किसान संगठनों ने दो टूक कहा , “हम कोई बिचौलिया नहीं चाहते , सीधे सरकार के साथ होगी बात. किसानों का समर्थन करने वालों के पीछे केंद्रीय एजेंसी लगाने से भी बाज़ रहने को कहा

नई दिल्ली :किसान आंदोलन के 7 हफ़्तों से चले आरहे गतिरोध के बाद किसान और सरकार के बीच होने वाली बातचीत अब एक मज़ाक़ लगने लगी है हालाँकि किसी भी मसले के हल के लिए दुईपक्षी बात एक शांतिपूर्ण हल माना जाता है , किन्तु इसके लिए दोनों पक्षों की नीयत का साफ़ होना लाज़मी है .
प्रदर्शनकारी किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के बीच हुई नौवें दौर की बातचीत आज शुक्रवार को भी बेनतीजा रही. दोनों पक्षों के बीच न सिर्फ गतिरोध बरकरार है बल्कि कई तरह की भ्रांतियां फेल रही हैं . गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 11 जनवरी को तीन कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है. शीर्ष अदालत ने इस मामले में गतिरोध को समाप्त करने के लिये चार सदस्यीय समिति का भी गठन किया था लेकिन किसान संगठनों ने इस समिति को सरकार समर्थक बताकर उनसे बात न करने का संकल्प दोहराया , किन्तु सरकार के साथ बारबार चर्चा को तैयार दिखे .

किसानों का कहना है कि समिति के सदस्य पहले ही सरकार के कृषि कानूनों के पक्ष में राय दे चुके हैं. तो ऐसे में उसके सात बात करना बेमानी है .हालाँकि भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिन्दर सिंह मान ने समिति से अपने को अलग कर लिया है , उनपर सर्कार समर्थक होने का आरोप है .
आज शुक्रवार की बातचीत के बारे में ऑल इंडिया किसान सभा (पंजाब) के अध्यक्ष बालकरण सिंह बरार ने मीडिया को बताया सरकार अपनी बात पर अड़ी हुई है कि तीनों कानून रद्द नहीं होंगे. हमने सरकार को सुझाव दिया कि इस एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट में जो संशोधन सरकार ने किए हैं, उन्हें सरकार वापस ले ले. पूरे कानून को रद्द करने की जरूरत नहीं है, लेकिन इस पर कृषि मंत्री तोमर ने तुरंत कोई टिपण्णी करने से इंकार कर दिया .
उन्होंने कहा 26 जनवरी को किसान ट्रैक्टर रैली निकाली जाएगी अगले 2 दिन में हम ट्रैक्टर रैली की रूट और अपने विरोध प्रदर्शन की रूपरेखा फाइनल कर लेंगे, इसमें कुछ छुपा हुआ नहीं है. बरार ने कहा कि 26 जनवरी के विरोध प्रदर्शन के कार्यक्रम को हम जल्द ही सार्वजनिक करेंगे.
पंजाब के ही एक दुसरे किसान नेता दर्शनपाल सिंह ने मीडिया को बताया, नौवें दौर की बातचीत 120 परसेंट विफल रही इसका कोई नतीजा नहीं निकला. उन्होंने भी दोहराया , इस एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट में जो संशोधन किए गए हैं, उन संशोधनों को सरकार कानून से हटाए और पुराने कानून को बहाल करें, लेकिन इस पर सरकार ने अपना रुख स्पष्ट नहीं किया और आगे बात नहीं की. 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के सवाल पर जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि 26 जनवरी को हमारी ट्रैक्टर रैली जरूर निकलेगी .

किसान संगठनों ने एक और बात पर ज़ोर दिया कि जिस तरह से सरकार , किसानों का समर्थन करने वालों के पीछे केंद्रीय एजेंसी को लगा रही है उससे ‘बाज़ रहे ‘ इसका नतीजा भी अच्छा नहीं निकलेगा . शुक्रवार की बातचीत के बारे में किसान एकता मोर्चा की ओर से एक वीडियो फेसबुक पर शेयर किया गया है, इसमें बताया गया है , ‘बैठक के दौरान हमने आंदोलनरत किसानों की मदद करने वाले ट्रांसपोटर्स भाई और अन्य किसान साथियों को सरकार की एजेंसियों-NIA आदि की ओर से नोटिस भेजे जाने का मुद्दा उठाया. हमने पूछा कि आंदोलनरत किसानों की मदद करने वालों को परेशान करने की कोशिश सरकार क्यों कर रही है? और वो ऐसा न करे , यह किसानो और सरकार के बीच टकराव को दर्शाती है .
अभिमन्यु के अनुसार, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर बोले, NIA सरकार से अलग स्वतंत्र एजेंसी है तो हमने कहा कि इसी समय नोटिस क्यों दे रहे हैं. कृषि कानूनों लेकर तोमर बोले कि कानूनों को अब सस्पेंड कर दिया गया है, हमने कहा, रिपील और सस्पेंड में फर्क होता है,यह किसानो कि मांग के अनुसार नहीं है .
ऐसे में यह देखना ज़रूरी है , यदि सरकार कानून में संशोधन के लिए तैयार होती है तो इसका मतलब यह साफ़ है कि सरकार द्वारा बनाये नए कृषि क़ानून में ख़ामी है. किसान नेता अभिमन्यु के अनुसार, ‘बैठक में हमने कहा कि सरकार हमें राजनीतिक विरोधी न माने, हमने कोई चुनाव नहीं लड़ा और न ही लड़ने जा रहे हैं.बल्कि हम तो देश के भविष्य को शान्ति पूर्ण देखना चाहते हैं , और इसका एक नमूना सरकार को भारत के किसानो का तारीखी आंदोलन दर्शा रहा है जो लाखों किसानो की मौजूदगी के बावजूद शांतिपूर्ण है .गांधी के उसूलों पर है .