
अगर देश की शिक्षा प्रणाली को भी संघ के हाथों में देदिया जाए जिसकी प्रकिर्या शुरू हो गयी है तो इससे देश की सामाजिक , राजनितिक तथा कूटनीतिक परिस्थितियों पर किस प्रकार का नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा , पड़ेगा भी या नहीं , इसपर एक चिंतन.
सस्वतंत्रता संग्राम के दौर से ही संघी विचार धारा एवं कार्यशैली संदेह के घेरे में रही है , संघी संस्था और विचार धारा हमेशा से ही पूंजीवादी और साम्राज्य्वादी अँगरेज़ हुकूमत की सहयोगी और तिरंगे का विरोध करने वाली संस्था के रूप में समझी गयी है .हालांकि आरएसएस हमको अंग्रेज़ों द्वारा प्रचलित कई ऐसी भोंडी रस्मों और fashion का विरोध करती नज़र आई है जो वास्तव में अनैतिक और अमानवीय रही हैं .और उनका विरोध करना ज़रूरी था .
ज़ाहिर है संघ की नीतियों और योजनाओं का विरोध करने वाली भारत में स्वतंत्रता संग्राम को लेकर चलने वाली पार्टी कांग्रेस ही है जो आजतक इसका विरोध करती आई है . साथ ही कांग्रेस पर भी इसके इलज़ाम लगते रहे हैं की उसमें यानी कांग्रेस में भी समय समय पर संघी विचारधारा के लोग उच्च पदों पर आसीन किये गए , और RSS को पालने में कांग्रेस की बड़ी भूमिका बताई जाती रही .अब इस सबके लिए अलग Research की ज़रुरत है चाहें तो आप कर सकते हैं .
यह अलग बात है की राजनीती के मैदान में आज बीजेपी तथा कांग्रेस एक दुसरे के धुर विरोधी के रूप में देखे जा रहा है , और कांग्रेस को गांधीवादी तथा बीजेपी को सावरकर या गोडसेवादी सोच का प्रचारक और संगरक्षक कहा जा रहा है , और किसी हद तक ऐसा है भी और होने में हर्ज भी क्या है सबको अपनी विचार धारा को प्रचारित करने का अधिकार है, बशर्त यह के इस विचार धारा से देश की एकता , संप्रभुता और सुरक्षा को खतरा न हो .हमारे संविधान ने हर मज़हब को उसके प्रचार प्रसार की आज़ादी दी है .
लेकिन एक सवाल आज पैदा हुआ है जिस संविधान के तहत RSS को अपनी विचार धारा को पालने , परोसने और प्रचार करने का का अधिकार मिला , RSS बीजेपी के माध्यम से उसी संविधान को ख़त्म क्यों कर रही है या करना चाहती है .क्या इसके पीछे किसी दुश्मन शक्ति का हाथ है ? यह भी आपके Research करने का विषय है आपको शोध करना चाहिए , सिर्फ ख़बरों को माध्यम नहीं बनाना चाहिए .
हम सब जानते हैं किसी भी विचारधारा के पौधे को फलदार वृक्ष बनाने में शैक्षिक संस्थान एक नर्सरी का काम करते हैं , भारत में शिक्षा संस्थान अभी तक सेक्युलर भारत की शिक्षा देते थे जो अब बदलकर हिंदुत्ववादी भारत की शिक्षा के लिए काम करेंगे . लेकिन यहाँ एक सवाल पैदा होता है क्या हिंदुत्व वादी शिक्षा से भारत में कुछ ऐसा होगा जिससे ग़ैर हिन्दू क़ौमें असुक्षित होजाएंगी , उनको ज़बरदस्ती इस विचार धारा के अनुयाई बनने के लिए मजबूर किया जाएगा , जवाब है नहीं . क्योंकि भारत में जिस अल्पसंख्यक को निशाना बनाये जाने की नीति बनाई जा रही है उसके उरूज और ज़वाल का एक लम्बा इतिहास है , जिसके बारे में अल्लामा इक़बाल ने कहा
जहां में अहल ए इमां सूरत ए खुर्शीद जीते हैं |
इधर डूबे उधर निकले उधर डूबे इधर निकले||
और वैसे भी दुनिया में सबसे ज़्यादा तेज़ी से फैलने और अपनाये जाने वाला मज़हब कहा जाता है इस्लाम .तो ज़बरदस्ती या लालच के माध्यम से नाम के अल्पसंख्यक को तो अपने साथ लाया जा सकता है जो पहले से ही वो सारे काम करता है जो इस्लाम में हराम हैं किन्तु इस्लाम को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता, क्योंकि उसकी ज़िम्मेदारी खुद दुनिया के पैदा करने वाले ने ली है .
ऐसे में होगा यह की जिस विचार धारा को देश पर थोपने की कोशिश होगी या होरही है जो खुद संदेह और आलोचनाओं के घेरे में है , तो नतीजे में सिर्फ अराजकता , आतंक और लूट मार का माहौल बनेगा और देश कमज़ोर और अपंग होजायेगा और यही चाहते है भारत के दुश्मन देश .जबकि हमारी दुआ है और कोशिश भी की देश मोहब्बत, शांति तथा सौहार्द की डोर में पीरा रहे और हम विकास की राहों पर चल सकें .
आज़ाद भारत ने जिस क़दर तेज़ी से अपनी सफलता और विकास की मंज़िलें तय की थीं इतना कोई दूसरा देश नहीं कर सका था , क्योंकि पडोसी देश पकिस्तान जिस राह पर चलकर तबाह हुआ लगभग उसी राह पर आज भारत चलने को है. पाक के साथ साथ फिर भी कुछ मुस्लिम देशों का Support रहा किन्तु भारत का साथ तो नेपाल और श्रीलंक भी देने को तैयार नज़र नहीं आते , ऐसे में हमारी आंतरिक सद्भाव ,भाई चारा , एकता और अखण्डता की शक्ति ही हमको सुरक्षा प्रदान कर सकती है , और हमारा सच्चा आध्यात्म ही हमको बचा सकता है .
एक नज़र उस खबर पर भी डाल लें जिसके बाद मुझे इस लेख को लिखने पर मजबूर होना पड़ा .
यह खबर ‘द टाईम्स ऑफ़ इंडिया,’ (भोपाल संस्करण) के दिनांक 2 मार्च 2021 के अंक में पृष्ठ 5 कालम 1 पर प्रकाशित हुई है। खबर के अनुसार देश के वैज्ञानिकों ने केन्द्र सरकार के इस निर्णय पर सख्त एतराज किया है कि नई शिक्षा नीति के संबंध में जागरूकता फैलाने का कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को सौंपा गया है। संघ की एक आनुषांगिक संस्था को इस उद्धेश्य से सेमिनार/वेबिनार आयोजित करने का उत्तरदायित्व दिया गया है। इस संस्था का नाम है भारतीय शिक्षण मंडल।
वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह अफसोस की बात है कि नई शिक्षा नीति के संबंध में जानकारी देने की जिम्मेदारी संघ से जुड़े संगठन को दी गई है। वैज्ञानिकों ने इस बात पर भी ऐतराज किया है कि संघ से जुड़े इस संगठन को नीति आयोग की स्टेंडिंग कमेटी के एक उपसमूह में शामिल किया गया है। ऐसा करना इसलिए गलत है क्योंकि संघ का शिक्षण के क्षेत्र में कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं है। सच पूछा जाए तो संघ का शिक्षण से कुछ भी लेना-देना नहीं है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि शिक्षा मंत्रालय ने सभी शैक्षणिक संस्थाओं को एक सर्कुलर के द्वारा यह आदेश दिया है कि वे शिक्षण मंडल द्वारा आयोजित गतिविधियों में शामिल हों। शिक्षण मंडल ने यह भी सूचित किया है कि उसे नीति आयोग ने शिक्षाविदों और शैक्षणिक संस्थानों से जुड़कर पूरे देश में नई शिक्षा नीति के बारे जानकारी और जागरूकता का प्रसार करने का उत्तरदायित्व सौंपा है।,,,,,,,,,,,,,,,,,
,ब्रेकथ्रू साईंस सोसायटी ने केन्द्र सरकार से इस निर्णय को रद्द करने का अनुरोध किया है। “हमें यह जानकर गहन अफसोस हुआ कि इतना महत्वपूर्ण कार्य एक निजी एजेन्सी को सौंपा गया है। सामान्यतः यह कार्य किसी ऐसी शासकीय एजेन्सी को सौंपा जाना था जिसके पदाधिकारी और सदस्य प्रतिष्ठित शिक्षाविद् हों।”
साईंस सोसायटी के अध्यक्ष ध्रुव ज्योति मुखोपाध्याय ने कहा कि “यह संदेह करने की गुंजाइश है कि नई शिक्षा नीति के माध्यम से शिक्षा में हिन्दुत्व के विचार को थोपा जा रहा है। नई शिक्षा नीति में अनेक स्थानों पर हिन्दू युग की शिक्षा व्यवस्था का उल्लेख है। अब लगता है कि पूरी शिक्षण व्यवस्था का भगवाकरण करने का इरादा है।”
समाचार प्रेषक
- एल. एस. हरदेनिया