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ED ने शराब नीति मामले में की एक और गिरफ्तारी

ED ने शराब नीति मामले में की एक और गिरफ्तारी

Excise Policy Case: शराब नीति मामले में ED का एक्शन, अमित अरोड़ा को किया गिरफ्तार

Delhi Excise Policy Case: प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने दिल्ली आबकारी नीति घोटाले के सिलसिले में एक और कार्यवाई करते हुए बडी रिटेल प्राइवेट लिमिटेडके के डायरेक्टर अमित अरोड़ा को गिरफ्तार कर लिया गया है। सूत्रों ने बुधवार को यह जानकारी दी।

ED द्वारा बुधवार को दिल्ली की एक विशेष अदालत में अमित अरोड़ा को पेश करने और दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 मनी लॉन्ड्रिंग मामले में चल रही जांच से सम्बंधित पूछताछ करने के लिए उनकी हिरासत की मांग करने की उम्मीद है। अधिकारियों ने बताया कि अरोड़ा को मंगलवार रात PMLA कानून की अपराधिक धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया।

अब तक 6 आरोपी हो चुके है गिरफ्तार

ईडी इस मामले में अब तक अमित अरोड़ा सहित कुल 6 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है। बडी रिटेल प्राइवेट लिमिटेड के एक अन्य निर्देशक दिनेश अरोड़ा के साथ ईडी और सीबीआई दोनों मामलों में अमित अरोड़ा का नाम आरोपी के रूप में दर्ज है।

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क्या आरोपी है मनीष सिसोदिया के करीबी ?

ईडी ने दावा किया है कि अमित अरोड़ा और दो अन्य आरोपी दिनेश अरोड़ा और अर्जुन पांडे दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के करीबी हैं। इन्होंने ही शराब लाइसेंसधारियों से मिले पैसों को छिपाया था।

इस मामले में अन्य आरोपियों में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, तत्कालीन आबकारी आयुक्त अरवा गोपी कृष्णा, उपायुक्त आनंद तिवारी और सहायक आयुक्त पंकज भटनागर शामिल हैं। पर्नोड रिकार्ड के पूर्व कर्मचारी मनोज राय, ब्रिंडको सेल्स के निदेशक अमनदीप ढाल, महादेव शराब के सनी मारवाह, अरुण रामचंद्र पिल्लई और अर्जुन पांडे इस मामले में कुछ और आरोपी हैं।

अक्टूबर में, ईडी ने मामले में दिल्ली के जोर बाग स्थित शराब वितरक इंडोस्पिरिट ग्रुप के प्रबंध निदेशक समीर महेंद्रू की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली और पंजाब में लगभग तीन दर्जन स्थानों पर छापेमारी की थी।

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CBI ने दाखिल किया आरोपपत्र

सीबीआई ने भी इस सप्ताह की शुरुआत में इस मामले में अपना पहला आरोपपत्र दाखिल किया। ईडी और सीबीआई ने आरोप लगाया है कि आबकारी नीति को संशोधित करते समय परिवर्तन किया गया है।

अकाउंट बुक में की गलत एंट्री

इस दौरान लाइसेंस धारकों को अनुचित लाभ दिया गया, लाइसेंस शुल्क माफ या कम किया गया और संबंधित अधिकारी की मंजूरी के बिना L-1 लाइसेंस बढ़ाया गया। लाभार्थियों ने आरोपी अधिकारियों को अवैध लाभ दिया और इसका पता लगे इससे बचने के लिए अपनी अकाउंट बुक में गलत एंट्री कीं।

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