जबकि अजीब बात यह है की बीजेपी भी मेनका के बाद वरुण को लगातार साथ रखकर गाँधी परिवार की वंशवादी प्रथा को अपने ही घर में संजोकर रखे हुए है .
देश का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक पर्व लोकसभा चुनाव हुआ करते हैं ।पर्व यानी त्यौहार , और त्यौहार का मतलब होता है ख़ुशी , आपसी मिलन और सौहार्द . लेकिन यहाँ जितनी नफ़रत द्वेष , ख़ौफ़ , सांप्रदायिक तनाव और हर प्रकार का अमानवीय माहौल चुनावों के दौरान ही देखा जाता है . जो हमारे समाज के लिए नासूर बना जा रहा है .
नेता लगातार एक दूसरे पर वार करने में शब्दों की मर्यादा लांघ रहे हैं। जाति-धर्म की खुलकर सियासत हो रही है, जो अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है , मगर अब तो सब कुछ मुमकिन हुआ जा रहा है . ऐसे दौर में सुल्तानपुर से सांसद और भाजपा प्रत्याशी मेनका गांधी इसे सख्त नापसंद करती हैं।
मेनका गाँधी ने अपने एक साक्षात्कार में कहा , यदि मेरे मुकाबले मुझसे ज्यादा काम करने वालों को टिकट दिया जाता तो मुझे खुशी होती . लेकिन नए लोगों को इसलिए टिकट दे देना कि वे जाति धर्म के नाम पर कुछ वोट बटोर लेंगे…ऐसा ठीक नहीं है। जनता चाहती है कि काम करने वालों के बीच मुकाबला हो। हम मुकाबला जाती धर्म का बना देते हैं और इस दरार को बड़ा बना देते हैं।
मेनका ने कहा जब सभी पार्टियां जाति के आधार पर टिकट देती हैं तो जनता के सामने विकल्प ही नहीं रह जाता । अब हर कोई नोटा पर वोट तो नहीं दे सकता।उन्होंने कहा मेरा अनुभव है कि जनता काम करने वाले को ही पसंद करती है, लेकिन उसे काम करने वाले का विकल्प तो मिले।
मेनका गाँधी से सवाल किया गया की भाषणों में जातीय और धार्मिक आधार पर जो अलगाव और नफ़रत की बातें होती हैं यह कितना उचित है? मेनका ने कहा आप माहौल ही ऐसा बनाएंगे तो बहुत सारे लोग इसमें फंस जाएंगे। जाति और धर्म के आधार पर माहौल बनना ही नहीं चाहिए ।
मेनका के इस Interview के बाद पार्टी में उनको किस तरह देखा जा रहा है इसके बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता अलबत्ता उनके बेटे वरुण बीजेपी के ख़िलाफ़ अपने रुख के लिए काफ़ी ख़तरनाक माने जा रहे हैं .
याद रहे बीजेपी कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाती रही है . और कांग्रेस को एक ही परिवार की पार्टी कहती रही है . जबकि अजीब बात यह है की बीजेपी भी मेनका के बाद वरुण को लगातार साथ रखकर गाँधी परिवार की वंशवादी प्रथा को अपने ही घर में संजोकर रखे हुए है .