मैं मुसलमानों को टिकट न दूं’,मिश्रा से मुझे मैसेज भिजवाया बुआ ने: अखिलेश यादव
बीएसपी की एक अहम बैठक में मायावती ने रही-सही कसर भी पूरी कर डाली और बयान दिया कि उनकी नजर में अब अखिलेश यादव का कोई महत्व नहीं है
लोकसभा चुनाव से पहले जब सपा और बीएसपी के गठबंधन का ऐलान हो रहा था तो उस दिन मायावती और अखिलेश यादव के हावभाव को देखकर ऐसा लग रहा था कि अब यह दोनों पार्टियां मिलकर लंबे समय तक राजनीति करेंगी.
सियासी गणित भी उनके पक्ष में था और गोरखपुर-फूलपुर-कैराना के उपचुनाव में मिली जीत से उत्साह व एहम भी चरम पर था.
लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान दोनों ही नेता जमीनी हकीकत को भांप नहीं पाए और सफलता के लक्ष्य को हासिल करने में मुकम्मल failure रहे । इस नाकामी के बाद इल्जामत का दौर चला और गठबंधन भी बिखर गया ।लोक्सभा के नतीजे आते आते उम्मीदें धराशही हो गईँ, जनता का विश्वास नेताओँ की बद नियती का शिकार होगया ।और सपा को 5 तो बसपा को 10 सीटें ही मिल पाईं ।
हालांकि गठबंधन से बीएसपी को ज्यादा फायदा हुआ है क्योंकि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी को एक भी सीट नहीं मिली थी. दूसरी ओर सारे समीकरणों को ध्वस्त करते हुए बीजेपी 62 सीटें लेने में कामयाब हो गई.
इस हार के साथ ही बीएसपी सुप्रीमो मायावती सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को निशाने पर ले लिया और कहा कि सपा अपने कोर वोट यादवों का भी समर्थन नहीं पा सकी और यही वजह है कि उनकी पत्नी चुनाव हार गईं.
मायावती ने इस पर ही बस नही किया उन्होने उत्तर प्रदेश की 11 सीटों पर होने वाले विधानसभा उप चुनाव में भी अकेले लड़ने का ऐलान कर डाला.
हालांकि उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव से उनके रिश्ते पर व्यक्तिगत तौर पर अच्छे हें ।
जबकि अखिलेश यादव अभी तक पूरी तरह से सधे और रक्षात्मक बयान दे रहे हैं. लेकिन रविवार को हुई बीएसपी की एक अहम बैठक में मायावती ने रही-सही कसर भी पूरी कर डाली और उन्होंने अपने बयान से जाहिर कर दिया कि उनकी नजर में अब अखिलेश यादव की कोई अहमियत नहीं है.
इसके बाद से सपा खेमे में नाराज़गी दिखाई दे रही है,और अखिलेश पर इस बात का दबाव आगया है ।टॉप ब्यूरो