
भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली यूनानी , दुनिया में स्वास्थ्य मानव जीवन के लिए हज़ारों वर्षों से अपना योगदान देती आ रही है . इसी तरह आयुर्वेदा का भी योगदान है , आज़ाद भारत में जब हकीम अजमल खान ने तिब्बिया कॉलेज के खोलने का फैसला किया और उसको शुरू करदिया तो महात्मा गाँधी ने हकीम साहब से निवेदन किया , अगर यूनानी में ही आयुर्वेदा को भी आप शामिल करलें और दोनों साथ मिलकर देश की सेवा करें तो ज़्यादा बेहतर होगा . इसपर हकीम साहब ने तुरंत ही गाँधी जी की बात को मान लिया और आज तक उस वादे पर क़ायम है करोल बाग़ तिब्बिया कॉलेज .

लेकिन बहुत अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है की आज़ाद भारत में यूनानी चिकिस्ता पद्धति पक्षपात की शिकार होगई और इसके साथ भेदभाव होने लगा , चिकित्सा जैसे पवित्र पेशे को भी साम्प्रदायिकता के ऐनक से देखा अत्यंत दयनीय और भयानक है . जिससे देश में चिकित्सा के मैदान में भारी गिरावट आगई और दुनिया में अलोपथी के बढ़ते वयवसायिकरण ने अपना वर्चस्व क़ायम कर लिया है . यूनानी को अलोपथी के बढ़ते प्रभाव से कोई दिक़्क़त नहीं अलबत्ता यूनानी और आयुर्वेदा चिकित्सा की भारत में अनदेखी अफसोसनाक है . और यूनानी पद्धति को शायद एक ख़ास धर्म से जोड़कर देखा जाने लगा है जिससे देश के स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी गिरावट आई है . इस सम्बन्ध में All India Unani Tibbi Congress समय समय पर सरकार का ध्यान इस ओर केंद्रित कराती रही है जिससे भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली को ज़िंदा रखा जा सके और भारत को स्वस्थ्य भारत बनाने में अपनी भूमिका निभाई जा सके .
Press Release
नई दिल्ली। ऑल इंडिया यूनानी तिब्बी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व विभागाध्यक्ष यूनानी चेयर, केपटाउन विश्वविद्यालय दक्षिण अफ्रीका प्रोफेसर मुशताक अहमद ने आयुष विभाग पर यूनानी पैथी के साथ पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि आयुष विभाग ने यूनानी पैथी को क्षति पहुंचाकर आयुष मंत्रालय की साख को भी दांव पर लगा दिया है। प्रोफेसर मुशताक का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री राजनारायण के सपनों को साकार करने के लिए देसी चिकित्सा पद्धति के संपूर्ण विकास के लिए अलग से आयुष मंत्रालय का गठन किया।

नवंबर 2014 में मंत्रालय के गठन से आयुर्वेद समेत भारत में प्रचलित मान्यता प्राप्त यूनानी, योगा और सिद्धा समेत होम्योपैथी को देश में समान रूप से विकसित करना था, परंतु खेद का विषय यह है कि आयुष विभाग ने यूनानी चिकित्सा पद्धति का गला घोंट दिया और एनसीआईएसएम के गठन में यूनानी पैथी को सिरे से नजर अंदाज कर दिया, जबकि, सीसीआईएम में यूनानी पैथी और आयुर्वेद साथ-साथ थे।

Dr मुशताक ने कहा कि एनसीआईएसएम के इस बलंडर को दूर करने के लिए संसद में पुन: संशोधन बिल लना होगा। प्रो. मुशताक ने यह भी बताया कि हम प्रधानमंत्री समेत देश के न्यायप्रिय सांसदों के संपर्क में हैं ताकि संसद के आगामी सत्र में इसका समाधान निकाला जा सके और एनसीआईएसएम में यूनानी को उसका वाजिब मुकाम मिल सके।