क़ी का नाम दिया जा रहा है वो दरअसल ग़ुलामी की पहचान है? .
Net Service Provider Companies अपनी मन मानी कर रही हैं उन्होंने महीना ही 28 दिन का कर दिया सब कुछ उनकी मर्ज़ी से चलता है मोबाइल उपभोक्ता चाहे जितनी कोशिश कर ले अपनी समस्या का समाधान नहीं निकाल सकता बस कंपनी कहे आप वही करते रहें …
जिन Expressways को आप मुल्क का विकास कह रहे हैं उसपर आप अपनी मर्ज़ी से एक इंच आगे नहीं बढ़ सकते अगर हिम्मत है तो बिना जिज़्या या टैक्स दिए निकल कर दिखाएँ Toll Plaza वाले ग़ुलामी के उस दरवाज़े से जिसपर आपको सजा देने के लिए least India Companies ने गुर्गे तैनात कर रखे हैं …
और इन Toll Plaza का Contract किसी आम पैसे वाले शहरी को नहीं मिलता है यह सिर्फ नेताजी के क़रीबी ही ले सकते हैं . तो बात सिर्फ संभल की नहीं है बल्कि देश को ग़ुलामी की ज़ंजीरों से आज़ाद कराने का सवाल खड़ा हो गया है .
और विडंबनात्मक बात यह है की यह बात हमारे शासक वर्ग को भी आसानी से समझ नहीं आरही है की हमको चला कौन रह है ????