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क्या शादी के दावत नामों का बॉयकॉट होना …..

क्या शादी के दावत नामों का बॉयकॉट होना …..

शादी के नाम पर लड़की के घर खाना और मंगनी हराम ?

क्या दहेज़ लेना देना , लड़की वालों के यहाँ बरात का खाना , या मांगनी जैसी रस्म इस्लाम में हराम है ? .Socio Reforms Society of India, हैदराबाद नामी संस्था पिछले दशक से दहेज़ , निकाह में फ़ुज़ूल खर्ची और ग़ैर शरई रसूमात के खिलाफ एक तहरीक चला रही है . इस सिलसिले में फ़ोरम के अध्यक्ष डॉ अब्दुल अलीम फलकी दर्जन से ज़्यादा शार्ट फिल्म्स बना चुके हैं , कई किताबें लिख चुके हैं ,देशभर में सेमिनार्स , symposium , जलसे और सैंकड़ों Programes इस मोज़ू (विषय ) पर कर चुके हैं .

डॉ अलीम फ़लकी ज़हूर अटैची वाले (दिल्ली ) के कांफ्रेंस हॉल में Audience को ख़िताब करते हुए

इसी सिलसिले में दरयागंज दिल्ली के मशहूर समाजी कारकुन और बड़े कारोबारी ज़हूर अटेची वालों ने एक तार्रूफ़ी (प्रस्तावना) सभा का आयोजन किया . जिसमें इलाक़े के दर्जन भर से ज़्यादा मज़हबी आलिमों , मुफ़्तियान और क़ाज़ी हज़रात के अलावा कई समाजी तंज़ीमों के ज़िम्मेदारों ने शिरकत की .

कार्यक्रम के मेहमान खुसूसी डॉ अब्दुल अलीम फलकी ने “मुस्लिम शादियां और अहकाम ए शरीअत ” मज़मून पर अपने तजुर्बात और रिसर्च की रौशनी में हाज़रीन के साथ बात की . कई तजावीज़ रखीं और उलामा से दर्ख्वस्त की वो भी अवाम को शादियों पर बेजा इसराफ़ और दहेज़ की लानत से बचाने के लिए हिकमत ए अमली तैयार करें . और ऐसी तमाम शादियों का बायकाट करें जिनमें फ़िज़ूल खर्ची , दिखावा और इसराफ़ पाया जाता हो .

डॉ अलीम ने कहा क़ुरआन में अल्लाह इरशाद फरमाता है कि अक्सर लोग मुनाफ़िक़ हैं , जाहिल हैं , ना शुकरे हैं वो हक़ और सच को क़ुबूल नहीं करेंगे और ए मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम तुम लोगों को बुराई से रोकते रहो और भलाई की तरफ बुलाते रहो .लिहाज़ा शादियों में होने वाले मुनकरात और बुराइयों से बचने और रोकने के लिए अवामुन्नास आपके साथ नहीं आएगी लेकिन जो लोग भी आपकी बात पर अमल कर लेंगे वो बड़ी खैर की तरफ आजायेंगे . और इससे समाज की कई बुराइयां ख़तम हो जाएँगी .

डॉ अलीम ने दर्द भरे अंदाज़ में कहा ख़ुशी से दहेज़ देने लेने की इजाज़त देने वालों को इजाज़त किसने दी ? दीनदार , intellectual , पढ़े लिखे लोगों को भी मालूम है की मांगनी , बरात , चौथी , मेंहदी , हल्दी की फ़ुज़ूल रसूमात यह हमारे नबी का तरीक़ा नहीं है . एक मामूली सा मुस्लमान भी इसको जानता है यह एक लानत है मगर उसके बावजूद कुछ लोग समाज , बिरादरी और रिश्तेदारों की ख़ुशी की खातिर और खुअहिशे नफ़्स की ख़ातिर इस बिदअत और गुनाह के अमल को शान से कर रहे होते हैं .

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जबकि विरासत में लड़कियों के हक़ को मार लिया जा रहा है . जो सरासर क़ुरआन के अहकामात की ना फ़रमानी है  .और इसकी लानत समाज पर तलाक़ और खुला की शक्ल में रोज़ देखने या सुनने को मिलती है . आये दिन घरेलू झगड़ों की बुनयादी वजह यह ग़ैर शरई और ग़ैर ज़रूरी रसूमात हैं . जिसके ज़रिये से शैतान हमारे बीच मौजूद रहता है .

कुछ लोगों की मजबूरी होती है की अगर दहेज़ न दिया तो बच्ची घर बैठी रहेगी . हालांकि अगर कोई इस यक़ीन के साथ दहेज़ लेने देने की लानत से बचा रहा कि अल्लाह ने मुक़द्दर में अगर बच्ची या बच्चे का निकाह लिखा होगा तो हर हाल में होकर रहेगा . चाहे दहेज़ हो या न हो , तो फिर अल्लाह भी ऐसे लोगों की मदद करते हैं . मगर इस यक़ीन को बनाने की भी अलग से एक मेहनत है .

अल्मिया यह है की समाज में जब क्राइम बढ़ता है तो कहा जाता है की यह इल्म और तालीम की कमी की वजह से हो रहा है लेकिन जब कोई IAS अफसर या डॉक्टर , इंजीनियर, प्रोफेसर या टीचर मोटी रक़म दहेज़ के नाम से मांग रहा होता है , तो कोई नहीं कहता की यह अव्वल दर्जे की जहालत है . जब भी कोई ग़ैर शरई और ग़ैर अख़लाक़ी काम समाज में ग़रीब करे तो जहालत और अगर अमीर या सो कॉल्ड पढ़े लिखे लोग करें तो उनका शौक़ . इस फ़र्क़ को मिटाने का काम भी करना होगा .

“क्या शादी के नाम पर लड़की के घर खाना और मंगनी हराम” मोज़ू पर तबादले ख्याल करते दिल्ली के उलमा और दानिश्वरान

बेबुनियाद , ग़ैर शरई और बददीनि की रस्म दहेज़ को लड़की की ज़रुरत , और जब मांगे बढ़ने लगीं और यह रस्म परवान चढ़ने लगी तो इसको लड़की वालों की इज़्ज़त और जब यह लानत अपनी बुलंदी पर पहुंची तो इसको लड़की वालों की हैसियत से ताबीर किया जाने लगा . और इसके नतीजे में अमीर की बेटी या बेटे की शादी के प्रोग्राम में क्वांटालों खाना बर्बाद हो रहा होता है जबकि पड़ोस के बच्चे या तो भूखे सो गए होते हैं या भर पेट नहीं मिला होता है .और रिश्तेदारों की बेटियां घर में इसीलिए बैठी होती हैं की बाप के पास देने के लिए कुछ नहीं है .

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हाजी ज़हूर अटैची वालों के के शोरूम में आयोजित इस प्रोग्राम में चीफ स्पीकर डॉ अलीम की तक़रीर के बाद सहाफ़ी ने दहेज़ और ग़ैर इस्लामी शादी की रसूमात के नुक़सानात पर बात की . और जो लोग शादियों को सादगी से करने के बाद बड़ी रक़म की सेविंग करेंगे उसके इस्तेमाल के बारे में तजवीज़ पेश की . और बताय किस तरह से इस रक़म से मिल्लत , मुल्क और इंसानियत का बड़ा नफ़ा हो सकता है .

“मुस्लिम शादियां और अहकाम ए शरीअत ” के उन्वान से हाजी ज़हूर अटैची वालों के खजूर वाली गली , दरयागंज स्थित शोरूम पर मुनअक़िद इस प्रोग्राम में २ दर्जन से ज़्यादा इलाक़े के मोअज़्ज़िज़ लोगों ने शिरकत की जिसमें उलमा , मुफ़्ती , इमाम हज़रात के अलावा समाजी तंज़ीमों के ज़िम्मेदारान , समाजी कारकुन सहाफी और मुफक्किरीन ने शिरकत की . प्रोग्राम की शुरुआत क़ाज़ी निसार अहमद साहब ने तिलावत ए कलाम पाक से की . सदारत के फ़राइज़ क़ाज़ी मुहम्मद अहमद साहब ने अंजाम दिए . प्रोग्राम के इख़तताम पर नसीमुद्दीन इंजीनियर ने मेहमानों का शुक्रिया अदा किया गया . क़ाज़ी मुहम्मद अहमद साहब ने पूरी उम्मत को हक़ पर आने और इत्तिहाद से काम करने की दुआ की .

मिल्लत और इंसानियत के रोशन मुस्तक़बिल के सिलसिले में मुनअक़िद इस मख़सूस प्रोग्राम में दिल्ली के जिन ज़िम्मेदारान ने शिरकत की उनमें सरे फेहरिस्त मस्जिदों के इमाम हज़रात ,मुफ़्ती मुहम्मद अहमद साहब , मुफ़्ती रईस अहमद साहब , मुफ़्ती निसार अहमद साहब , इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर के मुहम्मद शमीम साहब , अल खैर फाउंडेशन की डॉ दरख्शां फिरदौस साहिबा , मोहतरमा ज़ुलेखा साहिबा SOCIAL ACTIVIST ,इंजीनियर नसीमुद्दीन साहब ,मुहम्मद खलील सैफ़ी साहब , शहीद गंगोही साहब नईम साहब Educationist वग़ैरा क़ाबिल इ ज़िक्र हैं .

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