ख़िराज ए अक़ीदत
लाई हयात आये , क़ज़ा ले चली चले !
अपनी ख़ुशी से आये न अपनी ख़ुशी चले !!
हर शै को मौत का मज़ा चखना है …(كلؤ نفس ذائقة الموت) .तकदीर कभी कभी इन्सान के साथ ऐसा खेल खेलती है जब पल भर में सारा खेल बिगड़ जाता है। खुशियाँ ग़म में तब्दील हो जाती है और आँख के आँसू होठों की हंसी छीन लेते हैं।लेकिन वक़्त गुज़रता है और ग़म के बादल छटते हैं , फिर रफ़्ता रफ़्ता ज़िंदगी पटरी पर आती , मगर बहुत दुश्वार गुज़रता है ये सब .
सर्वोदय एज्यूकेशनल ग्रुप की तारीख़ में 17 फरवरी का दिन ठीक एक साल पहले यह बड़ा ग़मगीन दिन था जब सर्वोदय की कहकशां के दो चमकते सितारे अचानक टूटकर गिर पड़े . सर्वोदय की इमारत के 2 Pillars ज़मींदोज़ होगये ,जनाब रफ़ीक़ बेयलिम साहिब और जनाब फ़ुरक़ान अहमद साहिब (मामूँ) ,एक सड़क हादसे में इस दार ए फ़ानी से हमेशा हमेशा के लिए कूच कर गये हैं।
यह सर्वोदय परिवार के लिए एक ऐसा ज़ख्म था जो हर साल हरा होगा ,लेकिन रब की ज़ात ए अक़दस से उम्मीद है की वो अपने ख़ज़ाने से सब्र अता करेगा ,और उसने हम सबको सब्र दिया है , मगर जब भी इन दो सितारों का ख़्याल आता है ,कुछ देर के लिए इदारे का आसमान धुंदला दिखाई देता है। इन दो के चले जाने से एक ख़्वाब अधूरा सा रह गया,मानो गीत से उसका साज़ छिन गया हो , एक दीये से उसकी लौ जुदा हो गयी हो । इन दोनों की शख़्सियत वाक़ई लाजवाब और बे मिसाल थी। ये ऐसे रोशन सितारे थे जो हर अँधेरी रात में हमें रास्ता दिखाते रहे और फिर एक सेहर वो कभी न आने के लिए उफ़क़ में डूब गये।अल्लाह उनकी मग़फ़िरत फार्मा देना , या ग़फ़ूरुर्रहीम ..
मौत तो बरहक़ है , हर नफ़्स को आनी है , और हमारा जिस्म भी एक रोज़ फ़ना होजायेगा । हमने गुज़िश्ता बरस आज ही के दिन जिन्हें सुपुर्द ए ख़ाक किया था, उनका भी दार ए फ़ानी से मुन्तक़िल होना तो तय था , लेकिन अगर कुछ और दिन उनकी सोहबत हमको और हमारे इदारे को मिल जाती तो शायद हम कुछ और बेहतर कर पाते , ज़ुल्मत की गोद में वो इन्सान परेशान हैं जिनको एक जिया की उम्मीद थी , उनको क्या पता था ,लोरी देने वाले ही सरे शाम सो जाएंगे ? शराफ़त , नेकनीयती, तहज़ीब और वफ़ादारी उनका शिआर था। बहुत नेक थे वो लोग ,,,, आह …….
अल्लाह ताला ने इन दो हस्तियों को बेशक उम्र कम दी मगर काम ज़्यादा लिया , ये दोनों कम उम्र में बहुत तेजी के साथ बड़े -बड़े काम कर गए . आज समझ आया इतनी क्यों उजलत रहती थी उन दोनों को , वो हर ज़िम्मेदारी को बस पल भर में कर लेना चाहते थे . इल्म, हिकमत-ए-अमली और काबिलियत तो यकीनन इनकी पहचान थी ,मगर ज़िंदगी में वक़्त बहुत कम था उनको अपने शाहकार दिखाने का ……। सर्वाेदय Educational Group में मुलाज़मत के दौरान जिस कमाल का मुज़ाहिरा इन्होने किया, वो किसी से भी पोशीदा नहीं है। हम सब इन सितारों को शिद्दत से याद करके जज़बाती हो जाते है। इनसे बिछड़ने का ग़म हमारे अश्कों से मुसलसल ज़ाहिर हो रहा है।
इन्सानियत के इन परस्तारों और खिदमत गुज़ारों ने हमारे इदारे में तरक्की के जो बीज बोये , उसकी फ़सल अब लहलहाने लगी है मगर अफ़सोस !….. कि वो अब यह सब देखने और उस पर फख्र करने के लिए हमारे बीच मौजूद नहीं है। हम भीगी पलकों से इन्हे उनके इस ग़ैर मामूली जज़्बे के लिए सलाम करके उनकी मग़फ़िरत की दुआ करते है। आईये ! हम आज यह अहद करें कि उनके अधूरे कामों को अंजाम पूरा करने की पूरी कोशिश करेंगे ,और उनके सुनहरे ख़ुआबों की ताबीर बनकर एक मिसाल क़ायम करेंगे।शायद यही उन्हें हमारी सच्ची ख़िराज ए अक़ीदत होगी। अब सूरज ग़ुरूब हो चुका है और हमें तारों की छाँव में ही तरक़्क़ी और खुशहाली का रास्ता तलाश करना है। बकौल अली आदिल अली …..
“मोमिन की मौत भी यक़ीनन, ऐसी हसीन होती है!
जो भी एक बार मिलता है , तो जीना छोड़ देता है!!”