……..के भाषणों में कट्टर राष्ट्रवाद और कट्टर ईमानदार जैसे शब्द अक्सर सुनें गए हैं ,वो विकास कार्यों के साथ ऐक कट्टर हिन्दू वाली छवी भी रखते हैं
साथियो जैसे देश का एक भाग, राजस्थान है वैसे ही संघ का एक भाग भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा है, किंतु अहंकार में डूबे नरेंद्र दामोदरदास मोदी 2019 में जब से दूसरी बार प्रधानमंत्री बने .
उनका अहम इतना बढ़ गया है कि वह संघ को, जिसकी बैसाखी लेकर 2014 में छोटी सी पगडंडी पर चलकर चौड़ी सड़क तक आ पहुंचे थे, अब बौना समझने लगे है।
हालात यहां तक दोनों में खराब हो गए हैं के संघ भाजपा को अपना एक अंश बनाकर अभी तक चल रहा था अब नरेंद्र मोदी संघ को भाजपा का या कहें नरेंद्र मोदी का एक अंश मानकर चलाना चाहते है।
पिछले कुछ वर्षों में जिस प्रकार संघ को इग्नोर करके नरेंद्र मोदी अपनी मनमर्जी करने लगे हैं, यह संघ को खलने लगा है। फिर चाहे राम मंदिर का मुद्दा हो जिसमें अधूरे बने मंदिर में प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा का काम हो या कोई अन्य राजनीतिक सामाजिक चेतना के कार्य।
संघ को उस वक़्त बेहद नागवार गुजरा जब विद्वान शंकराचार्य को नाराज कर मोदी ने प्राण प्रतिष्ठा का कर्मकांड khud karne ka निर्णय लिया.
वही संघ का मानना था कि प्राण प्रतिष्ठा का कार्य शंकराचार्य के हाथों हो या कोई ऐसा विद्वंजन आचार्य या किसी संत के हाथों होना चाहिए जिसको लोग मान्यता समाज मान्यता देता हो . किंतु इन सबको मोदी ने इग्नोर कर अपने हाथों से प्राण प्रतिष्ठा करने की चेष्टा की।
जबकि संघ चाहता था कि अभी ऊपर बताए हुए आचार्यो संतों या शंकराचार्य को नहीं बुलाया जाता तो प्राण प्रतिष्ठा का कार्य वयो वृद्ध लाल कृष्ण आडवाणी जी के हाथों संपन्न करवाया जाए क्योंकि राम मंदिर के प्रमुख सूत्रधार वही थे .
किंतु अहम में डूबे नरेंद्र मोदी को यह कब गवारा था, फिर वही हुआ जो मोदी चाहते थे, खुद के हाथों प्राण प्रतिष्ठा का भव्य समारोह आयोजित किया गया और शंकराचार्य और प्रतिष्ठित ऋषि मुनियों की उपेक्षा की गई।।
नाराज संघ ने इसके बाद से ही भाजपा से दूरियां बनाना शुरू कर दिया था। भाजपा का दम्भ अति ko पहुंच चुका. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का यह बयान आग में घी का कार्य कर रहा है कि “अब हमें संघ की जरूरत नहीं है हम खुद सक्षम है संघ हमारे कार्यों में दखल ना दे”!!।
चलो यहां तक भी ठीक था जुबान फिसल गई होगी राष्ट्रीय अध्यक्ष जी की मगर इस गंभीर विषय पर मोदी जी का मौन साध लेना विचारधाराओं में परिवर्तन की पराकाष्ठा है। अब संघ के नक्शे कदम पर, भाजपा नहीं चलेगी ऐसे स्पष्ट संकेत भारतीय जनता पार्टी ने संघ को दे दिए हैं। इस पर नागपुर खुद बौखलाया हुआ है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत स्वयं अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। उपेक्षा का कारण भी मोहन भागवत खुद ही है।। अब संघ ने राष्ट्रीय स्तर की एक मीटिंग का आयोजन किया है जिसमें संघ के प्रमुख पदाधिकारी के साथ-साथ मोदी सहित भाजपा के शीर्ष नेताओं को अनिवार्य रूप से इस मीटिंग को अटेंड करने की हिदायत दी गई है।
देखना होगा कि भाजपा संघ के इस आदेश को मानती है या इससे किनारा कर अपनी प्रमुखता दर्शाती है।।। अब सवाल यह है की क्या भाजपा का वर्चस्व इतना बढ़ गया है कि संघ की कार्यशैली की अवहेलना कर वह अपना वजूद कायम रख पाएगी, यह आगामी कुछ दिनों में तय हो जाएगा.
मगर साथ ही यह भी बहुत अहम है कि संघ को भी अपनी योजनाओं को लागू करने के लिए किसी न किसी राजनीतिक पार्टी की आवश्यकता तो रहेगी.
तो इसका विकल्प क्या AAP में संघ देख रही है??? क्योंकि केजरीवाल के भाषणों में कट्टर राष्ट्रवाद और कट्टर ईमानदार जैसे शब्द अक्सर सुनें गए हैं. वो विकास कार्यों के साथ ऐक कट्टर हिन्दू वाली छवी भी रखते हैं.
अरविंद केजरीवाल हर काम को हिन्दू कर्मकाण्ड के साथ करने में विश्वास भी रखते हैं. और संघ की मंशा भी यही है. तो केजरीवाल संघ की दूसरी पसंद हो सकते हैं. और इसमें हर्ज भी क्या है.
बाकी जनता खुद तय करेगी उसको समाजवादी, विकाशशील निष्पक्ष और मानवतावादी नैतिकता पर अधारित पार्टी चाहिए या हिन्दू तालिबान पार्टी???