Press Release
मदरसों को बंद करने की सिफारिश पर सुप्रीम कोर्ट की रोक का स्वागत: वक़्फ़ एक्टिविस्ट रईस
NCPCR के चैयरमेन के सामने डिबेट में अधिवक्ता रईस ने उठाया था यह मुद्दा
नई दिल्ली/ मदरसों को बंद करने की राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की सिफारिश पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाते हुये अल्पसंख्यको के मौलिक अधिकारों की एक बार फिर रक्षा की है। जिसका दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता व वक़्फ़ एक्टिविस्ट रईस अहमद ने स्वागत किया है।
गौरतलब है कि NCPCR ने अपनी हालिया रिपोर्ट में मदरसों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाते हुए सरकार द्वारा उन्हें दी जाने वाली धनराशि को रोकने का आह्वान किया था। NCPCR की इस सिफारिश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है।
क़ाबिले गौर बात यह है कि ज़ी न्यूज़ जैसे नेशनल टीवी न्यूज़ चैनल्स ने इनपर डिबेट रखीं, जिसमें एड. रईस अहमद ने भाग लिया और NCPCR के चैयरमेन प्रियांक कानूनगो के सामने इस मुद्दे को बड़ी शिद्दत से उठाया था।
जिसमें रईस ने उनकी सिफारिश को संवैधानिक मौलिक अधिकारों के ख़िलाफ़ क़रार देते हुए याद ध्यानी कराई की मुल्क में तकरीबन सवा तीन करोड़ 14 साल से कम उम्र के बच्चे ऐसे हैं जिन्होंने कभी स्कूल का मुह तक नहीं देखा और एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 10 सालों में सरकार ने 61 हज़ार से ज़्यादा सरकारी स्कूलों को बंद किया है.
NCPCR को उन मुद्दों पर कुछ करना चाहिए था न कि मदरसों पर जहां ऐसे ग़रीब बच्चे तालीम पाते हैं जो स्कूल नहीं जा सकते या जहां सरकारी स्कूल मयस्सर नहीं हैं।
साथ ही एक हैरतअंगेज़ बात भी सामने रखी कि NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक़ बाल अपराध की श्रेणी में सबसे ऊपर महाराष्ट्र, उसके बाद मध्यप्रदेश फिर राजस्थान राज्य आते हैं। उन्हें इन राज्यों के उन बच्चों के लिए कुछ करना चाहिए था, जिससे उन बच्चों को अपराधी बनने से रोका जा सकता।
मदरसों के सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने NCPCR की सिफारिश पर कार्रवाई करने से मना कर दिया।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया है। जिसपर चार हफ्ते बाद फिर सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में ट्रांसफर करने के यूपी सरकार के फैसले पर भी रोक लगाई है।
दरअसल, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग यानी नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) ने शिक्षा के अधिकार कानून का अनुपालन नहीं करने पर सरकारी वित्त पोषित और सहायता प्राप्त मदरसों को बंद करने की सिफारिश की थी।
यहां यह बात बताना ज़रूरी हो जाती है कि मदरसों व अल्पसंख्यक संस्थानों को संवैधानिक मौलिक अधिकारों के अनुच्छेद 29 व 30 के मद्देनज़र शिक्षा के अधिकार क़ानून 2009 से बाहर रखा गया है।
लेकिन चैयरमेन साहब ने फिर भी संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध जाते हुए सभी राज्य सरकारों को मदरसों को बंद करने के लिए पत्र जारी किया, जिसपर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी।