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ऐसे नहीं मिलते माफ़िया मिट्टी में

ऐसे नहीं मिलते माफ़िया मिट्टी में

अतीक अहमद और बेटा असद अहमद : Pic Curtesy aajtak

रजनीश भारती
जनवादी किसान सभा

असद का फर्जी एनकाउंटर अतीक और अशरफ की पुलिस अभिरक्षा में हत्या के बाद सत्तापक्ष के नेताओं के बयान जिस तरह से आ रहे हैं, उससे साफ हो जाता है कि प्रदेश में गैंगवार चल रहा है और गैंगवार को साम्प्रदायिक रूप दिया जा रहा है।

ऐसा करके देश को नफरत और दंगे की आग में जलाने की साजिश हो रही है। यह साजिश सत्तापक्ष की ओर से वर्तमान में नगर निकाय चुनाव और निकट भविष्य में लोकसभा चुनाव में लाभ लेने के लिए भी हो रही है। पुलिस प्रशासन इस घिनौनी साजिश में खुलेआम सत्तापक्ष की मदद कर रहा है।

जब किसी गैंग के सरगना ऊंचे पदों पर पहुंच जायेंगे तो जेल, अदालत, सेना, पुलिस का इस्तेमाल इस तरह होगा ही।

सत्ता पक्ष के नेता का कहना है कि “माफ़िया को मिट्टी में मिला देंगे” और विपक्ष का नेता एक लिस्ट जारी करके बता रहा है कि माफिया को मिट्टी में मिलाने की बात एकतरफा है, वो सत्तापक्ष के माफियाओं को मिट्टी में नहीं मिलाएँगे केवल विपक्ष के माफिया को मिट्टी में मिलायेँगे। सत्तापक्ष और विपक्ष के आरोपों से सिद्ध हो जाता है कि माफियाओं का दो बड़ा गैंग है एक सत्ता में है एक विपक्ष में है।

यदि विपक्ष का आरोप सही है, जो लगता भी है, तो इस तरीके से जब कानून को ताक पर रख कर फर्जी एन्काउन्टर और सत्ताधारियों द्वारा प्रायोजित हत्याएँ करायी जायेंगी तो कोई भी आरोपी न्यायालय के सामने समर्पण नहीं करेगा बल्कि वह जेल, अदालत, पुलिस से बचने के लिए भी छिपकर दूसरे कई अपराधों को अंजाम देता रहेगा।

वो कह रहे हैं माफिया को मिट्टी में मिला देंगे मगर माफिया इस तरह गैंगवार और साम्प्रदायिक उन्माद के जरिए नहीं मिटाए जा सकते। पहले जानना होगा कि माफिया बनते कैसे हैं।

माफिया सिर्फ बन्दूकों से नहीं बनते, बन्दूकों से सिर्फ शूटर बन सकते हैं। माफिया वही बनते हैं जो सैकड़ों/हजारों एकड़ जमीन के मालिक हैं। इतनी बड़ी जमीनों की हैसियत के आधार पर ही वे ठेका, पट्टा, कोटा, परमिट, लाइसेंस, एजेन्सी, अनुदान, सस्ते कर्ज आदि सरकार से हासिल कर लेते हैं।

जमीन की हैसियत के अनुसार ही वे गुण्डे/शूटर पालते हैं। इन्हीं सब रसूखों के बलपर वे सपा, बसपा, कांग्रेस और भाजपा जैसी पार्टियों से टिकट हासिल कर लेते हैं और संसद व विधानसभाओं में पहुँचकर किसानों, मजदूरों, बुनकरों के खिलाफ कानून बनाते हैं तथा पूँजीपतियों को फायदा पहुँचाते हैं।

अत: खेती करने वाली 60% आबादी के पास जमीन न होना तथा मुठ्ठी भर सामन्ती घरानों के पास सैकड़ों/हजारों एकड़ जमीन होना ही आज के रावण की नाभि का अमृत है।

जब तक सैकड़ों/हजारों एकड़ जमीन सामन्ती रावणों के कब्जे में रहेगी तब तक, कितना भी मिट्टी में मिलाने का दम्भ भरें, नये-नये रूप में रावण सत्तापक्ष और विपक्ष में पैदा होते रहेंगे।

विपक्ष से अधिक सत्तापक्ष में ऐसे बहुत लोग भरे पड़े हैं जिनके पास सैकड़ों/हजारों एकड़ जमीन नाभि के अमृत के रूप में आज भी है जबकि वे खेत में पैर भी नहीं रखते।

ऐसे लोगों के कब्जे की जमीनें जब तक भूमिहीन व गरीब किसानों में बाँटी नहीं जाएगी तब तक बड़ी-बड़ी जमीनों के मालिकों को माफिया बनने से रोका नहीं जा सकता और न ही ऐसे एनकाउण्टरों और बुलडोजरों के बल पर माफिया को मिट्टी में मिलाया जा सकता है।

सभार जनमंच

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