Ali Aadil Khan Editor’s Desk
ज्योत से ज्योत जलाई जाती है बुझाई नहीं जाती……..
वैसे स्मारक तब्दील होने या फिर विलय करने के लिए नहीं बनाए जाते अलबत्ता अगर ऐसा हो भी जाए तो उसमें कोई हर्ज नहीं होना चाहिए हालांकि हमारे देश में शहरों ,गांवों और जगहों के नाम बदलने का फैशन तो काफी दिन पुराना हो गया है लेकिन इस बीच इस का सिलसिला कुछ ज्यादा ही बढ़ा हुआ नजर आता है जबकि इसका कोई लाभ नज़र नहीं आता ,अलबत्ता नफरत और खिस्यानपन का भाव साफ़ झलकता है . क्योंकि जगहों शहरों या गांवों के नाम बदलना न तो कोई बहादरी है और न विकास .बिलकुल वैसे ही जैसे किसी मुर्दा लाश के कफ़न पर अपनी पसंद का नाम लिख दिया जाए .अब यह अमल जो भी करे ग़लत है .
देश में तरक्की का आधार या विकास की बुनियाद अमन व शांति है और शांति का आधार , सामाजिक इंसाफ़ , समानता और सांप्रदायिक सद्भाव होता है .इसके बिना विकास का तसव्वुर भी ख़ामो ख़्याल है , और सारे दावे और वादे सिर्फ़ जुमले बाज़ी है .विडंबना यह है कि नया इतिहास लिखने की होड़ ने महात्मा को क़ातिल और क़ातिल को महात्मा बना दिया है , अपराधी को हाकिम और मज़लूम को मुजरिम , ऐसे में सिर्फ़ विनाश होगा और विकास एक ख़ुआब रह जायेगा .सरकारें इतिहास को बदलने की जगह हालात बनाने की योजनाएं बनायें , हालात को बिगाड़ने की नहीं …… Central vista , PM House और भव्य मंदिर ,मस्जिद और गुरूद्वारे बनवाने से पहले देश को ज़रुरत अस्पतालों , विश्विद्यालओं और Pollution Free कारखानों ,शुद्ध खाद्यान्न पदार्थ , Genuine Medicine , साफ़ पानी , शुद्ध हवा की है .क्योंकि आलीशान भवन और ऊंची ऊंची मीनारें बनवाने वालों की आत्माएं दुखी हैं , और कहती हैं काश हमने अपनी क़ौम को स्कूल , कॉलेज और अन्य सुविधा केंद्र बना दिए होते , तो आज सुखी आत्माओं के निवास में होते .
एक वो इतिहास था कि जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान से बांग्लादेश की आज़ादी के लिए लड़ी गयी जंग में शहीद हुए जवानों की याद में 26 जनवरी, 1972 को अमर जवान ज्योति का उद्घाटन किया था और अब बिना कोई जंग लड़े प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 25 फरवरी, 2019 को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का उद्घाटन किया जाना किसी कीर्तिमान से कम तो नहीं , इसी को कहते हैं गंजों के शहर में कंघी बेचना ….इस स्मारक में अब तक शहीद हुए देश के 25,942 सैनिकों के नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखे गए हैं। अब अमर जवान ज्योति के विलय से राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का महत्व बढ़ेगा या घटेगा यह अलग बहस है .लेकिन अगर इसका नाम National War Memorial की जगह Indian National Martyrs Memorial रखते तो ज़्यादा उचित होता .क्योंकि बंगला देश में 1971 की आज़ादी के लिए शहीद हुए सैनिकों की याद में पहले से एक National Martyrs Memorial मौजूद है .
इसमें क्या हर्ज था कि राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का वजूद अलग रहता और इंडिया गेट पर पचास वर्ष पूर्व तत्कालीन प्रधान मंत्री इंद्रा गाँधी द्वारा स्थापित की गयी प्रज्ज्वलित ज्योति को अपनी जगह रोशन रहने दिया जाता जो निस्फ़ सदी से एक लम्हे लिए भी नहीं बुझी थी , लेकिन आज उसको बुझा दिया गया ,ज्योत से ज्योत जलने की मसल तो सुनी है किन्तु ज्योत बुझाने का भी इतिहास बना ही दिया गया ,…. वीरगति को प्राप्त अमर जवानों की आत्माएं उनकी शहादत की सांकेतिक ज्योत के बुझने से दुखी तो ज़रूर होंगी , जो 50 वर्षों से इंडिया गेट के प्रांगड़ में वास कर रही थीं .लेकिन यहाँ मामला विलय का नहीं बल्कि तारीख को बदलने का है .
अच्छा होता की हम पाकिस्तान से कश्मीर और चीन से भारत की 38,000 वर्ग किमी जमीन पर अवैध क़ब्ज़े को आज़ाद कराकर एक और अमर जवान ज्योत प्रज्वलित करते , लेकिन अभी तक मोदी जी की लाल आँखें हुई नहीं हैं , जिस दिन हो गईं उसी दिन पाक अधिकृत कश्मीर और कैलाश मान सरोवर हमारे हाथ में होगा वैसे भी देश में ही लाल आँखे करने से फुर्सत नहीं मिल रही .
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