
Eid 2020: Covid19 के नियमों का हुआ पालन, मुस्लिम धर्म गुरुओं की अपील का रहा पूरा असर
lockdown के चलते देश भर में फीका रहा ईद का जश्न, बाज़ारों में भी छाया रहा सन्नाटा , लाखों करोड़ के कारोबार की पड़ी मार
टाइम्स ऑफ़ पीडिया की तरफ से देशवासियों को ईदुल फ़ित्र की मुबारकबाद

नई दिल्ली: दुनिया भर में ईदुल फ़ित्र (मीठी ईद ) भले 24 मई रविवार को ही मना ली गयी ,लेकिन भारत में 2 या 3 जगहों को छोड़कर ईदुल फ़ित्र सोमवार यानी 25 मई को मनाई गयी . पूरे विश्व में सबसे ज़्यादा धूम से मनाया जाने वाला मुसलमानो का यह त्यौहार इस बार covid 19 महामारी की वजह से फीका रहा .लेकिन रब की तरफ से उसके फरमांबरदार बन्दों को दिया जाने वाला इनाम पूरा पूरा दे दिया गया , इस यक़ीन के साथ उम्मत को सब्र की दिलाई गयी नसीहत .

इस बार इस त्यौहार पर जहाँ मुस्लिम समाज को बज़ाहिर रौनक नहीं मिली वहीँ दूसरी तरफ देश में कारोबारी लोगों को बड़ा नुकसान का आंकड़ा भी सामने आया है , देश के अलग अलग कपडा , चप्पल , ड्राई फ्रूट इत्यादि से जुड़े कारोबारी संगठनों के पदाधिकारियों ने ईद की बम्पर खरीदारी के न होने से लाखों करोड़ के नुकसान का अंदेशा जताया और कहा कि ईद की कमाई साल भर के सभी कारोबारी सीजन में सबसे अधिक होती है .

तो इस बार जहाँ मुस्लिम समाज में ईद की रौनक से मेंहरूम रहने की शिकायत आम तौर से सुनी गयी वहीँ कारोबारी लोगों का दर्द भी कम न रहा . लेकिन इस बीच सबसे अच्छी बात यह रही कि पूरे विश्व में इमामों और आलिमों तथा दुसरे मिल्ली या धार्मिक संस्थाओं के मुखियाओं की अपील का बड़ा असर देखने को मिला . इस बार उलेमा और इमाम हज़रात की अपील का शत प्रतिशत पालन करते देखा गया . साथ ही इस बात से शासन ,प्रशासन और covid19 प्रबंधन Agencies ने राहत की सांस ली , क्योंकि इस बात का खदशा या डर जताया जा रहा था कि अगर मुसलमान नमाज़ के लिए हर साल की तरह इस बार भी ईद गाहों और मस्जिदों के लिए निकल पड़े तो भारी पैमाने पर कोरोना संक्रमण की मार झेलनी पड़ सकती है .

लेकिन जिस सब्र और अनुशासन का पालन मुस्लिम समाज ने किया , हर तरफ इसकी तारीफ की गयी , साथ ही मुस्लमान ईद की खरीदारी से भी बचा रहा जो समाज तथा देश के लिए काफी राहत की बात रही .हालाँकि नफरती मीडिया अपने कमरों कोलेकर घूमता रहा की कहीं से कुछ नमाज़ियों के इकठ्ठा होने की खबर मिले तो जमाया जाए नफ़रत का बाज़ार , और बनाया जाए ईदी जिहाद , अब वो तो कोई भी जिहाद चला सकते हैं उनकी मर्ज़ी . लेकिन यह पटाखा उनका सीला हुआ निकला , खैर …..

देशभर के लगभग सभी राज्यों में इस साल कोरोनावायरस (Coronavirus) के चलते ईद के दौरान कहीं भी रौनक नजर नहीं आई. दिल्ली , हैदराबाद , बेंगलोर , कलकत्ता , श्रीनगर और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी ईद-उल-फितर (Eid-Ul-Fitr) का पर्व सोमवार को पूरी सादगी और अनुपालन से मनाया गया. लॉकडाउन के कारण मस्जिदों और ईद गाहों में सामूहिक नमाज नहीं पढ़ी गई और लोग घरों पर ही रहे.
(COVID-19) महामारी के चलते एकदूसरे से दूरी बनाये रखने के नियम का पूर्णतया पालन करने की मुस्लिम धर्मगुरुओं की अपील पर लोगों ने अमल करते हुए घरों में ही एक साथ लगभग 8 बजे सुबह चाशत की नमाज अदा की , जो ईद की 2 रकत नमाज़ का मुताबादिल बताया गया था . सुबह देश भर की सभी ईदगाहों में सन्नाटा पसरा था . लोगों ने घरों पर परिवार के साथ ईद मनायी.और रिश्तेदारों से ईद मिलने के लिए कोई दुसरे घरों पर नहीं गया इसकी वजह से भी लोगों में काफी मायूसी देखी गयी .

दिल्ली की जमा मस्जिद जो पूरे पुराने शहर की रौनक को समेटे होती थी इस बार इस बात का एहसास दिला रही थी की अगर रब के नाम लेवा दुनिया में न रहे तो कितना सन्नाटा होगा धरती पर , यही हाल फतेहपुरी मस्जिद का भी रहा जहाँ हर दरवाज़े पर फ़रज़न्दाने तौहीद का भारी भीड़ रहती थी वो दरवाज़े भी मानो उनके न आने पर आंसू बहा रहे थे .
याद रहे सरकार ने शादी तथा अन्य प्रमुख कार्यकर्मों में 50 लोगों के शामिल होने की इजाज़त देदी है उसके चलते मुस्लिम समाज का मानना था की मस्जिदों में भी सोशल डिस्टेंसिंग के साथ अलग अलग वक़्त में नमाज़ अदा करने की इजाज़त देदी गयी होती तो मुस्लमान भी अपने इस पर्व को 2 रकअत नमाज़ अदा करके ख़ुशी का इज़हार करते , आपको बता दें ईद की नमाज़ ईद गाहों में आकर पढ़ने का हुक्म इसलिए है कि जिस रब ने रमज़ान जैसा बरकत , रेहमत और जहन्नुम से आज़ादी जैसा महीना आता किया उसका शुक्र अदा किया जाए और इसके अलावा जो लोग साल भर नहीं मिल पाते , इसके ज़रिये पूरी बस्ती शहर या क़स्बे के लोग एक दुसरे की खैर खबर भी ले सकें .

ईद मौके पर दिल्ली की जमा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी , मक्की मस्जिद हैदराबाद के पेश इमाम , मद्रास के शहर क़ाज़ी , बेंगलोर के शाही इमाम बीजापुर के शाही इमाम , दारुल उलूम देओबंद के मोहतमिम और सदर , लखनऊ के नदवातुल उलेमा मोहतमिम ,लखनऊ के धर्मगुरु मौलाना खालिद रशदी फरंगी महली , फतेहपुरी के मुफ़्ती मुकर्रम , बरैली के तौक़ीर रज़ा खान , नोएडा सेक्टर आठ के जामा मस्जिद के इमाम मुफ़्ती मोहम्मद रशीद क़समी ,अजमेर के सज्जादा नशीन ,कलकत्ता के कोलुटोला मरकज़ के अमीर ,टीपू सुल्तान जमा मस्जि कोलकत्ता के शाही इमाम ,जमीअत उलेमा हिन्द के सदर , जमात इस्लामी हिन्द के सदर , निजामुद्दीन दरगाह के सज्जादा नशीन , सहारनपुर मज़ाहिर उलूम के मोहतमिम और दीगर देश के सभी संस्थाओं और ख़ानक़ाहों , मरकजों तथा जमा मस्जिदों के इमामों ने अपने अपने ख्यालात का इज़हार मिले जुले अंदाज़ में किया .
साथ ही अपने ख़ुत्बों (भाषणों ) में ज़मीन से इस महामारी को ख़त्म होने की दुआ की , पूरी इंसानियत की भलाई और चैन की दुआ की और पूरी इंसानियत को इस बात का भी पैग़ाम दिया की इस महामारी को अपने बनाने वाले की तरफ से उसकी मंशा को समझने और खुद को अपने बनाने वाले के हुक्मों पर लाने का इशारा समझें , अगर अब भी न माने तो फिर तबाही मुक़द्दर बनकर रह जायेगी .

इसी के साथ सभी खतीबों और इमामों ने दुनिया और देश की सभी हुकूमतों से इन्साफ को सुनिश्चित करने की बात पर ज़ोर दिया , और कहा की अगर धरती के हुक्मरान अपनी ग़रीब जनता के साथ रहम , भलाई और इन्साफ नहीं करती है तो फिर आसमान वाला हाकिम भी इसको पसंद नहीं करता और धरती को तरह तरह की महामारियों , आपदाओं और अज़ाबों से भर देता है . पिछले दिनों लगातार भूकम्पों का आना इस तरफ इशारा है .
हालांकि इस पूरे महामारी काल में मस्जिदों को अज़ानों से आबाद रखा गया साथ ही 4 या 5 लोगों के नमाज़ अदा करने की तरतीब जारी रही, देश की 20 करोड़ मुस्लिम अवाम के इस अमल की देश की सेक्युलर और इंसानियत परस्त जमातों , समूहों तथा संस्थाओं ने तारीफ की , और कहा वाक़ई इस महामारी काल में मुस्लिम समाज का बड़े पैमाने पर अपने ही घरों में नमाज़ का अदा किया जाना सराहनीये क़दम है किन्तु प्रधान मंत्री , किसी बड़े नेता , सियासी पार्टी या सत्ता पक्ष या विपक्ष के किसी मंत्री की तरफ से अभी तक इस क़दम की आधिकारिक तौर से कोई प्रशंसा नहीं आई है , अगर सरकारों की ओर से मुसलमानो के इस क़दम की सराहना का बयान आता है तो यह इस समाज के होंसलों को बुलंद करेगा और देश के प्रति क़ुरबानी के जज़्बे को भी शक्ति देगा .ऐसा मानना है हमारी आर्गेनाईजेशन टाइम्स ऑफ़ पीडिया का .
साहिब इ निसाब (मालदार ) मुसलमानो ने बड़े पैमाने पर ग़रीब अवाम को फ़ित्रे कि रक़म अदा करने का भी एहतमाम किया जिसका रमज़ान के बाद ईद कि नमाज़ से पहले अदा करने का शरीअत का हुक्म है . असल यही है कि अगर यह खैर ए उमम यानि मुस्लमान अपने रब के हुक्मों पर आजाये तो दुनिया में अम्न , चैन शांति और समृद्धि आजायेगी , चूंकि धरती और ाआसमाँ के निज़ाम इसके अमल से ही चलता है , इसके अमाल रब चाहे होते हैं तो धरती पर अम्न आता है और इसके आमाल मन चाहे होते हैं तो धरती पर बेचैनी आती है , लेकिन ज़ालिमों कि नहूसत का अपना असर रहता है , चाहे वो मुस्लिम हो ग़ैर मुस्लिम ,बाक़ी अक़्वाम का मामला तो आख़िरत में तय होगा .