आज हमारे समय का सबसे बड़ा सवाल है- क्या उत्तर प्रदेश इस वक्त स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी मानव निर्मित त्रासदी से गुजर रहा है? यह बड़ा सवाल है, क्योंकि इसका समय रहते उत्तर मिल जाने से असंख्य जानें बचा सकते हैं। ‘दैनिक भास्कर’ और कुछ स्थानीय चैनलों ने लाशों पर पर्दा डालने के खेल की पोल खोल दी है। इसमें अब शक नहीं कि यूपी इस राष्ट्रीय त्रासदी का आईना है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले साल से अब तक यूपी में कुल 17,546 मौत हुईंं। आजकल प्रतिदिन सिर्फ 300-400 मौत दिखाते हैं। सभी जानते हैं कि यह आंकड़ा क्रूर मजाक है।
श्मशान घाट व कब्रिस्तान के आंकड़े इसे झूठा साबित करते हैं। पॉजिटिव आए अधिकांश लोग अस्पताल पहुंच ही नहीं पाते। गांव-देहात में तो सब लोग बुखार, खांसी की शिकायत करते हैं, टेस्ट की सुविधा गिने-चुने लोगों को मिल पाती है। ऊपर से आंकड़े दबाने की सरकारी हिदायत। इसलिए आधिकारिक आंकड़ों का कोई मतलब ही नहीं है।
स्वास्थ्य संबंधी आंकड़ों की विशेषज्ञ मिशीगन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर भ्रमर मुखर्जी का अनुमान है कि भारत में कोविड-19 मौतों की वास्तविक संख्या सरकारी तौर पर दर्ज आंकड़ों से 4 या 5 गुना ज्यादा है। उस लिहाज से यूपी में अब तक 70 से 85 हजार के बीच मौत हो चुकी हैं। इसी पद्धति का इस्तेमाल करते हुए इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन, यूनिवर्सिटी ऑफ सिएटल ने अनुमान लगाया है कि अगस्त के महीने के अंत तक यूपी में कोविड से लगभग 1 लाख 18 हजार मौत होने की आशंका है।
लेकिन गांव देहात से आ रही जमीनी रिपोर्ट इससे भी कहीं ज्यादा भयावह स्थिति दर्शा रही है। मिडिलसेक्स यूनिवर्सिटी के गणितज्ञ प्रोफेसर मुराद बालाजी ने अखबारों में छपी 38 रिपोर्टों का विश्लेषण कर यह अनुमान लगाया है कि मई महीने के पहले दो सप्ताह में मृत्युदर जनसंख्या का 0.24% थी, यानी यूपी में महामारी के उफान के दिनों में प्रतिदिन 33 हजार मौत की आशंका है।
यह विश्लेषण ज्यादा प्रभावित गांव के आंकड़ों पर आधारित है। इन पंक्तियों के लेखक ने यूपी के अलग-अलग क्षेत्रों से 14 सामान्य गांव के आंकड़े इकट्ठे किए। उससे निष्कर्ष निकलता है कि जबसे दूसरी लहर शुरू हुई, प्रतिदिन करीब 10,000 व्यक्ति कोरोना से मौत का शिकार हो रहे हैं। द इकोनॉमिस्ट पत्रिका के अनुसार इस साल भारत में कोरोना से 10 लाख लोग मर चुके हैं। इनमें से लगभग दो लाख उत्तर प्रदेश से होंगे।
अगर इन कच्चे अनुमानों में लेश मात्र भी सच है तो यह बीमारी इस वर्ष उप्र में 5 से 10 लाख तक लोगों की जान ले लेगी। अगर ऐसा होता है तो यह किसी एक प्रदेश में ही नहीं, पूरी दुनिया में हमारे समय की सबसे बड़ी स्वास्थ्य आपदा में गिना जाएगा। योगी आदित्यनाथ की सरकार से लोगों को चिकित्सा, ऑक्सीजन, दवाई और वैक्सीन की उम्मीद करना तो व्यर्थ होगा। लेकिन कम से कम इतनी उम्मीद तो की जानी चाहिए की सरकार मृतकों की संख्या ईमानदारी से देश के सामने रखेगी।
काम से कम इतना निर्देश तो जाना चाहिए कि हर ग्राम प्रधान एक अप्रैल से अब तक हुए मौत की सूची बनाएं, उसे पंचायत में और वेबसाइट पर सार्वजनिक किया जाए। ग्रामीण उत्तर प्रदेश में इस वक्त मौत का तांडव नृत्य चल रहा है। लाशें तैर रही हैं, सरकार डूब रही है। चारों तरफ चिताएं जल रही है, असंख्य घरों के चिराग बुझ रहे हैं। जिसकी जेब में पैसा है वह अस्पताल में है, जिसके पास नहीं वह भगवान भरोसे है।
मुख्यमंत्री लापरवाह
उत्तरप्रदेश के मुख्य मंत्री ‘सब चंगा सी’ का राग अलाप रहे हैं, सिचुएशन अंडर कंट्रोल का दावा कर रहे हैं, तीसरी लहर के लिए तैयारी की डींग भी हांक रहे हैं। इतिहास दर्ज करेगा कि जब उत्तर प्रदेश का रोम-रोम जल रहा था उस वक्त मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने गाल बजा रहे थे।
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