Federation of International Football Association (FIFA) जब 1904 में पहली बार स्थापित किया गया उस वक़्त इसमें कुल बेल्जियम , डेनमार्क , फ्रांस , जर्मनी , नेदरलॅंड्स , स्पेन , स्वीडन , और स्विट्ज़रलैंड देश थे . आज कुल 211 देशों का संगठन FIFA दुनिआ का पसंदीदा टूर्नामेंट बन गया है दुनिया भर में लोग इस टूर्नामेंट को देखने के दीवाने हैं .
कोई साहब गोश्त की दूकान पर गए और उन्होंने क़ुरैशी से पूछा भाई आप फुटबॉल मैच देखते हो क्या ? दूकानदार कुरैशी तुरंत बोला हाँ भाई . ..कल फ्रांसीसियों का मैच कुरैशियों से ही तो था .
बहरहाल कल शानदार खेल का प्रदर्शन (मुज़ाहिरा) करते हुए क्रोशिया FIFA फाइनल में अपने प्रतिद्वेंदी (हिस्बे मुक़ाबिल) फ्रांस से 4 – 2 के फ़र्क़ से हार गया , लेकिन अपने अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खेल प्रदर्शन से पूरी दुनिया के शायक़ीन (रुचि रखने वालों ) का दिल जीत लेगया .
50 हज़ार की आबादी वाला मुल्क क्रोशिया दुनिया के सबसे पसंदीदा टूर्नामेंट के शाहिदों (देखने वालों) के दिलों की धरकन बन गया था .हमारे प्रधान मंत्री जी के बक़ौल सवा सौ करोड़ का हमारा भारत देश FIFA के दर्शकों और प्रशंसकों की दाद और सराहना से महरूम रहा. दुनिया का नौजवानों का लोकतान्त्रिक भारत देश आज साम्प्रदायिकता की लड़ाई में मसरूफ है . इसीलिए FIFA जैसी लड़ाई से बाहर रहा.
आइये आपको फ्रांस की इस जीत के परिपेक्ष (पसे मंज़र) में प्रवासीय खिलाड़ियों की टीम में शिरकत या अनेकता में एकता का एक हसीं रूप दिखाते चलें , फ्रांस की कुल आबादी लगभग साढ़े 6 करोड़ है जिसमें लगभग 41 लाख मुस्लिम्स है , जो अधिकतर अफ़्रीकी प्रान्त के हैं ,इनमें कुछ एशियन्स भी हैं .समाचार यह है की दुनिया की अधिकतर टीमों में प्रवासियों का दबदबा रहा है , इससे पता चलता है की यदि प्रवासियों को उनकी प्र्रतिभाओं के अनुसार मौक़ा दिया जाए तो वो भी देश की सफलता में अपना किरदार (भूमिका) अदा करसकते हैं . मगर यहाँ तो हिन्दू मुस्लिम के खेल से ही फिरसात नहीं है , साम्प्रदायिकता के आधार पर लाशों का खेल खेला जाता है यहाँ और वहां भी ये क्या असल खेल के मैदानों में खेलेंगे …
मुझे मेरे आलोचक (Critics ) भाई ये कहने दें की जब भी देश में मुस्लिम प्रतिभाओं को जिस मैदान में भी मौक़ा मिला है उसने अपने जोहर खूब खूब दिखा हैं , अब यह मैदान चाहे साइंस एंड मिसाइल का हो या खेल का ,जंग का हो या फिल्म का , सियासत का हो या सहाफत का ,ग़ज़ल का हो या गीत का या फिर संगीत का ,ग़र्ज़ हर मैदान में अपना डंका बजा डाला है इस क़ौम के नौनिहालों ने . मगर अफ़सोस इसको बेवफा , राष्ट्र द्रोही, नमक हराम जैसे अल्फ़ाज़ देकर हुब्बुल वतनी (देश प्रेम ) और राष्ट्रीयता को बदनाम किया जाता रहा है .देश पर मरमिटने से लेकर बादशाहातों को क़ुर्बान करदेने तक का इतिहास इसी क़ौम का है और आजतक वीरता , कार्यकुशलता और सद्भाव तथा शांति स्थापना में अपना स्थान बनाया है .जबकि हमारे दुसरे ब्रदर वतन बहु संख्यकों की अधिकाँश पीढ़ी भी देश के विकास और तरक़्क़ी में अपना रोल अदा करती रही है .
फ्रांस कैथोलिक विचार धारा का ईसाई बहुल देश है . आपको याद दिला दें फ्रांस की 2018 की फुटबॉल टीम में 7 मुस्लिम खिलाड़ियों ने भाग लिया जो लगभग कुल खिलाड़ियों का 50% है ,खिलाडियों के नाम इस प्रकार हैं :आदिल रमी , द्जिब्रील Sidibé , बेंजामिन मंडी , पॉल पोग्बा , N’गोलों Khanté , नबील फकीर और ओसामेन Dembélé . आपको बता दें फ्रांस की कुल आबादी का मुस्लिम आबादी (.75%) है .जबकि भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यक लगभग 18% है . मगर यहाँ सभी टीमों में मुस्लिम का % लगभग नहीं के बराबर है .लेकिन जब जब मुस्लिम प्रतिभाओं को रखा गया है तब तब दुनिया ने उनका डंका भी बजता हुआ देखा है ,जिनमें मिसाल के तौर पर , ज़फर इक़बाल हॉकी , सय्यद अब्दुल रहीम कोच फूटबाल टीम 1950 से 1963 , सय्यद किरमानी , अज़हरुद्दीन , नवाब पाटोदी ,इरफ़ान पठान , ज़हीर खान , युसूफ पठान , सानिया मिर्ज़ा वग़ैरा हैं .