Grok Row: AI ‘GROK’ के आपत्तिजनक सामग्री के लिए एक्स जिम्मेदार? विवाद के बीच सरकारी सूत्रों का बड़ा दावा
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जो पहले ट्विटर के नाम से था अब प्लेटफॉर्म एक्स X है. बताया जा रहा है अपने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) टूल ग्रोक की तरफ से बनाए गए सभी कंटेंट के लिए X जिम्मेदार हो सकता है।
सरकारी सूत्र के अनुसार, इस मामले पर जल्द ही कानूनी राय ली जाएगी। हाल ही में, कुछ उपयोगकर्ताओं ने एक्स पर भारतीय नेताओं से जुड़े सवाल ग्रोक से पूछे, जिनके जवाब कई बार विवादास्पद पाए गए।
सूत्र ने बताया कि इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स से इस बारे में बातचीत कर रहा है ताकि इसके काम करने के तरीके को समझा और आंका जा सके।
IT मंत्रालय ने ग्रोक-एक्स को भेजा नोटिस?
इसी दौरान सरकारी सूत्रों ने दावा किया कि एक्स या ग्रोक को लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने बड़ी जानकारी देते हुए कहा है कि उसने ग्रोक या एक्स को कोई नोटिस नहीं भेजा है।
मंत्रालय ने बताया की वो एक्स और ग्रोक के साथ बातचीत कर रहा है। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधिकारी एक्स के अधिकारियों से बातचीत कर रहे हैं और जांच कर रहे हैं कि किस स्तर पर भारतीय कानून का उल्लंघन किया गया है।
पुराने मामलों में सरकार की सख्ती
पिछले साल, गूगल के एआई टूल जेमिनी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, जिसके बाद सरकार ने तुरंत कार्रवाई की और एआई कंटेंट पर नए दिशा-निर्देश जारी किए। सरकारी सूत्र ने बताया कि सोशल मीडिया पर कंटेंट को लेकर पहले से गाइडलाइंस लागू हैं और कंपनियों को उनका पालन करना जरूरी है।
भारत सरकार पर X ने कोर्ट में किया मुक़द्दमा
इससे पहले Grok AI के स्वामित्व वाली कंपनी एक्स ने आईटी एक्ट की धारा 79(3) को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट में भारत सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर किया है। कंपनी का कहना है कि सरकार इस धारा का इस्तेमाल मनमाने तरीके से कंटेंट ब्लॉक करने के लिए कर रही है, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है।
एक्स की तरफ से दावा किया गया है कि धारा 69A के तहत ही किसी कंटेंट को ब्लॉक किया जाना चाहिए, लेकिन सरकार एक समानांतर सिस्टम बना रही है, जो क़ानून के ख़िलाफ़ है।
धारा 79 और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की जिम्मेदारी
आईटी एक्ट की धारा 79(1) सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को उनके यूजर्स की तरफ से पोस्ट किए गए कंटेंट के लिए सुरक्षा देती है। लेकिन धारा 79(3) के तहत, अगर कोई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सरकार के आदेशों के बावजूद आपत्तिजनक कंटेंट नहीं हटाता, तो उसे कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
और अगर कोई प्लेटफॉर्म 36 घंटे के भीतर कंटेंट नहीं हटाता, तो उसे ‘सैफ़ हार्बर’ सुरक्षा खोने का ख़तरा होता है और आईपीसी समेत अन्य कानूनों के तहत मुक़द्दमे का सामना करना पद सकता है ।
‘सैफ़ हार्बर’ सुरक्षा क्या है
सेफ़ हार्बर संरक्षण का मतलब है, किसी क़ानून या नियम में ऐसा प्रावधान होना कि कुछ व्यवहार को उल्लंघन नहीं माना जाएगा. यह आमतौर पर किसी अस्पष्ट, व्यापक मानक से जुड़ा होता है.
सेफ़ हार्बर संरक्षण के कुछ उदाहरण:
अगर किसी क़ानून में लिखा है कि ड्राइवरों को लापरवाही से गाड़ी नहीं चलानी चाहिए, तो उसमें एक खंड यह बता सकता है कि 25 मील प्रति घंटे से कम की रफ़्तार से गाड़ी चलाना लापरवाही नहीं माना जाएगा.
xxxxआईटी अधिनियम, 2000 में धारा 79 के तहत मध्यस्थों को सुरक्षित बंदरगाह की सुरक्षा मिलती है. इसका मतलब है कि तीसरे पक्ष की सामग्री के लिए मध्यस्थों को सुरक्षा मिलती है, जब तक कि उन्हें इसकी अवैधता के बारे में कोई जानकारी न हो.
सेफ़ हार्बर संरक्षण से जुड़े कुछ सिद्धांत:
xxx लोगों को यह बताया जाना चाहिए कि उनका डेटा किस तरह से एकत्र किया जा रहा है और इसका इस्तेमाल कैसे किया जाएगा.
xxx लोगों के पास डेटा के संग्रहण से बाहर निकलने और तीसरे पक्ष को डेटा हस्तांतरित करने का विकल्प होना चाहिए.
xxx एकत्रित जानकारी की हानि को रोकने के लिए उचित प्रयास किए जाने चाहिए.
inputs amarujala
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