कोटा राजस्थान
पश्चिम बंगाल में लगातार तीसरी बार ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की जीत के बाद भारतीय राजनीति में यह चर्चा तेज हो गई है कि केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ देश में तीसरा मोर्चा का गठन हो सकता है ! तीसरा मोर्चा बनने पर चर्चा शुरू क्यों और कैसे हुई, यह अलग विषय है, अब तो चर्चा इस बात को लेकर होने लगी है कि तीसरा मोर्चा बना तो उसका नेता क्या पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी होंगी?
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में ममता बनर्जी को लेकर चर्चा होने लगी है ! जब भाजपा सरकार का विकल्प संभावित तीसरे मोर्चे को मान रहे थे तब चर्चा यह हो रही थी कि क्या कांग्रेस के बगैर तीसरा मोर्चा बनना संभव है और क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प गांधी परिवार के बगैर कोई दूसरा नेता बनेगा ? यह सस्पेंस तो अभी भी बरकरार है लेकिन 21 जुलाई बुधवार को सुश्री ममता बनर्जी ने शहीद दिवस के उपलक्ष में राष्ट्रीय स्तर पर वर्चुअल रैली कर एक सवाल खड़ा कर दिया है जिस पर देश के राजनीतिक पंडितों और राजनीतिक विश्लेषकों कि शायद नजर नहीं पड़ी है ,सवाल यह है कि क्या 2024 के आम चुनाव से पहले , क्या कांग्रेस का बिखरा हुआ कुनबा केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ एकजुट होगा ? और क्या यही कुनबा तीसरा मोर्चा की अगुवाई करेगा ?
दरअसल तीसरा मोर्चा खड़ा करने की अटकलें और कांग्रेस कुनबे के एकजुट होने को लेकर सवाल इन 3 चेहरों के कारण उत्पन्न हुए जो पहले कांग्रेसी थे, शरद पवार जिनकी अपनी खुद की एनसीपी पार्टी है, वही ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी है, और प्रशांत किशोर जो राजनीतिक रणनीतिकार हैं ! यह तीनों ही किसी समय कांग्रेस कुनबे के अंग हुआ करते थे .आज यह तीनों ही कुनबे से अलग हैं, लेकिन मौजूदा वक्त में यह तीनों ही भाजपा सरकार के खिलाफ 2024 में होने वाले आम चुनाव के लिए रणनीति बनाते हुए दिखाई दे रहे हैं !
जहां तक कॉन्ग्रेस की बिखरी हुई सियासी गोटों को एकजुट होने की बात करें तो, यह जरूरी नहीं है कि कुनबे से बाहर हुए नेता कांग्रेस के भीतर आकर एकजुट होंगे .यह भी हो सकता है कि कांग्रेस से अलग रहते हुए तमाम नेता एकजुट होकर भा जा पा के खिलाफ मोर्चा खोलें ? कॉन्ग्रेस 7 साल से केंद्र की सत्ता से बाहर है और कमजोर भी दिखाई दे रही है, कॉन्ग्रेस सत्ता से बाहर रहकर कमजोर इसलिए दिखाई दे रही है क्योंकि इसमें बिखराव है , इस कारण ही भाजपा को इसका लाभ मिला , या यूँ कहें की बिल्ली भागों छींका टूटा ! सच यह है कि कांग्रेस को केंद्र की सत्ता से भा जा पा ने न तो बाहर किया और ना ही भाजपा ने कांग्रेस को कमजोर किया बल्कि खुद कांग्रेस के अंदर आपसी Clash ने कांग्रेस को केंद्र की सत्ता से बाहर किया और कमजोर भी किया !और कुछ नीतियों का भी नकारात्मक असर रहा . वरना बीजेपी में वो ताक़त नहीं थी और आज भी नहीं है .यह खुद बीजेपी के कई नेता भी कहते हैं /
कांग्रेस से बाहर निकल कर शरद पवार ममता बनर्जी जगन मोहन रेड्डी जैसे नेताओं ने अपने अपने दल बनाए और उन दलों ने अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस को कमजोर किया ! ममता बनर्जी और जगन मोहन रेड्डी जैसे नेता अपने-अपने राज्यों में सत्ता पर काबिज तो हो गए लेकिन इन नेताओं के कारण कॉन्ग्रेस उन राज्यों में और केंद्र सत्ता से बाहर हो गई .भा जा पा को उन राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव में तो लाभ नहीं मिला लेकिन उनके राज्यों से लोकसभा चुनाव में भाजपा को बड़ा लाभ हुआ !
यही सबसे बड़ा सवाल है कि क्या शरद पवार ममता बनर्जी और प्रशांत किशोर कांग्रेस के उस बिखरे हुए कुनबे को एकजुट कर 2024 में भा जा पा को बड़ी चुनौती दे पाएंगे ?, और क्या यह नेता कॉन्ग्रेस कुनबे को छोड़ भाजपा कुनबे में शामिल हुए नेताओं को भी घर वापसी करने में सफल हो सकेंगे ? यदि कांग्रेस का बिखरा हुआ कुनबा एकजुट हो जाता है तो आगामी लोकसभा चुनाव में यह भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होगी !
कांग्रेस के बिखरे हुए कुनबे के कारण विभिन्न राज्यों में भा जा पा को कॉन्ग्रेस का पारंपरिक वोट मिला जिसके कारण भा जा पा लगातार दूसरी बार केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई , EVM बाबा और बाबा टैगोर में किसका जादू चला , ये जनता भी जानती होगी …! क्या कॉन्ग्रेस अपने पारंपरिक मतदाताओं को समेट कर वापस कांग्रेस में ला पाएगा इसका अभी इंतजार करना होगा ?
लेखक राजनिक विश्लेषक हैं , और समाज सुधारक भी