मुल्क हमारा है , कोर्ट हमारा है , ज्ञानवापी पर जो भी फ़ैसला आएगा हमें मंज़ूर है : मौलाना अरशद मदनी
…..उम्मीद थी कि 91 के क़ानून के बाद और किसी मस्जिद का मुद्दा नहीं उठेगा…काशी , मथुरा धर्मस्थल के मुद्दे पर बोले मौलाना अरशद मदनी
जमीअत उलमा ए हिन्द (एएम समूह) के सदर मौलाना अरशद मदनी प्रेस वार्ता के दौरान
नई दिल्ली:: जमीअत उलमा ए हिन्द (एएम समूह) के सदर मौलाना अरशद मदनी ने 20 दिसंबर को दिल्ली के रफ़ी मार्ग स्थित Constitutional Club में मीडिया से दोपहर भोज के निमंत्रण पर मुलाक़ात की . उन्होंने मीडिया के साथ बैठकर बात चीत के अपने रिवाज को क़ायम रखने को आपसी प्यार का जरिया बताया .
मुल्क में अम्न व् अमान , सद्भाव और भाईचारा क़ायम रखने के उन्वान पर इस मीटिंग को रखा गया था .सवालों की शुरुआत में जवाब देते हुए अरशद मदनी ने कहा कि 1991 के पूजास्थल कानून बनने के बाद हमें उम्मीद थी कि अब किसी और मस्जिद का मसला नहीं उठेगा .
आपको याद दिला दें कि 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने पूजा स्थल कानून बनाया। ये कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है। अयोध्या का मामला उस वक्त कोर्ट में था इसलिए उसे इस कानून से अलग रखा गया था .
मौलाना ने कहा फ़िरक़ापरस्त (सांप्रदायिक) ताकतों ने नफरत को खत्म नहीं होने दिया . लिहाज़ा ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की ईदगाह का मुद्दा उठाना शुरू कर दिया। मौलाना अरशद ने कहा हम सुप्रीम कोर्ट में अपना मामला रखेंगे।
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि ज्ञानवापी के मामले में मुस्लिम पक्ष की याचिकाओं को इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर से खारिज करने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। मौलाना मदनी ने मीडिया से बातचीत में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए कहा कि ज्ञानवापी मामले में (मस्जिद की) कमेटी उच्चतम न्यायालय जाने की तैयारी कर रही है .
याद रहे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के स्वामित्व को लेकर वाराणसी की एक अदालत में लंबित मूल वाद और ज्ञानवापी परिसर का समग्र सर्वेक्षण कराने के निर्देश को चुनौती देने वाली सभी पांच याचिकाएं मंगलवार को खारिज कर दीं।
मदनी ने कहा हम देश की सबसे बड़ी अदालत में अपना मामला रखेंगे और जो उसका फैसला आएगा उसे मानेंगे, क्योंकि उच्चतम न्यायालय हमारे देश में सबसे बड़ी अदालत है , देश हमारा है और उसके बाद कोई कानूनी रास्ता नहीं बचता।
मदनी ने कहा,मेरा मानना है कि जब 1991 का कानून बन चुका था तो बाबरी मस्जिद के अलावा किसी और मसले को नहीं उठाना चाहिए था और सांप्रदायिक ताकतें इस देश में कभी भी हिंदू-मुस्लिम एकता कायम नहीं होने देंगी।
मौलाना मदनी ने कहा कि सत्तारूढ़ दल में एक भी मंत्री मुसलमान नहीं है जो मुसलमानों की समस्याएं सरकार के सामने रख सके।
मौलाना से सवाल किया गया की क्या वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दारुल उलूम देवबंद के दौरे का न्यौता देंगे तो मदनी ने कहा, दारुल उलूम किसी को आमंत्रित नहीं करता . जो लोग भी वहां गए, खुद गए। जो भी जाता है, उसका हम स्वागत करते हैं। इंद्रा गाँधी ने आने की खुवाहिश ज़ाहिर की हमने इस्तक़बाल किया . कोई आना चाहे उसका हम इस्तक़बाल करेंगे .
इज़राइल फलस्तीन-ग़ज़ा मसले पर मदनी से पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि फलस्तीन के लोगों को उनका आज़ाद मुल्क मिलना चाहिए जो इज़राइल के साथ-साथ रहे। उन्होंने कहा कि गाजा में अब युद्ध विराम होना चाहिए।
मौलाना मदनी से सवाल पूछा गया की राम मंदिर का फैसला आस्था की बुनियाद पर किया गया क्या यह मुद्दा मुसलमानों की आस्था का नहीं है ? उन्होंने जवाब में कहा राम मंदिर का फैसला आस्था के नाम पर हुआ मैं ऐसा नहीं समझता . बल्कि यह तो खुद अदालत ने माना था कि बाबरी मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर नहीं बनाई गयी है .
आपको यहाँ यह याद दिला दें कि २ दिन पहले ही 18 दिसंबर को दिल्ली के ऐवान इ ग़ालिब INSTITUTE मैं मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान और अधिवक्ता मेहमूद प्राचा की शराकत में ” हम भारत के मुस्लमान ” नाम से देश के बुद्धिजीवियों का एक बड़ा जलसा हुआ था .
इसमें मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान ने बाबरी मस्जिद पर अदालत के फैसले पर नाराज़गी जताते हुए कहा . हम बाबरी मस्जिद को मुल्क में अम्न और शांति की बहाली के लिए सब्र कर गए थे .जबकि वह फ़ैसला देश की बहुसंख्यक समुदाय के लोगों कीआस्था के आधार पर दिया गया था .
मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान ने कहा “अब मैं कहता हूँ कि ज्ञानवापी और ईदगाह का मसला मुसलमानों की आस्था का मसला है और अगर इसपर कोई आंच आती है तो भारत का मुस्लमान इसको बर्दाश्त नहीं करेगा और हम सड़कों पर उतर कर शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीके से इसका विरोध करेंगे” .