
Ali Aadil Khan
Editor’s Desk
दिल्ली में बीजेपी सांसद प्रवेश साहिब सिंह के आवास पर किसान के नाम पर जाट नेताओं के साथ गृहमंत्री अमित शाह की मीटिंग हुई इसको ‘सामाजिक भाईचारा बैठक’ का नाम दिया गया , इसमें शिरकत करने वाले सभी नेता हिन्दू जाट थे ,जबकि मुस्लिम जाटों की भारी संख्या भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रहती है , जहां से इन नेताओं को बुलाया गया था ।
भाईचारा बैठक में समाज को धर्मों और जातियों में बांटने और तोड़ने की बात की गयी ,देश का सामाजिक ताना बाना छिन्न भिन्न करने की एक बार फिर भरपूर कोशिश जारी है , चूंकि एक पार्टी को नफरत और तोड़ फोड़ की सियासत रास आगई है . और जब तक साम्प्रदायिकता और नफरत की सियासत का लाभ इस पार्टी को मिलता रहेगा तब तक वो इसी फॉर्मूले पर काम करती रहेगी . देश के गृहमंत्री ने बैठक में कहा 2014 , 17 फिर 19 में आपने बीजेपी को जिताया , 2022 में जीता दीजिये फिर आपको मांगने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी , अब वहां उनसे यह सवाल करने वाला कोई नहीं था ,की क्या मांगने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी ?
धर्म निरपेक्षता, एकता औरअखंडता की शपथ लेकर मंत्री पद लेने वाले क्या चुनाव के दौर में अपनी मर्ज़ी से पार्टी प्रचार करने केलिए आज़ाद हैं ? चुनावी दौर में उनपर अपने पद की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है ,संविधान की कोई गरिमा नहीं है ? क्या उनपर कोई क़ानून लागू नहीं होगा ? क्या इन मंत्रियों को अनेकों प्रकार की सुविधाएँ पार्टी प्रचार के लिए दी गयी हैं , क्या उनकी सिक्योरिटी पर जनता का करोड़ों रुपया पार्टी प्रचार के लिए खर्च किया जाना चाहिए .

पार्टी प्रचार का काम पार्टी के प्रदेश संगठन का है , सूबे के पदाधिकारी अपने प्रदेशों के चुनाव देखें , केंद्रीय मंत्री अपने काम छोड़कर पार्टी के लिए लगे पड़े हैं,गृहमनत्री घर घर पर्चे बाँट रहे हैं ,यहाँ तक की प्रधानमंत्री भी अपनी सीट और कलमदान छोड़कर पार्टी प्रचारक की हैसियत से काम कर रहे हैं , इनके लिए कोई क़ानून वानून है या नहीं ,अंधेर नगरी और चौपट राज में बचता कोई नहीं है , इसको न भूल जाना प्रिये भारत वासियो ..
जबतक आप संसद या विधान सभा में नहीं पहुंचे हैं , सारे ख़ुराफ़ात संविधान और नैतिकता के दायरे में करें . देश को कोई ऐतराज़ नहीं ,लेकिन जैसे ही आप संवैधानिक पद की शपथ लेते हैं आपको सिर्फ राजधर्म को निभाना होगा , अब राष्ट्र सर्वोपरि होना चाहिए ,पार्टी , धर्म , मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा , शमशान , क़ब्रस्तान , गुजरती , बंगाली ,मराठी , पटेल , पंडित , मिर्ज़ा , कुर्मी ,बघेल, राजपूत , दलित ,यादव या जाट नहीं चलेगा , क्योंकि देश सर्वोपरि है ,…..है की नहीं ? या यह वक्तव्य सिर्फ जनता के लिए है , पहले तो संवैधानिक पदों पर ब्राजमान पाखंडियों के लिए है न ?.

देश के ग्रहमंत्री ने अलीगढ़ में कहा था अगर UP में समाजवादी की सरकार आई तो आज़म जेल से बाहर आजायेगा ,अरे ! तो फिर क्या होगा ? क्या आज़म खान अपने सारे मुख़ालिफ़ों को फांसी चढ़ा देगा , क्या आसमान फट जायेगा ? क्या उसके बाहर आने से देश का क़ानून काम करना बंद कर देगा ? नेता जी … देश की अवाम को डराने और धमकाने की सियासत का ढोंग बंद कर देना चाहिए .अगर कोई अंदर गया है तो क़ानूनी प्रक्रिया के तहत गया होगा , हमें नहीं पता… और बाहर आएगा तो भी क़ानूनी प्रक्रिया के तहत आना चाहिए ,और अगर ऐसा नहीं है तो क्या ज़रुरत है लोकतंत्र और संविधान का ढोंग करने की , राजशाही निज़ाम का बाक़ायदा ऐलान क्यों नहीं होता ? हालाँकि रफ़्ता रफ़्ता देश और दुनिया , एजेंडा 21 और new world order की तरफ़ बढ़ रही है . जिसमें लोकतंत्र नहीं राजतंत्र चलेगा , अब ऐसा नहीं है की दज्जाली निज़ामे हुकूमत में एक धर्म या जाती के ख़िलाफ़ कोड़ा चलेगा , और बाक़ियों की मस्ती ,बल्कि कुल जनता ग़ुलाम होगी , मस्ती सिर्फ राजशाही तंत्र में शामिल लोग ही करेंगे जिसकी बानगी अच्छे दिन के सत्ता काल में देखने को मिल रही है …
किसान नेता राकेश टिकैत ने अपने कई इंटरव्यू में इस बात की तरफ़ साफ़ इशारा कर दिया है की केंद्र और प्रदेशों में बैठी सरकारें किसान , मज़दूर , नौजवान , आदिवासी , दलित और अल्पसंख्यक विरोधी हैं , और जनता अपने हिसाब से आगामी सभी चुनावों में सबक़ सिखा देगी , हालाँकि उन्होंने खुलकर किसी की किसी की मुख़ालफ़त या समर्थन की बात नहीं करी है , जिससे एक भ्र्म भी बना हुआ है , जिस तरह आंदोलन के दौरान एक ख़ास पार्टी के विरोध का ऐलान किया था ,आज भी करते तो तस्वीर साफ़ हो सकती थी .

लेकिन एक बात जो उन्होंने साफ़ तौर से कही , उन्हीं के अंदाज़ में पेश है “कि तोड़ फोड़ और साम्प्रदायिकता करने वाली राजनीती अब देश में नहीं चलने वाली .साम्प्रदायिकता का फोटो बनाके इसको शोकेस में रख दें सांप्रदायिक पार्टियां , अब न चले यो …इसको सीसे में पैक करके रख दो , ताकि आने वाली नस्लों को याद दिला सको कि देश में सांप्रदायिक पार्टी की सरकार हिन्दू मुस्लिम , क़ब्रस्तान और शमशान तथा जिन्नाह के नाम पर बनाई गयी थी “।
टिकैत ने कहा “साम्प्रदायिकता के पुराने मॉडल के इंजन को बार बार स्टार्ट करना चाहते हैं कुछ लोग , और किसान पानी लिए बैठा , वो इंजन में पानी डाल दे …स्टार्ट न होने देता साम्प्रदायिकता के इंजन को . देश में एक ख़ास पार्टी के प्रत्याशियों को दौड़ाया जा रहा है ,इससे उनकी हालत ख़राब है “,पर ये कभी भी ऐसा खेल खेल सकते हें जिससे चुनाव पूरी तरह से धुर्वीकृत हो जाएँ , जिसमें नुकसान पूरे देश का है किसी एक क़ौम या धर्म का नहीं .तूफ़ान से पहले तैयारी अकलमंदी की अलामत होती है , वरना उसके बाद तो , अब पछताए क्या होत है जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत वाली बात ही सच होती है .
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