चंद्रयान 2 और हमारे टॉयलेट्स
by Ali Aadil khan Editor/TOP NEWS GROUP//EDITOR’S DESK
आप भी सोच रहे होंगे क्या बेहूदा Tittle है इस आर्टिकल का , लेकिन कितना ज़रूरी है यह आपको पढ़कर ही पता चलेगा ।सबसे पहले तो आप यह बताएं की आप कोनसा टॉयलेट उपयोग करते हैं , अगर इंडियन या देसी सीट का प्रयोग है तो खैर है पानी की बर्बादी कम होगी और अगर वेस्टर्न टॉयलेट यूज़ करते हैं तो जल संकट का यह भी एक कारण होसकता है ।क्योंकि पहले तो आधे जिस्म तक खुद नहाओ (ग़ुस्ल करो ) फिर पूरी सीट को भी स्नान कराओ ।
आपको बता दें ,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चलाया जा रहा स्वच्छ भारत मिशन एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है । जिसके अंतर्गत भारत सरकार देश को स्वच्छ और सुंदर बनाने के लिए फ्री शौचालय उपलब्ध करा रही है ।इसके लिए ग़रीब परिवारों को 12000 रूपये की रक़म तय की गयी है जो 2 हिस्सों में दी जाती है जिससे की देश को स्वच्छ बनाने में ग़रीबों की भी भागेदारी होसके ।इसी प्रकार चंद्रयान २ भी सरकारी मिशन है ।
चलें ,जो भी है , लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि हमारे स्वस्थ जीवन के लिए जितना ज़रूरी जल ,और थल है उतना ही ज़रूरी मल और मल त्यागने कि जगह का भी स्वच्छ रहना ज़रूरी है , आप कहेंगे यह कोनसी नई बात है बेशक नई बात नहीं है लेकिन जब आप पब्लिक टॉयलेट्स इस्तेमाल करते होंगे तो पता चलता होगा कि इस पर जागरूक अभियान चलाना कितना ज़रूरी है।
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आपको पता है जो लोग Hygiene (स्वच्छता) का ख़ास ख्याल रखते हैं और वो मजबूरन पब्लिक toilets के चक्कर में फस जाते हैं तो यक़ीन मानो वो टॉयलेट यूज़ करने और न करने दोनों हाल में बीमार हो ही जाते हैं , क्योंकि अगर पब्लिक टॉयलेट क्लीन नहीं था जो आम तौर पर नहीं होता ,तो इन्फेक्शन होने का पूरा खतरा और अगर गंदे टॉयलेट की वजह से मल या मूत्र को रोका तो भी बीमार होने का खतरा ।
ऐसे में किसी बात की जानकारी आपको होना किस काम आएगा क्योंकि आप तो मजबूरी यहाँ फस गए , अब एक ही रास्ता बचता है कि आप पहले सीट को अच्छे से खुद साफ़ करें फिर उसको इस्तेमाल करें ,वो भी तभी संभव हो पायेगा जबकि वहां सफाई के लिए पानी और हार्पिक इत्यादि मौजूद हो जिसका उपलब्ध होना लगभग ना मुमकिन है ।
आप तो जानते हैं हमारे सरकारी अस्पतालों , न्यायालयों , थानों , स्कूलों , सिनेमा घरों , रेलवे स्टेशनो , बस अड़डों और दुसरे सरकारी भवनों के toilets कि दयनीय हालत है , सच पूछे तो इन जगहों के टॉइलट्स के पास से भी गुजरने पर कुछ लोगों कि तबियत ख़राब होजाती है अंदर जाने कि तो बात ही छोड़ दीजिये ।
अब यहाँ सवाल पैदा होता है कि इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है पहली बात यह कि सरकारों को इन तमाम सार्वजनिक स्थानों (Public Places) पर उनको स्वच्छ रखने के और इसको सुनिश्चित करने लिए ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए ,जैसे प्राइवेट अस्पतालों , होटलों तथा Corporate Houses में इसका उचित प्रबंध होता है।दूसरे अगर सरकारी भवनों में स्वच्छता सम्बन्धी सामग्री मौजूद रहे तो हर एक उपयोगकर्ता को सीट के उपयोग करने के बाद उसको स्वच्छ रखने कि ज़िम्मेदारी धार्मिक तौर से निभानी चाहिए ।
हमारे वातावरण में ४०% बीमारियां या वायरस गंदगी के इन्ही कारणों से होती हैं ।ऐसे पोलियो मुक्त भारत बनाने की भारत कि कई दशकों से हो रही कोशिश और इसपर किया जाने वाला खर्च ” दो बूँद ज़िंदगी की ” जैसे विज्ञापन चलाये जाएँ , और इसके लिए हमारे बॉलीवुड स्टार्स अभिनेता और अभिनेत्रियां आगे आएं और toilet के सही और स्वच्छ उपयोग के लिए शार्ट फिल्म्स बनायें और हर एक पब्लिक प्लेस पर वो लगातार दिखाई जाएँ.
तो हम समझते हैं इसका काफी लाभ देश को होगा , स्वच्छ भारत अभियान के तहत इस कार्यक्रम को चलाया जाए तो हम भी अपनी सेवाएं देने को तैयार हैं , हालांकि मैं निजी तौर पर अक्सर पब्लिक programmes में इन issues पर बात करता हूँ और लोगों के सामने ज़िम्मेदार नागरिक के कर्तव्यों पर प्रकाश डालकर जागरूक करता रहता हूँ।
ऐसे में चंद्रयान – 2 के समाचार की जगह ,टॉयलेट इस्तेमाल करने के तरीके को साझा करने पर अपना समय लगाना ज़्यादा उचित समझता हूँ , क्योंगी चंद्रयान 2 का समाचार देश के 20 प्रतिशत लोगों के लिए उपयोगी हो सकता है जबकि toilet यूज़ करते समय सावधानी रखने से सम्बंधित सूचना साझा करने से देश के 80 प्रतिशत लोगों का लाभ हो सकता है । हालांकि चंद्रयान- 2 की उपयोगिता से इंकार नहीं किया जा सकता ।
आप यदि टॉयलेट करने के बाद हाथ साबुन या मिटटी से नहीं धोते हैं तो बीमारी के chances बने रहते हैं , टॉयलेट से निकलने से पहले ये काम ज़रूरी करे के Tittle से सौरभ दुवेदी ने अपने चैनल लालनटोप पर एक एक्सक्लूसिव विडिओ बनाया जो मुझे बेहद पसंद आया और मैं उससे प्रोत्साहित भी हुआ । तो अपने दर्शकों और पाठकों को कहूंगा की YOUTUBE पर सौरभ का प्रोग्राम ज़रूर देखें।
यदि कोई शख्स TOILET के बाद हाथ साबुन से थोये बिना खाना खाता या पकाता है तो इससे कई प्रकार के इन्फेक्शन्स होने का खतरा होता है ख़ास तौर से जिनके नाखून बढे हों वो इस बात का ख़ास ख्याल रखें , हालांकि नाखून बढ़ाना खुद एक बीमारी को न्योता है जिसको ग़लती से लोगों ने सुंदरीकरण या फैशन से जोड़ दिया है।
मेरा मानना है की हमारे घरों के टॉयलेट्स , मेहमानों के कमरे और रसोई की तरह साफ़ सुथरे और HYGENIC होने चाहिए । मेरे एक मित्र जो प्रोग्राम PRODUCER भी थे मेरे एक सीरियल की शूटिंग के दौरान एक गेस्ट हाउस में साथ ही ठहरे ,वो मुझसे इस बात से बेहद प्रभावित हुए की मैं जब टॉयलेट से आता था तो पहले से बेहतर हालत मैं करके आता था ।
हमारा मानना है हमारे टॉयलेट्स सुविधाजनक और आरामदायक भी होने चाहिए ताकि हम सुकून से और स्वच्छता पूर्वक अपनी बुनयादी ज़रुरत से फ़ारिग़ हो सकें । किसी इंसान कि सोच का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की उसका टॉयलेट केसा है , मगर अफ़सोस लोग सिर्फ मेहमान खाने (Drying Rooms ) को सजा कर बैठ जाते हैं , और जब मेहमान उनके टॉयलेट को यूज़ करता है तो हकीकत खुल जाती है ।
मैं एक मर्तबा एक दोस्त के घर में टॉयलेट यूज़ करने के लिए जैसे ही घुसा शानदार लेमन टोलेट परफ्यूम की सुगंध आई , Toilet काफी बड़ा भी था वहीँ दीवारों पर बड़ी बड़ी झरनो और खूबसूरत बनों की तस्वीरों के वाल हैंगिंग्स लगे थे , २ बड़ी बड़ी WINDOWS जिनमे खूबसूरत पाम के पेड लगे थे , पता नहीं कहाँ से बहुत ठंडी हवा आरही थी , शायद AC का कहीं से कोई कनेक्शन रहा होगा , बहुत सुकून से में वहां अपनी ज़रुरत से फ़ारिग़ हुआ , यक़ीन मानो एकाएकी वहां से बाहर आने को दिल नहीं चाह रहा था ।
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और बाज़ टॉयलेट तो जहन्नुम का नमूना होते हैं । हालांकि टॉयलेट ज़रुरत पूरी करने की जगह है दिल लगाने की या ENTERTAINMENT की नहीं मगर ऐसा भी तो न हो की आदमी अपनी गंदगी को छोड़कर तेज़ी से बाहर निकलने की जल्दी में रहे ,और हर एक आने वाले के लिए गंदगी का ढेर लगाता जाए ।
याद रखें हमारे हर अच्छे और बुरे अमल का असर हमारी ज़िंदगी पर ज़रूर पड़ता है , अगर हम दूसरों के लिए गंदगी पैदा करेंगे तो हमको भी गंदगी ही मिलेगी , यानी हम अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता का फार्मूला हर जगह लागू न करें तो अच्छा है । होसकता है जहाँ हम गंदगी छोड़कर जा रहे हैं वहां कोई हमारा बहुत मोहतरम , प्रिय , आदरणीय ही को जाना हो जैसे माँ , बाप ,गुरु जी ,पंडित जी , मौलवी जी , बीवी , बच्चे इत्यादि ।
सच्चाई यही है कि हम में से ज़्यादातर लोग बड़े महानु भाव होते या समझे जाते हैं जबकि उनको टॉयलेट भी ठीक से करना नहीं आता है , एक और समाज में बुराई आम है कि बहुत से लोगों को देखा जाता है की मल त्यागने के बाद तो पानी का प्रयोग करते हैं किन्तु मूत्र त्यागने के बाद पानी से साफ़ नहीं करते जबकि दोनों ही नापाकी और गंदगी के ऐतबार से बराबर हैं ।
और कभी कभी तो कई कई बड़े महानुभावों और नेताओं के पास बदबू की वजह से बैठा नहीं जाता की वो दिन भर पेशाब कर कर के ऐसे ही अपनी पतलून और धोती को चढ़ा लेते हैं और पेशाब की काफ़ी मात्रा उनके कपडे में लगती रहती है और एक समय बाद वो दुर्गन्ध पैदा करदेती है ।सच्चाई यही है अभी लोगों से धरती पर चलना नहीं आता, इंसानियत से प्यार और मोहब्बत नहीं आती , रिश्तों को निभाना नहीं आता और बातें ऊंची ऊंची जैसे चंद्रयान की करते हैं , तो मुझे इस अवसर पर बेकल उत्साही साहब का एक शेर याद आता है कि
तुम बाद में बसाना किसी चंद्रलोक को
धरती पे पहले ठीक से चलना तो सीख लो