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मुझे कुछ कहना है ,मगर,,,,,

मुझे कुछ कहना है ,मगर,,,,,

 

अब्दुल रशीद अगवान

आतिशी जी की 20 अप्रैल की जामिया कलेक्टिवज़ में हुई तक़रीर को सुनकर मुझे अपनी राय के तौर पर कुछ कहना है:

1. इस में कोई शक नहीं है कि आतिशी जी एक अच्छी तालीमयाफ्ता ज़मीनी सतह पर काम करने वाली लीडर हैं और उनके पीछे दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के पिछले चार सालों के वे सारे काम हैं जिनसे राजधानी में लोगों को काफी राहत मिली है जिनमें बिजली, पानी, तालीमी तरक़्क़ी और सेहत के लिए स्कीमें गिनाई जा सकती हैं और जिनका ज़िक्र

ख़ुद उन्होंने भी किया। मगर एक एमपी के तौर पर ओखला के लिए उनका विज़न सामने नहीं आया। यह ऐसा उस वक़्त है जब कि इस मौक़े पर दिल्ली की 70 सीटों के लिए 2014 में उनकी निगरानी में अलग अलग मेनीफेस्टो जारी किये गये थे उसका ज़िक्र हुआ, जिनमें ओखला विधानसभा का भी एक मेनीफेस्टो बना था। आम आदमी पार्टी तब से लेकर आजतक स्वराज की उस स्कीम को भूल गई है जो कि लोकल तरक़्क़ी और देश की सियासत के लिए एक बड़ा नुक़सान है।

2. ओखला में कई दिनों से सरगरम रहने के बावजूद वे शुरू में ही लोगों से लोकल मुद्दे रखने को कहती हैं। जब उनसे पहले अपनी बात रखने को कहा जाता है तो पूरी तक़रीर में वे कोई लोकल इश्यू नहीं रखती हैं जिसका हल एक लोकल एमपी के तौर पर वे करेंगी।

हां लोकल लोगों की बार बार रखी गई इस मांग का ज़िक्र वे डीडीए की अहमियत बताते हुए ज़रूर करती हैं कि दिल्ली में और स्कूलों की ज़रूरत है मगर डीडीए इसमें रुकावट है।

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3. वे लक्ष्मीनगर के एक डीडीए प्लाट का ज़िक्र करती हैं कि उसे हास्पीटल के लिए हासिल करने में क्या रुकावट आ रही है। मगर वे सरिता विहार में मंज़ूरशुदा उस 300 बेड के हास्पीटल का ज़िक्र करना भूल गईं जो 2007 से तामीर का इंतज़ार कर रहा है।

वीओसी ने यह मुद्दा दिल्ली सरकार के सामने सितम्बर 2017 से बार बार रखा और ख़ुद आतिशी जी के सामने 8 जनवरी 2019 में उनके साथ मीटिंग में रखा। मगर लगता है कि न यह मुद्दा उनके सामने है और न सरकार के सामने।

4. दिल्ली की तालीमी तस्वीर को बदलने के लिए दिल्ली सरकार, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जी और आतिशी जी का ज़िक्र हुआ मगर दिल्ली में पिछड़े तबक़ों को बेहतर तालीम देने में आ रही स्कूलों के लिए ज़मीन के मसले के हल करने के लिए 22 फरवरी को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जी और आतिशी जी के सामने होटल रिवर व्यू में तेलंगाना का मोडल रखा गया। मगर उस पर सरकार और वे ख़ुद कुछ करने वाले हैं इसका ज़िक्र तक नहीं हुआ।

5. वे ओखला में पिछले तीन महीनों से जारी सड़क-सीवर के कामों का ज़िक्र करती हैं। मगर ऐसा ही एक दौर 2014 के दिल्ली एसेम्बली इलेक्शन के वक़्त भी देखा गया था जबकि उस वक़्त कांग्रेस सरकार थी।

यह हमारे मुल्क में एक रूटीन बन गया है कि चुनाव से कुछ पहले इस तरह के बड़े काम होते हैं। मौजूदा काम भी उसी रिवायत का एक सुबूत है। ओखला के लोग इन कामों के लिए दिल्ली सरकार का शुक्रिया अदा करते हैं।

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6. पिछले चार-पांच साल से दिल्ली में ज़हरीली हवा एक अहम मसला बन गई है। इस पर आम आदमी पार्टी की सरकार ने क्या किया है उसका कोई ज़िक्र नहीं हुआ।

ओखला में चल रहे कूड़े से बिजली बनाने वाले प्लांट का ज़िक्र भी चलताऊ अंदाज़ में किसी ने उठाया मगर यह बात वीडियो से सामने नहीं आई कि उन्होंने इसका क्या जवाब दिया है।

7. दिल्ली से पार्लियामेन्ट में किसी एक मुस्लिम की उम्मीदवारी पर उनका जवाब था कि आपको यह नहीं देखना चाहिये कि आपका नुमाइंदा किस धर्म से है बल्कि यह देखना चाहिये कि कौन आपके लिए बेहतर है। यह सोच मुल्क में घटती मुस्लिम सियासी नुमाइंदगी को और बढ़ा सकती है।

कुल मिलाकर आतिशी जी लोकसभा चुनाव में सांप्रदायिकता को हराने और दिल्ली में मुकम्मल राज्य का दर्जा हासिल करने के लिए वोट मांगती हुई नज़र आ रही हैं।

अगर वे जीतती हैं तो दिल्ली और देश को एक अच्छा सियासी लीडर मिलेगा मगर शायद ओखला को एक बेहतर एमपी न मिल पाये। इससे पहले भी इस इलाक़े की नुमाइंदगी कई नेशनल लीडर कर चुके हैं मसलन बलराज मधोक, विजय कुमार मलहोत्रा, सुषमा स्वराज, अर्जुनसिंह, वग़ैरह मगर वे लौट कर ओखला नहीं आये।

शायद ओखला के तीन लाख वोटरों को एक बार फिर एक नेशनल लीडर चुनने का मौक़ा मिल रहा है मगर इसके लिए उन्हें अपने फायदे भूलना होगा।

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