बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का ।
जो चीरा तो क़तरा ऐ खूँ भी ना निकला।।
कुछ ऐसा ही शोर उठा था के जब 9 जून 2024 को नरेंद्र मोदी के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी का सपना पूरा हुआ ।
मगर क्या वास्तव में यह बराबरी, बराबर की है? पंडित जवाहरलाल नेहरू तीन बार प्रधानमंत्री बने, मगर अपने बलबूते , साख और अपने दम खम पर . यहां बीजेपी को बहुमत तक पहुँचने के लाले पड़ गए , यानी हार का ही सामना करना पड़ा.
बैसाखियों के सहारे लड़खड़ाते हुए प्रधानमंत्री पद पर पहुंचे, क्या इसे आप बराबरी कहेंगे । कहिये….. लेकिन बड़ा फ़र्क़ है दोनों आस्तीनों में … जिसका देश की जनता को आभास भी है . लेकिन सियासी हालात की तब्दीली प्रतिपक्ष पार्टियों के लिए सबक़ है . ख़ास तौर से कांग्रेस के लिए .
एक तरफ देश का वह प्रधानमंत्री जो अपने दम पर अपने बलबूते पर तीन बार प्रधानमंत्री रहा दूसरी तरफ बैसाखियों के सहारे ही सही मगर बराबरी तो हो ही गयी भले लड़खड़ाते हुए सही कुर्सी पर क़ब्ज़ा तो हुआ .
देश और दुनिया में प्रचारित किया किया नेहरू का रिकॉर्ड तोड़ दिया। क्या ऐसा हुआ ? नहीं । जवाह लाल नेहरू का प्रधानमंत्रित्व काल 16 वर्ष और 286 दिनों तक चला लगभग 17 वर्ष . रिकॉर्ड तोड़ने का तो सवाल ही नहीं अभी तो बराबरी से भी मीलों दूर हैं नरेंद्र मोदी .
विश्व की सबसे बड़ी पार्टी का नारा अलापने वाली पार्टी बीजेपी ,पूर्ण बहुमत का आंकड़ा तक नहीं छू पाई और 242 पर सिमट गई . मुकाबला करने चले हैं देश के उस प्रधानमंत्री का जिसको चर्चिल जैसा व्यक्ति अपने खेमे में लेना चाहता था।।
ऐसा ही एक शोर और उठ रहा है। पिछली लोकसभा में लोकसभा स्पीकर के पद पर ओम बिरला को दूसरी बार यदि इस पद से नवाजा़ जाता है तो यह भी लोकसभा स्पीकर बलराम जाखड़ की बराबरी कर पाएंगे. मगर यह भी रिकॉर्ड तो नहीं तोड़ पाएंगे केवल बराबरी कर पाएंगे।
ओम बिरला जी को शायद इस बार केंद्रीय नेतृत्व यानी राष्ट्रीय भाजपा अध्यक्ष के पद से नवाजना मुश्किल हो रहा है। सहयोगी दलों की बैसाखी पर चलकर मोदी जी ने प्रधानमंत्री पद तो पा लिया किंतु लोकसभा स्पीकर के पद पर उनकी पसंद में पेंच फंसा हुआ है। सहयोगी दल इसे स्वीकार नहीं कर रहे।
जेपी नड्डा और अमित शाह के बुलावे से बिरला जी को टटोलने का प्रयास किया गया और कन्वेंस करने की कोशिश भी दोनो नेताओं ने की है । क्योंकि जेपी नड्डा और अमित शाह के बुलावे पर यह मीटिंग रखी गई थी इससे जाहिर है कि अभी नड्डा जी का इस पद से हटाना शायद मुमकिन नहीं है। ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व से भी बिरला को हाथ धोना पड़ सकता है . और मुमकिन है राजस्थान का प्रदेश अध्यक्ष बना कर उनको राज्य स्तर तक सीमित कर दिया जाए ।
क्योंकि बीजेपी के ही एक छोटे से कार्यकर्ता से 40-42000 मतों के फ़र्क़ से जीतने के बाद तो शायद यही पद उनके लायक बचता है!!अगर रिकॉर्ड की बात करें तो स्वयंभू पार्टी अपने आप ही अपने रिकॉर्ड बना लेती है और प्रचार प्रसार ज़ोरों से करा देती है।
लेकिन इसमें कोई शक नहीं कई मामलों में इन्होने रिकॉर्ड तो बनाये है जिसे विश्व में कोई नहीं तोड़ सकता। जैसे तीन दिन की सरकार और 13 दिन की सरकार का जो रिकॉर्ड है इसे आज तक ना देश में ना विश्व में कोई तोड़ पाया।
दूसरा विश्व रिकॉर्ड अटक से कटक तक कश्मीर से कन्याकुमारी तक केवल दो सांसदों का विश्व रिकॉर्ड भी भाजपा के नाम ही है। प्रधानमंत्री फण्ड के नाम पर बिना हिसाब किताब बेहिसाब पैसा इकठ्ठा करने का रिकॉर्ड भी बीजेपी के पास है .
दुश्मन मुल्कों से चंदा इकठ्ठा करने का रिकॉर्ड भी इसी पार्टी के प्रधानमंत्री के नाम है . काश यह चतुराई से कमाया हुआ फण्ड देश के काम आता तो अच्छा था मगर अफ़सोस यह तो देश की एकता अखंडता और सम्प्रभुता के लिए ख़तरा बनकर सामने आया .