पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने जातिगत भेदभाव पर सवाल उठाते हुए देश में एक नई बहस छेड़ दी है , जो आगामी विधान सभा चुनावों में जातिवाद को नए आयाम दे सकती है
हमारा देश पूरे विश्व में अनेकता में एकता के लिए जाना जाता है , और इसी आधार पर भारत की सराहना की जाती है .भारत एक लोकतान्त्रिक तथा बहु जातीय , भाषाई तथा बहु धार्मिक देश होने के बावजूद यहाँ की सियासत जातीय और धार्मिक आधार पर ही टिकी होती है . हर चुनाव में साम्प्रदायिकता और धार्मिक उन्माद को पैदा करने की पूरी कोशिश की जाती है .
ताजा मामला जातीय भेदभाव को लेकर है जिस पर UPA कार्यकाल में लोक स्पीकर रही मीरा कुमार ने सवाल उठाये हैं , मीरा कुमार ने सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि देश में दो तरह के हिंदू हैं- एक जो मंदिर जा सकते हैं और दूसरे जो मंदिर नहीं जा सकते हैं। मीरा कुमार ने कहा कि 21वीं शताब्दी में भी भारत में जातिगत भेदभाव मौजूद है।
पूर्व राजनयिक मीरा कुमार ने कहा, ”बहुत से लोगों ने उनके पिता बाबू जगजीवन राम से हिंदू धर्म छोड़ने को कहा था क्योंकि उन्हें जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता था। लेकिन मेरे पिता ने हिंदू धर्म छोड़ने से इनकार कर दिया, उनका कहना था कि वे इस व्यवस्था के खिलाफ लड़ेंगे।” यह बात मीरा कुमार ने एक कार्यक्रम के दौरान बोलते हुए बताई .
खुद दलित समुदाय से आने वालीं मीरा कुमार ने ये सवाल राज्यसभा सदस्य जयराम रमेश की किताब ‘The Light Of Asia The Poem That Defined Buddha ” के विमोचन के दौरान उठाए। मीरा कुमार ने किताब लिखने के लिए जयराम रमेश को धन्यवाद दिया और कहा कि इस किताब ने सामाजिक व्यवस्था का एक बंद दरवाजा खोलने में मदद की है जिसके अंदर लोगों का न जाने कब से दम घुट रहा था।
इस किताब के बारे में जयराम रमेश ने बताया कि उनकी पुस्तक उस कविता पर लिखी गई है और एक प्रकार से उस व्यक्ति की जीवनी है जिसने बुद्ध के मानवता के पक्ष को देखा। जयराम रमेश ने कहा, “जहां तक बोध गया स्थित महाबोधि मंदिर के प्रबंधन का सवाल है तो, मेरी किताब हिंदू-बौद्ध संघर्ष के समझौते की बात भी करती है। किताब लिखने का एक कारण यह भी था कि मैं अयोध्या के संदर्भ में दोनों धर्मों के बीच संघर्ष के हल को समझना चाहता था। मैं इसके पीछे की असली वजह को समझना चाहता था।”
जयराम ने कहा, ”बहुत से अंबेडकरवादी बौद्ध जो धर्मगुरु नहीं , कार्यकर्ता हैं, उनका कहना है कि अगर रामजन्मभूमि मामले में सौ प्रतिशत नियंत्रण हिन्दुओं को दिया जा सकता है तो भगवान बुद्ध की कर्मभूमि का सौ प्रतिशत नियंत्रण बौद्धों को क्यों नहीं दिया जा सकता है।”
अब यहाँ धर्म और जाती के आधार पर सियासत करने वाली पार्टियों को सोचना होगा की यदि भारत में बौद्ध और हिन्दू आस्थाओं में विश्वास रखने वाले समुदाओं में मतभेद बढ़ा तो देश के दुश्मनो को और बल मिलेगा जिसके चलते यहाँ के अल्पसंख्यकों का Misuse हो सकता है .