50 दिन से भी अधिक समय से दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसानों का प्रदर्शन कब समाप्त होगा यह अब तक साफ़ नहीं है लेकिन बुधवार को केंद्र सरकार ने किसानों की मांगों को लेकर एक अहम प्रस्ताव पेश किया है.

एक रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार को किसानों और सरकार के बीच हुई 10वें दौर की बैठक के दौरान केंद्र सरकार ने किसानों के प्रतिनिधियों के सामने कृषि क़ानूनों को 18 महीने के लिए निलंबित करने का प्रस्ताव रखा है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई विशेषज्ञों की समिति के आगे किसानों ने पेश होने से इनकार कर दिया है जिसको लेकर भी केंद्र सरकार ने किसानों और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच एक संयुक्त समिति बनाने का प्रस्ताव दिया है.
डेढ़ साल तक क़ानून के निलंबित रहते हुए यह समिति किसानों की समस्याओं को सुनेगी और एक रिपोर्ट बनाएगी.
दोनों पक्ष बात चीत को जारी रखने के लिए शुक्रवार को अगले चरण की बैठक के लिए भी तैयार हैं . केंद्र सरकार की ओर से किसानों से बात कर रहे कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इस बात की उम्मीद जताई है कि 22 जनवरी को इस मामले का कोई समाधान निकल आएगा .

उधर किसानों ने भी सरकार के इस प्रस्ताव को सिरे से तो ख़ारिज नहीं किया है अलबत्ता नेताओं के बयानों में शंका ज़रूर दिखाई दे रही है . तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे किसानों का कहना है कि वे गुरुवार को इस प्रस्ताव पर चर्चा करेंगे.
जम्हूरी यानी लोकतंत्रोक किसान सभा के महासचिव कुलवंत सिंह संधू बुधवार को किसानों और सरकार के बीच हुई बातचीत में शामिल थे. उन्होंने कहा कि मंत्रियों ने 18 से 24 महीनों तक क़ानूनों को लागू न करने का प्रस्ताव दिया है और इससे जुड़ा एफ़िडेविट सुप्रीम कोर्ट में भी दायर किया जाएगा.

हालाँकि ऑल इंडिया किसान सभा पंजाब के नेता बालकरण सिंह बरार ने कहा कि सरकार डरी हुई है और अपनी नाक बचाने के लिए रास्ते ढून्ढ रही है. उन्होंने बताया कि कल हमारी दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के साथ भी बैठक है, जिसमें 26 जनवरी के हमारे विरोध प्रदर्शन के कार्यक्रम को पर चर्चा होगी .
बरार ने बताया ‘भारत सरकार ने 10वें दौर की बैठक में एक नया प्रस्ताव रखा है, कि वह एक विशेष समिति गठित करने को तैयार है जो तीनों नए कानूनों के साथ-साथ किसानो की सारी मांगों पर विचार करेगी.
साथ ही National investigating Agency (NIA) की तरफ से जो नोटिस जारी हुए हैं उस पर किसानों ने सख्त नाराजगी जताते हुए बैठक में इसकी बात रखी . जवाब में सरकार ने कहा कि आप हमें लिस्ट दीजिए जिन लोगों को NIA का नोटिस है हम उनके खिलाफ नोटिस वापस लेने के लिए सोचेंगे.
अब इस पूरे प्रकरण से यह बात तो लगभग साफ़ होगी है की सर्कार जिन क़ानूनों को देश की जनता पर थोपने का काम कर रही थी वो न तो जन हित में थे और न ही राष्ट्र हित में , क्योंकि अगर ये राष्ट्र हित में या सर्कार हित में होते तो किसी भी सूरत इनका लागू किया जाना तै था .दरअसल इस पूरे प्रकरण को सत्ताधारी पार्टी की अपने मित्रों के साथ वफादारी की एक झलक के रूप में देखा गया है . लेकिन सर्कार तो सर्कार है वो ऐसे नहीं तो वैसे अपने मोहसीनो को खुश करने के लिए कुछ तो करेगी ही .
लिहाज़ा अडानी को रेल सौंपकर नए साल का तोहफा दिया है , अब यात्रियों को नए साल के Cake का पैसा ज़िंदगी भर चुकाना होगा , देखते रहें क्योंकि अब रेलवे स्टेशन पर आपके थूकने के भी पैसे लगेंगे , हालाँकि यह काम सरकार भी फ्री में कर सकती थी
मगर वोटरों की नाराज़गी का ख़ौफ़ हर वक़्त पार्टियों को सताता तो रहता ही है न इसलिए कोई फर्म Dicision नहीं ले पाती …प्राइवेट कंपनियों को अपनी झोली से वोट खिसकने का कोई खतरा नहीं होता, क्योंकि उनकी तो जेब में पूरी की पूरी सरकारें होती हैं