किसानों की ट्रैक्टर रैली मामले से SC ने झाड़ा पल्ला , कहा- ये पुलिस के अधिकार क्षेत्र का मामला है
गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर रैली को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर रैली को लेकर फैसला दिल्ली पुलिस पर ही छोड़ा .

नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर किसानों की होने वाली ट्रैक्टर परेड या रैली को लेकर दिल्ली पुलिस की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका लगाई गयी थी इसपर आज सुनवाई करते हुए कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया है कि रैली को लेकर फैसला खुद दिल्ली पुलिस ही करे. प्रधान पब्लिक प्रोसेक्यूटर यानी Soliciter General (SG) ने बहस की शुरुआत की और कहा कि मामले की सुनवाई 25 जनवरी को एक बार फिर करें.
मुख्य न्यायाधीश यानि CJI ने SG को कहा की हम पहले ही कह चुके है ये मामला पुलिस के दायरा ए इख़्तियार में आता है .CJI शरद अरविन्द बोबडे बोले ,हम इस मामले में कोई आदेश नही देंगे. दिल्ली पुलिस खुद ऑथोरिटी के तौर पर आदेश जारी करे .
लेकिन यहाँ एक बड़ा सवाल यह पैदा होता है की दिल्ली पुलिस और केंद्र सर्कार ने जब किसानो की ट्रैक्टर रैली के खिलाफ PIL लगाई थी तो SC को यह कहने में क्या संवैधानिक अड़चन थी की किसानों को शांतिपूर्ण तरीके से रैली निकालने का अधिकार है लिहाज़ा इस PIL पर कोई सुनवाई नहीं होगी.

किसान आंदोलनकारियों के समर्थन में उतरे वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि वे भी किसान ट्रैक्टर रैली के साथ गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं और शांति भंग नहीं होने दी जायेगी . इसपर CJI बोबडे ने कहा कि कृपया दिल्ली के नागरिकों को शांति का आश्वासन दें. एक अदालत के रूप में हम अपनी चिंता व्यक्त कर रहे हैं .
प्रशांत भूषण बोले कि किसानों ने कहा है कि इस दौरान शांति रहेगी . CJI ने ट्रैक्टर रैली को लेकर कहा कि भूषण अपने मुवक्किल से बात करके बताएं सब कुछ शांतिपूर्ण कैसे होगा ? Attorny General ( AG ) ने कहा कि करनाल में किसानों ने पंडाल तोड़ दिया. कानून व्यस्था को लेकर दिक्कत हुई थी. CJI ने कहा कि हम इस पर कुछ और कहना नहीं चाहते.
किसानो के लिए जो बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है वो यह है की ऐसे में जब किसान और सर्कार के बीच ये संवैधानिक लड़ाई काफी आगे निकल गयी है , और किसानो को बांटने का काम भी अलग अलग तरीके से हुआ है , तभी कुछ असामाजिक तत्व या तो स्वयं या किसी संस्था की ओर से भेजे जा सकते हैं और किसी भी अप्रिय घटना को अंजाम भी दे सकते हैं.
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ऐसे में पुलिस की शंका भी किसी हद तक जाइज़ है . और अगर उस घटना के लिए पुलिस प्रशासन और केंद्र सरकार ने प्रत्याशित हमले की साज़िश का ठीकरा किसान आंदोलनकारियों पर फोड़ा तो पूरे आंदोलन में क़ुरबानी देने वाले सभी शहीदों की ख़ास तौर से और आम तौर से तमाम आंदोलनकारियों की क़ुरबानी व्यर्थ जा सकती है , जबकि सरकार उसका पूरा लाभ उठाने के मूड में आजायेगी .
जैसा आपको मालूम है कि कृषि कानूनों के विरोध में किसान लगातार 57 दिन से आंदोलन कर रहे हैं. इस बीच 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड को लेकर किसानों और पुलिस के बीच मंगलवार को मीटिंग हुई.. किसान नेता ने बताया कि पुलिस ने हमसे परेड के रूट और लोगों की संख्या को लेकर सवाल पूछे. पुलिस ने कहा है कि आउटर रिंग रोड पर परेड निकालने से परेशानी हो सकती है.
वैसे, परेड की परमिशन के बारे में दिल्ली पुलिस ने अभी तक कुछ नहीं कहा है. लेकिन हमारी परेड निकलनी तय है. बता दें कि किसानों ने दिल्ली पुलिस से 26 जनवरी को परेड के लिए लिखित परमिशन नहीं मांगी है.किसान नेताओं का कहना है की गणतंत्र दिवस मानाने के लिए तिरंगे के साथ चलने के लिए पर्मीशन की ज़रूरत नहीं है
किसान नेता राकेश टिकैत ने भी साफ-साफ कहा था कि जब तक सरकार हमारी मांगें नहीं मान लेती आंदोलन जारी रहेगा. उन्होंने गणतंत्र दिवस को लेकर भी कहा था कि इस बार यह ऐतिहासिक होगा. एक तरफ जवान परेड कर रहे होंगे और दूसरी तरफ किसान प्रदर्शन.जय जवान जय किसान