
Editor’s Desk
Ali Aadil Khan
पांच राज्यों के नतीजे किसान आंदोलन के Fail होने की निशानदेहि करते हैं ?
क्या किसान आंदोलन करोड़ों किसानों के हितों की रक्षा के लिए चलाया गया था ? या फिर बीजेपी को हराने या झुकाने केलिए . जवाब है झुकाने के लिए , और यह आंदोलन एक तरह से किसान शक्ति प्रदर्शन भी कहा जा सकता है , हमारा देश किसान प्रधान देश है पूँजीपति प्रधान देश नहीं है ,इस बात का प्रमाण उस वक़्त मिल गया जब अडानी ग्रुप को लुधियाना स्थित लॉजिस्टिक पार्क बंद करने पड़े थे .और केंद्र सरकार ने 3 किसान बिल वापस ले लिए थे .
और जो लोग कह रहे थे यह आंदोलन जीवियों , खालिस्तानी और आतंकियों का आंदोलन है तो BJP के लिए इससे बड़ी नाकामी कुछ नहीं होसकती कि सरकार की नानक के नीचे आतंकियों और खालिस्तानियों का आंदोलन 13 महीने चला और हमारी राष्ट्रवादी सरकार अपने बनाये क़ानून को वापस लिए बिना उसको ख़त्म नहीं करा सकी , साथ ही झूठे राष्ट्र भक्तों की बहादुरी भी सामने आगई , सोशल मीडिया पर देशभक्ति का नाटक करने वाले भी साल भर तक तमाशा देखते रहे .और अंत्यतय सरकार को आतंकियों , खालिस्तानियों और पाकिस्तानियों (बक़ौल किसान आंदोलन विरोधी ) के सामने झुकना पड़ा.
किसान आंदोलन का चुनावी नतीजों पर बीजेपी सरकार बनाने को लेकर तो वाक़ई कोई असर नहीं पड़ा किन्तु आज़ाद भारत की तारिख में यह पहली बार हुआ की सत्ताधारी पार्टी के प्रत्याशियों को गाँवों में घुसने नहीं दिया गया , उनके वाहनों को क्षतिग्रस्त किया गया , औरतों ने प्रत्याशियों को बुरा भला कहा इत्यादि . सूबे में मुख्यमंत्री , ग्रह मंत्री और प्रधानमंत्री की रैलियों में भीड़ जुटाना मुश्किल होगया , खुद नेता खाली पड़े रैली स्थलों पर आने से पहले ही लौट गए और कहा पब्लिक ही नहीं है तो हम नहीं आते .
पंजाब के चुनावी नतीजों की बात करें तो AAP की तारीखी जीत किसान आंदोलन की सफलता का एक उदाहरण कहा जासकेगा . दिल्ली में सबसे पहले अरविन्द केजरीवाल किसानो के समर्थन में आये . दिल्ली सरकार ने आंदोलनकारियों के लिए सभी सुविधाएँ उपलब्ध कराईं .और पंजाब के किसानो ने भी केजरीवाल को इसका शानदार उपहार देदिया . और कांग्रेस को जो नुकसान हुआ उसके लिए उनका अन्त्यकलह बड़ी वजह बना .
पंजाब में किसान आंदोलन का समर्थन करने वाली तीनो पार्टियां AAP , कांग्रेस और अकाली दल No . 1 , 2 और 3 पर रहीं .संयुक्त समाज मोर्चा बनाने वाले किसान नेता बलबीर सिंह राजयवाल ने राजनितिक पार्टी बनाने की जल्दी की और फिर चुनाव में कूदकर बड़ी सियासी चूक कर दी .
उत्तर प्रदेश के जिन ज़िलों में किसान आंदोलन का केंद्र बिंदु था जैसे शामली , मुज़फ्फर नगर , मेरठ और बागपत , यहाँ कुल 19 विधान सभा सीटें हैं जिनमें से 13 बीजेपी हार गयी , और बीजेपी के बड़े चेहरे संगीत सोम , सुरेश राणा , उमेश मालिक, हुकम सिंह की बेटी मृगांका सिंह अपनी सीट नहीं बचा सके , हुकम सिंह वही हैं जिन्होंने कैराना पलायन का मुद्दा बनाया हालाँकि बाद में उन्होंने इससे अपना पल्ला झाड़ लिया था .और उसी कैराना से नाहीद हसन अपनी सीट जेल से बचाने में सफल रहे .उधर रामपुर से 200 से ज़्यादा मुक़द्दमों के आरोपी आज़म खान भी जेल से ही 60 हज़ार से ज़्यादा मतों से अपने BJP प्रत्याशी से जीत गए .
एक दिलचस्प बात राकेश टिकैत के पैतृक गांव सिसोली का पोलिंग बूथ रहा ….. जागरण के मुताबिक़ किसानों की राजधानी और किसान नेता राकेश टिकैत के गांव सिसोली में कमल के फूल पर जमकर वोट बरसे । जागरण की रिपोर्ट में बताया गया कि भाजपा को 3171 जबकि रालोद को 3400 मत मिले , वहीँ मुज़फ्फर नगर किसान नेता धर्मेंद्र मालिक के अनुसार सिसोली गॉंव में बीजेपी को सिर्फ 1350 और रालोद – समाजवादी गठबंधन को 5500 वोट मिले हैं .राकेश टिकैत पर बीजेपी से सांठ गाँठ के आरोप लगे और उनकी भूमिका सवालों के घेरे में आई है , हालाँकि इन आरोपों की पुष्टि के लिए तथ्य जुटाने में समय लगेगा .
लखीमपुर जो किसान मृत्यु काण्ड के नाम से सुर्ख़ियों में रहा और केंद्रीय ग्रह राज्य मंत्री के बेटे को जेल जाना पड़ा वहां से बीजेपी को आठों सीटें मिल जाना ज़रूर अचमभे में डालता है जबकि विशेषज्ञ इसको EVM Manipulation यानी EVM धान्द्ली से भी जोड़कर देख रहे हैं . जबकि EVM के दुरोप्योग की जगह जगह से ख़बरों का आना भी इसकी पुष्टि करने में सहायक होसकता है .
अब बात मुज़फ्फर नगर की , जहाँ 2013 में सांप्रदायिक दंगों में दर्जनों मासूमों की जान गयी थी और हज़ारों बेघर हुए थे जबकि करोड़ों का माली नुकसान हुआ था , हिन्दू मुस्लिम के बीच गहरी खाई पैदा होगी थी और इसका सीधा लाभ बीजेपी को 2014 के लोक सभा चुनाव में हुआ था . किसान आंदोलन का एक बड़ा कारनामा यह रहा कि जाट और मुस्लमान एक साथ आया , एक ही मंच से अल्लाहु अकबर और हर हर महादेव के नारे गूंजे ,यहाँ हिन्दू मुस्लिम भाई चारा बना और दोनों समुदायों ने आपस में मेल जोल से रहने का संकल्प लिया . साथ ही सांप्रदायिक दंगों के बड़े चेहरों को मुज़फ्फर नगर के सांप्रदायिक सौहार्द ने पराजित कर दिया .जबकि कई परिवार अभी भी अपनों को खोने और बर्बाद होने का ग़म भुला नहीं पाए हैं .
देखना यह है की किसान आंदोलन से देश में भाईचारे का माहौल बाक़ी रहेगा , या फिर क्या 2024 के लोक सभा चुनाव के आते आते नफ़रत के सौदागर सत्ता में आने के लिए इंसानियत और भाईचारे को बर्बाद करने के लिए अपनी राजनीती को तेज़ कर देंगे क्योंकि अब तो कुछ सियासी जमातों को सिर्फ नफ़रत , खौफ , साम्प्रदायिकता और समाज को बांटने की राजनीती रास आगई है . बक़ौल समाजवादी नेता अखिलेश यादव के की देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए जनता को क्रांति करनी पड़ेगी , और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने भी यही कहा अगर चुनाव आयोग इस तरह केंद्र सरकार के कहने पर चलता रहा तो देश का लोकतंत्र नहीं बचेगा . क्या वाक़ई भारत का लोकतंत्र और संविधान खतरे में है ,अपनी राये comment Box में ज़रूर दें .