[]
Home » Editorial & Articles » ख़ुदा जब दोस्त है ऐ दाग़ क्या दुश्मन से अन्देशा

ख़ुदा जब दोस्त है ऐ दाग़ क्या दुश्मन से अन्देशा

ख़ुदा जब दोस्त है ऐ दाग़ क्या दुश्मन से अन्देशा


कलीमुल-हफ़ीज़

राय से इख़्तिलाफ़ (मतभेद) और मुख़ालिफ़त दो अलग-अलग अलफ़ाज़ हैं, इनका मफ़हूम (अर्थ) भी अलग है और इनको इस्तेमाल भी अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीक़े से किया जाता है, लेकिन उम्मत की पस्ती और बदहाली का ये हाल है कि वो राय के इख़्तिलाफ़ यानी मतभेद और उसके तक़ाज़ों को तो भूल गई और उसकी जगह मुख़ालिफ़त (विरोध) का तरीक़ा अपना लिया।

पिछली दो सदियों की तारीख़ उठाकर देख लीजिये उम्मत ने हर उस काम और हर उस शख़्स की मुख़ालिफ़त की जिसने उसकी भलाई और ख़ैरख़ाही के लिये कोई काम किया। इमाम ग़ज़ाली (रह०) से लेकर सर सैयद (रह०) तक और सर सैयद से लेकर आज तक जिन बुज़ुर्गों ने भी उम्मत की इस्लाह और उसके एम्पावरमेंट (विकास) के लिये कोई क़दम उठाया उम्मत के ही कुछ शरपसन्दों ने टाँग खींचने का फ़र्ज़ निभाया। भलाई के कामों की मुख़ालिफ़त तो हमेशा से होती आई है।

भलाई के कामों की मुख़ालिफ़त ग़ैरों के ख़ेमे की तरफ़ से होना तो समझ में आता है, लेकिन अपनों की तरफ़ से मुख़ालिफ़त का होना समझ में नहीं आता। इसीलिये सर सैयद ने फ़रमाया था “ये बड़ी अजीब क़ौम है, जो अच्छे काम की मुख़ालिफ़त भी एक साथ इकठ्ठा होकर करती है।” जब तीर दोस्तों की तरफ़ से आते हैं तब हैरत तो होती ही है दिल भी टूट जाते हैं और हिम्मतें भी जवाब दे जाती हैं।

मैं ये नहीं कहता हूँ कि हम हर शख़्स को इस्लाह करनेवाला (सुधारक) मानकर उसकी अन्धी पैरवी करें, या उसके कामों का जायज़ा न लें, मैं तो सिर्फ़ ये कहना चाहता हूँ कि मुख़ालिफ़त से पहले ठीक-ठीक मालूमात हासिल कर लें, जिस शख़्स के साथ मामला है उससे मिलकर अपना इख़्तिलाफ़ बता दें, बात न बने तो दो-चार लोग मिलकर बात करें इसके साथ ये भी सोचें कि मुख़ालिफ़त किस हद तक की जानी चाहिये। किन हदों में रहकर और किस प्लेटफ़ॉर्म पर की जानी चाहिये।

READ ALSO  Kissan Aandolan2 :इसपर किसानों का Control नहीं है बल्कि....

मुख़ालिफ़त के नतीजे और अन्जाम पर भी ग़ौर करना चाहिये। उम्मत के इज्तिमाई फ़ायदों और हितों और अपने या कुछ लोगों के ज़ाती फ़ायदों में फ़र्क़ करना चाहिये। हमें ये नहीं भूलना चाहिये कि इस्लाम, मुख़ालिफ़त से रुके रहने और राय से इख़्तिलाफ़ करने की इजाज़त भी हदों में रहते हुए और आदाब के साथ देता है।

मुसलमानो के खाते में आएंगे 15 लाख ऐसे , देखें इस लिंक पर

http://timesofpedia.com/hindu-ke-nahi-musalman-ke-khaate-mein-aagaye-15-laakh/

क़ौमों की पस्ती की एक वजह ये भी है कि उसने अपने ख़ैरख़ाहों (शुभचिंतकों) को पहचानने में ग़लती की और कुछ मफ़ाद-परस्तों के वरग़लाने में आकर ख़ैरख़ाहों की मुख़ालिफ़त करने लगी। कभी-कभी तो ग़ुंडों और मवालियों को ही लीडर समझ बैठी। इससे काम करने वालों के हौसले और हिम्मतें पस्त हो गईं। इसका नतीजा ये हुआ कि हज़ारों ख़ैरख़ाह सिर्फ़ इसी डर से आगे न आ सके।

कितने ही ख़ैरख़ाह और उम्मत के मुस्लिहीन (सुधारक) रास्ते से वापस लौट गए। वरना क्या वजह है कि सर सैयद के बाद दूसरा सर सैयद पैदा न हो सका। सर सैयद (रह०) का ताल्लुक़ तो नवाब और बड़े ख़ानदान से था, वो मुख़ालिफ़तों के बीच भी चलते रहे लेकिन आम इन्सान में बर्दाश्त की वो क़ुव्वत नहीं होती।

READ ALSO  इस हुकूमत में सबसे ज़यादा नुक़्सान राम-रहीम की दोस्ती को पहुँचा है

क़ौम की इस्लाह और सुधार करनेवाले हस्सास दिल के (sensitive) होते हैं, कभी-कभी ज़रा सी बात भी उनको इतनी तकलीफ़ देती है कि वो इस्लाह के काम से ही तौबा कर लेते हैं। ज़ाहिर है कि ये सूरते-हाल जब तक रहेगी उम्मत ज़वाल और पस्ती की तरफ़ ही बढ़ती रहेगी। मुझे इस सूरते-हाल का सामना उस वक़्त करना पड़ा जब मैंने भी उस रास्ते की ख़ाक बनने की कोशिश की जिस रास्ते पर उम्मत के ख़ैरख़ाहों और क़ौम के सुधारकों ने क़दम रखे थे।

हमारे एक ख़ैरख़ाह ने ज़ाती फ़ायदों की ख़ातिर एक ऐसे इदारे के ख़िलाफ़ ज़हर उगलना शुरू कर दिया है, जिसके ज़रिए हर साल हज़ारों मुस्लिम नौजवान डॉक्टर और इंजीनियर उम्मत को मिल रहे हैं और जहाँ क़ुरआन के हाफ़िज़ों को भी डॉक्टर बनने का मौक़ा मिल रहा है।

तन्क़ीदी और तक़ाबुली यानी बेलाग जायज़ा (समीक्षा) लेना आपका हक़ है, मगर बग़ैर तहक़ीक़ लोगों के किरदार और इदारों पर कीचड़ मत उछालिये। बदक़िस्मती से सोशल मिडिया ने एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म मुहैया कर दिया है कि इस पर इज़्ज़तों के जनाज़े सजाए जा रहे हैं। बग़ैर हवालों के पोस्टें डाली जाती हैं और लोग उन्हें बग़ैर तहक़ीक़ शेयर भी करते हैं। ये मुनासिब रवैया नहीं है।

Please follow and like us:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

thirteen − one =

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Scroll To Top
error

Enjoy our portal? Please spread the word :)