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रासुका कितने लोगों के परिवार खा जाएगी , आप देखें

रासुका कितने लोगों के परिवार खा जाएगी , आप देखें

सात महीने से रासुका में फंसे लोगों के परिवार हो गए हैं तबाह- रिहाई मंच

नानपारा से लेकर सरायमीर और सहारनपुर तक रासुका का राजनीतिक इस्तेमाल

बहराइच के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक से मिला प्रतिनिधिमंडल

लखनऊ 23 जून 2018। लखनऊ लौटकर रिहाई मंच ने बताया कि कल बहराइच के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की। सात महीने से जेल में बंद और रासुका में निरुद्ध नानपारा के पांच लोगों की रिहाई के लिए अपील की।
रासुका को न्याय व विधि के विरुद्ध बताते हुए उन्हें मांग पत्रक भी सौंपा और प्रेस वार्ता की। मंच ने आजमगढ़ के सरयामीर तनाव के बाद रासुका की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि प्रदेष सरकार मुस्लिमों-दलितों के खिलाफ राजनीतिक द्वेष के चलते नानपारा से लेकर सरायमीर और सहारनपुर तक रासुका की कार्रवाई कर रही है।
प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए प्रतिनिधि मंडल ने बताया कि जिलाधिकारी माला श्रीवास्तव से मुलाकात में कहा गया कि रासुका में निरुद्ध किए गए लोग आर्थिक रुप से बहुत कमजोर हैं, इनसे राष्ट्रीय सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है। जिलाधिकारी ने आष्वासन दिया कि मामला उनके सामने आने पर वे इसको संजीदगी से देखेंगी।
वहीं पुलिस अधीक्षक बाराबंकी सभाराज से प्रतिनिधि मंडल ने कहा कि मुन्ना, नूर हसन, असलम, मकसूद रजा, मो0 अरषद से समाज में भय या नफरत फैलने का कोई खतरा नहीं है बल्कि उनके जेल में रहने से उनके परिवार के जीवन पर जरुर खतरा है। इस दौरान रासुका में निरुद्ध लोगों के परिजन भी उपस्थित थे। पुलिस अधीक्षक ने मामले पर सहानुभूति पूर्वक विचार करने का आष्वासन दिया।
प्रतिनिधि मंडल में रिहाई मंच अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुऐब, पूर्व आईजी एसआर दारापुरी, सलीम सिद्दीकी, सृजनयोगी आदियोग, अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के पूर्व अध्यक्ष फैजुल हसन, अब्दुल हन्नान, आईएम इस्लाम, सैय्यद शफात अली, नजमुल हसन, शम्षुल हसन, सईद अहमद, वीरेन्द्र गुप्ता, नागेन्द्र यादव, राजीव यादव व पीड़ित परिवार के सदस्य भी शामिल थे।
मुलाकात में रासुका में निरुद्ध मुन्ना की पत्नी मुनीरन और उनके बड़े भाई मदारु, नूर हसन की पत्नी अकीला बानो, असलम की पत्नी शन्नो और मकसूद की पत्नी सलीकुन निषां, अरशद के पिता मो0 शाहिद भी शामिल थे।
गौरतलब है कि 2 दिसम्बर 2017 को थाना नानपारा, बहराइच के गुरघुट्टा में हुई घटना को लेकर जमुना प्रसाद ने 35 नामजद और अज्ञात पर मुकदमा पंजीकृत करवाया था। बाद में पांच को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत निरुद्ध कर दिया गया। रासुका के तहत निरुद्ध व्यक्तियों के परिजनों से मुलाकात और घटना की पड़ताल में यह पाया गया कि गुरघुट्टा गांव में बारावफात के जुलूस के रास्ते को लेकर विवाद हुआ और दोनों समुदाय आमने-सामने आ गए।
प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि उन्हें इस बात का संकेत मिला कि इस टकराव के पीछे प्रधानी का चुनाव और जमीन विवाद भी वजह बना। प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक नूर हसन पुत्र बब्बन को 19 फरवरी 2018, असलम पुत्र मुनव्वर को 22 फरवरी 2018, मकूसद रजा पुत्र खलील बेग को 29 जनवरी 2018 समेत मुन्ना और मो0 अरषद को भी रासुका के तहत निरुद्ध किया गया।
29 जनवरी 2018 को रासुका के तहत निरुद्ध किए गए मकसूद रजा की निरुद्ध अवधि को 24 अपै्रल 2018 को अनन्तिम रुप से परिवर्तित करते हुए छह माह के लिए बढ़ा दिया गया। ठीक इसी तरह मुन्ना, नूर हसन, असलम और मो0 अरषद की भी रासुका अवधि को छह माह तक बढ़ा दिया गया।
मांग पत्रक में कहा गया है कि 2 दिसंबर 2017 को हुए सांप्रदायिक तनाव के बाद दोनों पक्ष नरम हो गए थे जिससे मामला शांत हो गया। इसे मीडिया में आए प्रषासनिक बयानों में भी देखा जा सकता है।
प्रतिनिधि मंडल ने जोर देकर कहा कि इस घटना में जिन व्यक्तियों पर रासुका के तहत कार्रवाई की गई है उनसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कहीं से कोई खतरा नहीं है, बल्कि तकरीबन सात महीने से उनके जेल में रहने से उनके परिवार पर जरुर खतरा खड़ा हो गया है।
मसलन रासुका में निरुद्ध रिक्षा खींचकर परिवार की गाड़ी चलाते रहे नूर हसन की पत्नी अकीला बानो अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ इंदिरा आवास योजना के तहत जिस मकान में रहती हैं उसमें दरवाजा तक नहीं लग सका है। इसी तरह असलम की पत्नी शन्नो हों या मकसूद की पत्नी सलीकुन निषां, उनकी आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय है कि अपने पति से जेल में मिलने के लिए जाने का किराया भी नहीं जुटा पातीं।
ऐसे में वो कानूनी लड़ाई लड़ें कि अपने छोटे-छोटे बच्चों के पेट भरने की लड़ाई। कमोबेष इस पूरे क्षेत्र में लगभग सभी की यही हालत है, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान। सबके सब मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन चलाते रहे हैं। ये लोग गुमटी, रिक्षा खींचकर, ईंट भट्टे पर मेहनत-मजदूरी कर किसी तरह अपने परिवार का जीवन यापन करते थे। इनकी रिहाई से समाज में भय या नफरत फैलने का कहीं से कोई खतरा नहीं है।
जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक से न्यायहित में मांग की गई कि मुन्ना, नूर हसन, असलम, मकसूद रजा, मो0 अरषद पर लगा रासुका खारिज किए जाने की सिफारिष की जाए। प्रतिनिधिमंडल ने पिछले दिनों गुरघुट्टा के ईदगाह में सूअर बांधे जाने जैसी घटना को लेकर कहा कि इलाके में कुछ शरारती तत्व सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोषिष में लगे हैं।
द्वारा जारी प्रतिनिधिमंडल सदस्य
राजीव यादव
9452800752

प्रति,                                                      दिनांक- 22 जून 2018

जिलाधिकारी/पुलिस अधीक्षक 

जनपद बहराइच, उत्तर प्रदेश।

विषय- जनपद बहराइच के थाना नानपारा क्षेत्र स्थित ग्राम गुरघुट्टा प्रकरण में न्याय व विधि के विरुद्ध रासुका लगाए जाने पर प्रतिनिधि मंडल का मांग पत्रक।
महोदय,
उपरोक्त विषय में हम निवेदन के साथ संज्ञान में लाना चाहते हैं कि-
1- यह कि 2 दिसम्बर 2017 को थाना नानपारा, बहराइच में 147, 148, 149, 307, 395, 323, 504, 506, 452, 427, 7 क्रिमिनल लाॅ एक्ट, 3 (2) (5) एसएटी एक्ट के तहत गुरघुट्टा में हुई घटना को लेकर जमुना प्रसाद ने 35 नामजद और अज्ञात पर मुकदमा पंजीकृत करवाया। बाद में पांच को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत निरुद्ध कर दिया गया।
2- यह कि रासुका के तहत निरुद्ध व्यक्तियों के परिजनों से मुलाकात और घटना की पड़ताल में यह पाया गया कि गुरघुट्टा गांव में बारावफात के जुलूस के रास्ते को लेकर विवाद हुआ और दोनों समुदाय आमने-सामने आ गए।
3- यह कि प्रतिनिधिमंडल को इस बात का संकेत मिला कि इस टकराव के पीछे प्रधानी का चुनाव और जमीन विवाद भी वजह बना।
4- यह कि प्रतिनिधि मंडल को प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक नूर हसन पुत्र बब्बन को 19 फरवरी 2018, असलम पुत्र मुनव्वर को 22 फरवरी 2018, मकूसद रजा पुत्र खलील बेग को 29 जनवरी 2018 समेत मुन्ना और मो0 अरषद को भी रासुका के तहत निरुद्ध किया गया।
5- यह कि दिनांक 29 जनवरी 2018 को रासुका के तहत निरुद्ध किए गए मकसूद रजा की निरुद्ध अवधि को 24 अपै्रल 2018 को अनन्तिम रुप से परिवर्तित करते हुए छह माह के लिए बढ़ा दी गई। ठीक इसी तरह मुन्ना, नूर हसन, असलम और मो0 अरषद की भी रासुका अवधि को छह माह तक बढ़ा दिया गया।
6- यह कि 2 दिसंबर 2017 को हुए सांप्रदायिक तनाव के बाद दोनों पक्ष नरम हो गए थे जिससे मामला शांत हो गया। इसे मीडिया में आए प्रषासनिक बयानों में भी देखा जा सकता है।
7- यह कि प्रतिनिधि मंडल ने पाया कि इस घटना में जिन व्यक्तियों पर रासुका के तहत कार्रवाई की गई है उनसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कहीं से कोई खतरा नहीं है, बल्कि तकरीबन सात महीने से उनके जेल में रहने से उनके परिवार पर जरुर खतरा खड़ा हो गया है।
मसलन रासुका में निरुद्ध रिक्षा खींचकर परिवार की गाड़ी चलाते रहे नूर हसन की पत्नी अकीला बानो अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ इंदिरा आवास योजना के तहत जिस मकान में रहती हैं उसमें दरवाजा तक नहीं लग सका है। इसी तरह असलम की पत्नी शन्नो हों या मकसूद की पत्नी सलीकुन निषां, उनकी आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय है कि अपने पति से जेल में मिलने के लिए जाने का किराया भी नहीं जुटा पातीं।
ऐसे में वो कानूनी लड़ाई लड़ें कि अपने छोटे-छोटे बच्चों के पेट भरने की लड़ाई। कमोबेष इस पूरे क्षेत्र में लगभग सभी की यही हालत है, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान। सबके सब मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन चलाते रहे हैं। ये लोग गुमटी, रिक्षा खींचकर, ईंट भट्टे पर मेहनत-मजदूरी कर किसी तरह अपने परिवार का जीवन यापन करते थे। इनकी रिहाई से समाज में भय या नफरत फैलने का कहीं से कोई खतरा नहीं है।
यह प्रतिनिधि मंडल आपसे न्यायहित में यह मांग करता है कि मुन्ना, नूर हसन, असलम, मकसूद रजा, मो0 अरषद पर लगा रासुका खारिज किए जाने की सिफारिष की जाए। हम आपका ध्यान इस बात की ओर भी आकर्षित कराना चाहते हैं कि पिछले दिनों गुरघुट्टा के ईदगाह में सूअर बांधे जाने जैसी खबरें बताती हैं कि इलाके में कुछ शरारती तत्व सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोषिष में लगे हैं।
द्वारा प्रतिनिधि मंडल सदस्य-
एडवोकेट मुहम्मद शुऐब            एस आर दारापुरी                     सलीम सिद्दीकी
अध्यक्ष, रिहाई मंच          पूर्व आईजी (उत्तर प्रदेष पुलिस)
सृजनयोगी आदियोग               विरेन्द्र गुप्ता
  राबिन                                                           राजीव यादव
नानपारा से आए पीड़ितों के परिजन-
मुनीरन और मदारु           अकीला बानो          शन्नो              सलीकुन निषां
(मुन्ना की पत्नी और भाई) (नूर हसन की पत्नी)    (असलम की पत्नी)    (मकसूद की पत्नी)
मोहम्मद शाहिद
(अरषद रजा के पिता)
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