नई दिल्ली. क्या केन्द्र सरकार ने आयुर्वेद जैसी पुराण चिकित्सा पद्धति यूनानी को भुलाने की ठान ली है।ऐसे में जब भारतीय चिकित्सा प्रणालियों के लिए गठित राष्ट्रीय आयोग (एनसीआईएसएम) में यूनानी को उचित प्रतिनिधित्व तक नहीं दिया गया है , तो इसका क्या मतलब निकाला जाए ।
केंद्र सर्कार के इस सौतेले रवैये से नाखुश यूनानी डॉक्टरों के अखिल भारतीय संगठन ऑल इंडिया यूनानी तिब्बी कांग्रेस ने केन्द्रीय केबिनेट सचिव के समक्ष अपने दुःख को रखा और कांग्रेस ने आयोग में यूनानी चिकित्सा को महत्व देने के लिए एक यूनानी डॉक्टर को उपाध्यक्ष बनाने की मांग की है। इसके लिए यूनानी तिब्बी कांगेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने केन्द्रीय केबिनेट सचिव राजीव गौबा को खत भी लिखा है।
तिब्बी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो0 मुश्ताक अहमद ने गोबा को लिखे खत में गुजारिश की है कि एनसीआईएसएम में जरूरी बदलाव किए जाएं ताकि यूनानी डॉक्टरों के हितों का भी उसी तरह से ध्यान रखा जा सके, जैसा आयुर्वेदिक डॉक्टरों का रखा गया है।
आयोग में हकीम उपाध्यक्ष हो तो बेहतर होगा
कांग्रेस के तरफ़ से लिखे पत्र में कहा गया है कि National Commission for Indian system Of Medicine NCISM में यूनानी चिकित्सा पद्धति को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। और यूनानी के साथ लगातार सौतेलापन देश की प्राचीन पढ़ती से जुड़े हकीमों , डॉक्टरों और दवा निर्माताओं का मनोबल टूटेगा , साथ ही करोड़ों मरीज़ों के विश्वास में भी तब्दीली आए सकती है .
कांग्रेस ने मांग की गई है कि आयुर्वेद के बोर्ड की तरह यूनानी चिकित्सा के लिए भी पृथक बोर्ड स्थापित किया जाए। NCISM में एक यूनानी डॉक्टर उपाध्यक्ष बनाया जाए और अन्य संबंधित बोर्डों में सभी भारतीय चिकित्सा प्रणालियों को समान प्रतिनिधित्व मिले , केंद्र सरकार का इस सम्बन्ध में उठाया गया क़दम न सिर्फ यूनानी पद्धति से जुड़े Profesionals अपितु देश को भी स्वास्थ्य बनाने में में मददगार साबित होगा ।
आपको बता दें भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (आईएमसीसी) अधिनियम 1970 को रद्द कर NCISM कानून 2020 बनाया गया है जो 11 जून 2021 से प्रभावी हुआ है।