कितना विडंबनात्मक है की जिस देश में 15 से 24 वर्ष का 53 % नौजवान बेरोज़गार हो ,जिसका Literacy Rate (साक्षरता अनुपात) आजतक 65 % हो .किसान आत्महत्या कर रहा हो ,भूक मिटाने के लिए आज भी देश का एक वर्ग कूड़ेदान से खाना चुन रहा हो , किसान आत्महत्याएं कररहा हो , GDP रेट गिर रहा हो , रूपये के मुक़ाबले डॉलर ऊपर जा रहा हो ,पेट्रोल डीज़ल के दाम लगातार बढ़ रहे हो ,खाद्द्य पदार्थ और दूसरी ज़रुरत की वस्तुएं तथा सब्ज़िओं और दालों के दामों में लगातार विरद्धि हो रही हो , खुले में शौच करने वालों का भी अनुपात 40 % है .
आज भी 240 मिलियन लोग गावों में बिना बिजली के रहते हैं .और भी बहुत कुछ ऐसा है जिसकी देश को ज़रूरत है मगर अफ़सोस हमारे देश की सत्ता धारी पार्टियां और विपक्ष, एंटी रोमिओ , लव जिहाद , तीन तलाक़ , गो रक्षा , अज़ान पे पाबंदी , हज पे सब्सिडेरी ,नए साल मनाये जाने पर पाबंदी , क्रिसमस पर पाबंदी , और किसके घर में क्या पका किसने क्या खाया जैसे मुद्दों पर बहस कररही है .और तो और 4G और 6G के दौर में गाये के पेशाब व बैल पर आईटीआई में शोद्ध कराने की बात की जारही है वाह क्या मुद्दे चुने गए हैं TV चैनलों पर बहस और शोद्ध के।
देश की जनता वही पुराना हिन्दुस्तान चाहती है जिसमें गंगा जमनी तहज़ीब थी ,खुशीराम और सुकून अहमद बथुए के साग की रोटी साथ बैठक अपने घर के चबूतरे पर बैठकर खाते थे , मुनीरा और मीरा एक साथ गुड़ियों के खेल खेलती थी , राजेश और राशिद गुल्ली डंडा खेलते खेलते एक दुसरे के घर सोजाते थे , ईद पर रामू , हामिद के साथ ईदगाह जाता था और दीवाली के दिए मेहरबान और पंकज साथ मिलकर जलाते और रौशनी करते थे ।वही हिंदुस्तान चाहिए आज देश की जनता को .
किसने छीने वो दिन जब सर्दियों के सूरज में हिन्दू मुसलमान और सिक्ख सब भाइयों की तरह घरों से निकलकर बीच चौक में बैठकर अपने घरेलू मसले आपस में साझा करते थे .मुझे याद है हमारे वालिद के दोस्त कर्ज़न चौहान चाचा ईद के दिन सुबह सुबह दूध की बाल्टी भरे चले आते थे और ईद की नमाज़ के बाद साथ बैठकर सिवइयां खाते थे ।
आज बढ़ते पूंजीवाद और सत्ता की होड़ ने साम्प्रदायिकता व नफरत का बाजार गर्म करदिया है ,हिन्दू मुस्लिम को ही अलग नहीं किया बल्कि भाई को भाई से जुदा करदिया है , टीवी पर चीखते एंकरों पर ज़बरदस्त प्रेशर है की किसी सूरत में जनता को उसके बुनयादी मसलों
के बारे में सोचने का मौक़ा ना आने दो , हिन्दू नौजवानो को आस्था के नाम पर भटकाया जारहा है ,उनको अपराधी बनाया जारहा है ताकि सरकार की नाकामियों पर पर्दा डाला जासके .आज TV चैनलों पर होने वाली बहस पर जनता इमोशनल होती है जिसके बाद वो खुद को ठगा और लुटा महसूस करती है .यह भी विडंबनात्मक है कि जनता की आवाज़ कहलाने वाला मीडिया सरकारी ,पूंजीवादी और अवसरवादी बन गया है .
ईमानदारी से अगर देश में सर्वे कराया जाए कि तीन तलाक़ के मुद्दे पर क़ानून बनाना ज़रूरी है या Food Adulteration (खाद्य पदार्थों में मिलावट ) पर या नक़ली दवाएं बेचने वालों के विरुद्ध , बाजार में खाने पीने की नक़ली सामग्री बेचने वालों के विरुद्ध , तो आपको यक़ीन दिलाने की ज़रूरत नहीं 85 % देश की जनता तलाक़ के मुद्दे को छोड़ इन्ही मुद्दों पर क़ानून बनाने के हक़ में अपनी राये रखेगी . यदि यह परसेंटेज 50 % पर आती है तो फिर देश के भविष्य पर बहस करने की ज़रुरत होनी चाहिए और देश की दिशा और दशा दोनों का मंथन होना चाहिए .
आप ही इन्साफ से बताओ देश की जनता को आज अच्छी सेहत ,गुणवत्ता पूर्ण और फ्री पढ़ाई , शुद्ध खाने पीने के सामान , ओरिजिनल दवाएं ,फ्री इलाज ,साफ़ सुथरी फ़िज़ा , सस्ती बिजली पानी , स्वच्छ और साफ़ सिनेटशन ,साफ़ सुथरे पार्क , खेल के बड़े बड़े मैदान , रोज़गार , बेख़ौफ़ और सोहाद्र पूर्ण माहौल ,भाई चारा , अम्न ओ शान्ति चाहिए या तीन तलाक़, हज पर मेहरम साथ जाएगा या नहीं , मुस्लिम औरतें बुर्का पहनेंगी या नहीं , मुसलमान दाढ़ी रखे या न रखे , खाने में लोग वेज खाएं या नॉन वेज ,सिक्ख पगड़ी पहनकर मोटर साइकिल चलाएं या हेलमेट लगाकर ,दलित आंबेडकर शोभा दिवस मनाएं या न मनाये , ईसाई अपनी स्वास्थ संस्थाएं और सेवा संस्थाएं चलाएं या नहीं ? अच्छा आप मुझे यह तो बता दो कि क्या तीन तलाक़ का मुद्दा देश में विकास लाएगा ?Editor’s des
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