[t4b-ticker]
[]
Home » Editorial & Articles » फ़ोरम ने ’समान नागरिक संहिता’ पर आयोग के समक्ष ज्ञापन प्रस्तुत किया 
फ़ोरम ने ’समान नागरिक संहिता’ पर आयोग के समक्ष ज्ञापन प्रस्तुत किया 

फ़ोरम ने ’समान नागरिक संहिता’ पर आयोग के समक्ष ज्ञापन प्रस्तुत किया 

प्रेस विज्ञप्ति :ऑल इंडिया सेक्युलर फ़ोरम ने ’समान नागरिक संहिता’ पर अपना ज्ञापन 22वें विधि आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया

HS Hardenia

प्रारंभिक टिप्पणी

पूर्व 21वें विधि आयोग ने ’ पारिवारिक/निजी कानून में सुधार’ पर अपनी परामर्शी रपट (31 अगस्त 2018में अनुशंसा करते हुए दर्ज़ किया “’समान नागरिक संहिता न तो ज़रूरी हैना ही वांछनीय . . .” चूंकि भारत में कई धर्मआस्थाएं व पारिवारिक/निजी कानून हैं। इसलिए आयोग ने सुझाव दिया कि पारिवारिक/निजी कानूनों में परिवर्तन किए जाएं बजाए इसके कि समान नागरिक संहिता’ जैसे धर्मनिरपेक्ष कानून में सभी पारिवारिक/निजी कानूनों का संहिताकरण (कोडिफ़िकेशनकिया जाए जो कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।

21वें विधि आयोग द्वारा समान नागरिक संहिता’ के उपरोक्त आकलन का आज तक न सुप्रीम कोर्ट ने और ना ही 22वें विधि आयोग ने कोई प्रतिवाद किया है। इसलिए 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर लोगों की राय जानने के लिए जो सार्वजनिक सूचना ज़ाहिर की है उससे आयोग की मंशा पर ही सवाल उठता है।

राजनीतिक लाभ के लिए आयोगों का गठन

21वें विधि आयोग ने जो सुझाव सभी पारिवारिक/निजी कानूनों मेंचाहे कोई भी धर्म या संस्कृति होविविधता के संरक्षणसामाजिक लिंगआधारित भेदभाव को खत्म करने और संपत्ति के गैरबराबर अधिकारों को हटाने के लिए दिए थे, उनको लागू करने के लिए पिछले सालों में केंद्रीय सरकार ने कुछ भी नहीं किया है।

इस पृष्ठभूमि में समान नागरिक संहिता पर लोगों की राय जानने की कवायद का मकसद राजनीतिक लाभ उठाना है। मुस्लिमों पर प्रहार करने से वोट बैंक के ध्रुवीकरण का राजनीतिक लाभ केवल शासक दल को ही मिलेगा।

READ ALSO  क्या उत्तर प्रदेश स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी मानव निर्मित त्रासदी से गुजर रहा है?

ऑल इंडिया सेक्युलर फ़ोरम ने समान नागरिक संहिता पर अंग्रेजी में अपना ज्ञापन (4,540 शब्द) 22वें विधि आयोग को 13 जुलाई 2023 को समय सीमा के अंदर पेश किया (नीचे देखिए: लिंक)

https://countercurrents.org/2023/07/uniform-civil-code-the-way-forward/

समान नागरिक संहिता का विरोध राष्ट्रव्यापी विविधतामूलक समुदाय कर रहे हैंन कि महज़ मुसलमान

हिंदूमुस्लिम द्वीपक्षी भ्रामक जाल में फंसाव की राजनीति को खारिज करने की ज़रूरत

समान नागरिक संहिता को जबरन थोपने के खिलाफ़ विरोध की आवाज़ भारत के उन विविधतामूलक अंचलों से उठ रही है जो विविधता में एकता की मांग रहे हैंन कि एकरूपता की। इस विरोध में नागालैंड, मेघालयमिज़ोरम व सिक्किम की भाजपा गठबंधन वाली या भाजपासमर्थित राज्य सरकारें भी शामिल हैं जिनके मुताबिक समान नागरिक संहिता बहुसंख्यक समुदाय यानी हिंदूओं के तुष्टीकरण के लिए एक बहुसंख्यक प्रोजक्ट है। उनका मानना है कि प्रथागत (Customary) कानूनों को जो संवैधानिक संरक्षणछठी अनुसूची और अनुच्छेद 371 (A, B, C, F, G, H) से मिल रहा है वह समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद प्रभावी नहीं रह पाएगा।

केरल के एक आदिवासी संगठन ने भी समान नागरिक संहिता के खिलाफ़ आवाज़ उठाई है।

पंजाब से शिरोमणी अकाली दल और तमिलनाडू में भाजपा के राज्य अध्यक्ष ने भी समान नागरिक संहिता को खारिज़ किया है।

भारत के संघीय ढांचे और संघीय अधिकारों की संवैधानिक श्रेष्ठता

संविधान की 7वीं अनुसूची (अनुच्छेद 246) में पारिवारिक/निजी कानूनों को समवर्ती (Concurrent) सूची में रखा गया है। इसके मायने हैं कि केंद्र सरकार को राज्यों/यूटी सरकारों से विधिवत सलाहशविरा किए बगैर पूरे देश के लिए समान नागरिक संहिता जैसा कानून बनाने की अनुमति कतई नहीं है।

समान नागरिक संहिता: आगे बढ़ने का रास्ता

1. हमें सावधान रहना होगा ताकि संविधान कोहर हाल उसका किसी भी तरह का विरलीकरण या विकृतिकरण किए बगैर, अमली जामा पहनाया जाए।

READ ALSO  क्या यूनिफार्म सिविल कोड 25000 उपजातियों के लिए मान्य ?

2. राज्यों/यूटी सरकारों के संघीय ढांचे और संघीय अधिकारों को विधिवत स्वीकारते हुए उनको समान नागरिक संहिता का प्रारूप बनाने की प्रक्रिया में शामिल किया जाए।

3. ’समान नागरिक संहिता का प्रारूप बनाने की प्रक्रिया में कभी भी किसी एक खास धर्म या संस्कृति को ज्ञान के एकमात्र स्रोत के रूप में स्वीकारा नहीं जाए। बल्कि इसके ठीक विपरीत आदिवासी व अन्य समुदायों और खासकर पूर्वोत्तर के आदिवासियों की समृद्ध परंपराओं से सीखने व उनको समान नागरिक संहिता का प्रारूप बनाने की प्रक्रिया में शामिल करने के पक्ष में पुख़्ता तर्क मौजूद हैं।

4. विविधतामूलक संस्कृतियों की सांस्कृतिक परंपराओं से सीखते हुए और उनके तार्किक पहुलओं को ’समान नागरिक संहिता’ को समृद्ध करने के लिए और ज़रूरत के मुताबिक हिंदू कोड बिल में भी शामिल  किया जाए।

5.  21वें विधि आयोग के जिन सुझावों व अनुशंसाओं अब तक नज़रंदाज़ किया गया है उन पर पुनर्विचार करके समान नागरिक संहिता पर राष्ट्रीय विमर्श के निर्माण की प्रक्रिया में उन्हें जोड़ा जाए।

समान नागरिक संहिता के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए उपरोक्त पांचों आयाम मिलकर देश के सभी धार्मिक व सांस्कृतिक समुदायों को वर्तमान ठहराव व उलझनों से बाहर निकलने और जीत के मील पत्थर तक कंधे से कंधा जोड़कर इकट्ठे पहुंचने का सपना दिखा रहे हैं। यह ऐसी प्रतिस्पर्धा है जिसमें सभी जीतेंगेहारेगा कोई नहीं। आखिरकारयह भारत में ऐतिहासिक सामाजिक परिवर्तन की चुनौती होगी जिसकी कोख में पल रहे सविधान की प्रस्तावना में मौजूद भारत के नवनिर्माण के सपने को ज़मीन पर उतारना मुमकिन होगा!        

लज्जा शंकर हरदेनियाभोपाल

संयोजक

प्रोराम पुनियानीमुंबई

संरक्षक

 

Please follow and like us:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

eight + 8 =

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Scroll To Top
error

Enjoy our portal? Please spread the word :)