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सिंधु जल संधि पर पाकिस्तान और चीन के साथ…..

सिंधु जल संधि पर पाकिस्तान और चीन के साथ…..

Edited by :Ali Aadil Khan editor in chief

“सिंधु जल संधि पर पाकिस्तान और चीन के साथ भारत की जल कूटनीति और रणनीति को समझिए”

सिंधु जल संधि पर संकट का सटीक सच, आंकड़ों पर आधारित विश्लेषण ,यह संकट विश्व युद्ध का बन सकता है कारण

भारत पर भड़क उठा पाकिस्तान, दे रहा गीदड़ भभकी  

भारत के दो प्रमुख बांध और पाकिस्तान की बढ़ती चिंता

भारत को चीन की चेतावनी: पानी की जंग का दूसरा मोर्चा

पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को जल संबंधित आंकड़े साझा करना बंद कर दिया, तो चीन ने न केवल भारत को नसीहत देना शुरू किया बल्कि परोक्ष रूप से धमकी भी दी। हालांकि, खुद चीन लंबे समय से पानी को भारत के खिलाफ एक रणनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करता आ रहा है।

 

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत यह स्पष्ट कर चुका है कि अब ‘पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते।’ इसी नीति के तहत भारत ने 22 अप्रैल के बाद पाकिस्तान की ओर बहने वाली सभी छह नदियों के जल का उपयोग अपने हित में करने का निर्णय लिया और सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया।

इसका असर अब पाकिस्तान पर दिखने लगा है — ख़रीफ़ की फसल की बुवाई का समय आ चुका है, लेकिन जल संकट ने उसकी कृषि को गंभीर संकट में डाल दिया है। झेलम नदी पर स्थित मंगला बांध और सिंधु नदी पर तरबेला बांध में जलस्तर खतरनाक रूप से घट चुका है।

पानी की किल्लत से जूझता पाकिस्तान

Indus River System Authority के अनुसार, पाकिस्तान के प्रमुख बांधों में जलस्तर औसतन 21% कम हो गया है, जबकि मंगला और तरबेला बांध की लाइव स्टोरेज क्षमता घटकर महज 50% रह गई है। स्थिति और गंभीर इसलिए हो गई है क्योंकि चिनाब नदी पर स्थित मराला वॉटरवर्क्स तक भी पर्याप्त पानी नहीं पहुंच रहा।
हालांकि, आगामी मॉनसून से कुछ राहत मिलने की उम्मीद है, लेकिन फिलहाल पाकिस्तान में पानी का संकट विकराल रूप ले चुका है। सिंध प्रांत के बड़े हिस्से में सूखे की स्थिति बन चुकी है — यहां इस सीज़न में 62% कम बारिश हुई है, जबकि बलूचिस्तान में वर्षा 52% कम दर्ज की गई।

संयुक्त राष्ट्र की खाद्य और कृषि संस्था (FAO) के मुताबिक, पाकिस्तान दुनिया के सबसे अधिक जल संकटग्रस्त देशों में से एक है। पाकिस्तान की जीडीपी में कृषि का योगदान 25% है और 37% आबादी की आजीविका खेती पर निर्भर है। ऐसे में आने वाले दिनों में जल संकट पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने दोनों पर भारी पड़ सकता है।

सिंधु जल संधि पर संकट का सटीक सच, आंकड़ों पर आधारित विश्लेषण ,यह संकट विश्व युद्ध का बन सकता है कारण

भारत पर भड़क उठा पाकिस्तान, दे रहा गीदड़ भभकी

सिंधु जल संधि के स्थगन के बाद भारत ने पाकिस्तान को जल प्रवाह के आंकड़े देना बंद कर दिया है। अब पाकिस्तान को यह जानकारी नहीं मिल रही कि भारत कब अपने बांधों से पानी छोड़ेगा या रोकेगा। भारत की इस रणनीति से पाकिस्तान की बेचैनी बढ़ गई है, और अब वह धमकी भरे सुर अपनाने लगा है।

पाकिस्तान के नेता और सैन्य अधिकारी इस बात से अवगत हैं कि जल संकट बेहद गंभीर रूप लेने वाला है। इसी के चलते पाकिस्तानी सेना के जनरल शमशाद मिर्ज़ा ने हाल ही में बयान दिया:

“सिंधु जल संधि को स्थगित करना और पानी को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करना अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है। यह पाकिस्तान के अस्तित्व के लिए खतरा है। अगर पाकिस्तान के हिस्से का पानी रोका या मोड़ा गया तो इसे युद्ध की कार्यवाही माना जाएगा।”

पाकिस्तान को क्यों सताने लगा है पानी का डर?

पाकिस्तान को अब यह एहसास हो गया है कि वह जल्द ही गंभीर जल संकट का शिकार हो सकता है। लेकिन यह संकट आखिर कैसे पैदा होगा? इसे समझने के लिए पहले यह जानना ज़रूरी है कि भारत से छह प्रमुख नदियां पाकिस्तान में प्रवेश करती हैं।

इनमें से सिंधु, झेलम और चिनाब को पश्चिमी नदियां कहा जाता है। सिंधु जल संधि के तहत इन नदियों पर पाकिस्तान को लगभग असीमित अधिकार प्राप्त हैं, जबकि भारत को केवल सीमित उपयोग की अनुमति है। भारत इन नदियों के पानी का उपयोग पीने, सिंचाई, और रन-ऑफ-द-रिवर जलविद्युत परियोजनाओं के लिए कर सकता है, लेकिन वह इनका प्रवाह मोड़ नहीं सकता

वहीं, रावी, व्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां कहा जाता है और इन पर भारत को पूर्ण अधिकार है। फिर भी, सच्चाई यह है कि भारत से निकलने वाली इन सभी नदियों का लगभग 80% पानी पाकिस्तान में बह जाता है, और भारत केवल 20% का उपयोग कर पाता है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि पाकिस्तान भौगोलिक रूप से डाउनस्ट्रीम में स्थित है और नदियों की प्राकृतिक ढाल पानी को उसी दिशा में बहने देती है।

ऐसे में अगर भारत जल नीति को और सख़्त करता है, तो सबसे बड़ा प्रभाव चिनाब नदी पर पड़ सकता है। भारत इस नदी पर कई महत्वपूर्ण बांध बना चुका है और कुछ पर काम चल रहा है। चिनाब पर जिन प्रमुख परियोजनाओं का पाकिस्तान पर सीधा असर पड़ सकता है, उनमें शामिल हैं…

  • पाकलदुल (1000 MW) – निर्माणाधीन
  • दुलहस्ती (280 MW) – पूरा
  • रातले (900 MW) – निर्माणाधीन
  • बगलिहार (1000 MW) – 2009 में पूरा
  • सावलकोट (1856 MW) – निर्माणाधीन
  • सलाल – 690 MW – 1987 में पूरा

भारत के दो प्रमुख बांध और पाकिस्तान की बढ़ती चिंता

इनमें दो बांध विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। पहला है रामबन जिले में स्थित बगलीहार बांध, जिसकी क्षमता 1000 मेगावाट है और यह 2009 से संचालन में है। दूसरा है रियासी में स्थित चिनाब नदी पर बना सलाल बांध, जो 690 मेगावाट की क्षमता के साथ 1987 से कार्यरत है। यानी दोनों बांधों से भारत बिजली उत्पादन कर रहा है और वे पूर्ण रूप से सक्रिय हैं।

22 अप्रैल के बाद से, भारत ने इन दोनों बांधों से जुड़ी जल प्रवाह और नियंत्रण संबंधी सूचनाएं पाकिस्तान के साथ साझा करना बंद कर दिया है। इसके चलते पाकिस्तान इन नदियों से मिलने वाले पानी की कोई स्पष्ट योजना नहीं बना पा रहा। भारत अब अपनी सुविधा के अनुसार इन बांधों से पानी रोक या छोड़ रहा है, जिससे पाकिस्तान की कृषि और जल प्रबंधन व्यवस्था प्रभावित हो रही है।

अब यही सलाल बांध, जो चिनाब नदी पर भारत की आख़िरी बड़ी परियोजना है, पाकिस्तान के लिए एक नई चुनौती बनकर उभर सकता है। लेकिन यह कैसे संभव है? इसे समझने से पहले यह जान लेते हैं कि एक बांध वास्तव में काम कैसे करता है, और कैसे यह किसी देश की जल नीति का एक रणनीतिक हथियार बन सकता है…

कैसे काम करता है बांध और क्यों सलाल बना पाकिस्तान की चिंता का कारण

किसी भी नदी पर बांध (डैम) बनाने का मूल उद्देश्य होता है – पानी को नियंत्रित कर उससे बिजली पैदा करना। इसके लिए पहले नदी के प्रवाह को रोका जाता है, जिसके लिए ईंट, कंक्रीट या मिट्टी से बनी एक मज़बूत दीवार खड़ी की जाती है। आमतौर पर नदी तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरी होती है और चौथी ओर यह बांध बनता है। पीछे से आता पानी धीरे-धीरे इकट्ठा होकर एक जलाशय बनाता है।

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बांध में इकट्ठा पानी सुरंगों के ज़रिए एक निश्चित ऊंचाई से टर्बाइनों पर गिराया जाता है। पानी की गति से टर्बाइन्स घूमती हैं, जिससे बिजली का उत्पादन होता है।

हालांकि, पहाड़ी नदियों में पानी के साथ गाद (सिल्ट) भी आती है — यह मिट्टी और चट्टानों के कटाव से आती है। समय के साथ ये सिल्ट बांध के तल में जमा हो जाती है, जिससे भंडारण क्षमता घटने लगती है। इसे रोकने के लिए बांधों में डिसिल्टिंग बेसिन और स्लूस गेट्स बनाए जाते हैं। स्लूस गेट्स खोलकर गाद को आगे बहा दिया जाता है — इसे फ्लशिंग कहा जाता है। इस प्रक्रिया से जलाशय की क्षमता बनी रहती है।


सलाल डैम: तकनीकी समझौता और रणनीतिक असर

भारत के प्रमुख बाँध और सिंधु जल संधि का इतिहास

अब बात करते हैं सलाल बांध की, जो चिनाब नदी पर भारत द्वारा सिंधु जल संधि के तहत बनाया गया रन-ऑफ-द-रिवर प्रोजेक्ट है। इसकी क्षमता 690 मेगावाट है। इस परियोजना पर भी पाकिस्तान ने निर्माण के समय कड़ी आपत्ति जताई थी — जैसे उसने बाद में बगलीहार बांध को लेकर की।

असल में, शुरुआत में सलाल को एक स्टोरेज डैम के तौर पर डिजाइन किया गया था, जिससे बिजली उत्पादन की क्षमता अधिक हो सकती थी। लेकिन पाकिस्तान और वर्ल्ड बैंक के दबाव के चलते इसे रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना में बदला गया। पाकिस्तान को डर था कि स्टोरेज डैम होने की स्थिति में भारत युद्ध या तनाव के दौरान पानी रोक या छोड़कर बाढ़ या जल संकट पैदा कर सकता है।

सलाल बांध में अंडर-स्लूस गेट्स बनाए गए थे ताकि विभिन्न स्तरों पर से पानी और सिल्ट को निकाला जा सके, लेकिन पाकिस्तान के विरोध के कारण भारत ने इन गेट्स को स्थायी रूप से कंक्रीट से प्लग कर दिया। नतीजा यह हुआ कि पिछले 38 वर्षों में सिल्ट इतनी अधिक जमा हो गई है कि अब बांध की जल भंडारण क्षमता 50% से भी कम रह गई है।


 मौजूदा स्थिति में सलाल डैम कैसे पाकिस्तान के लिए एक रणनीतिक बाधा बन सकता है, या फ्लशिंग तकनीक फिर से शुरू करने की संभावना भारत को क्या लाभ दे सकती है?

सलाल डैम से सिल्ट हटाने की रणनीति और इसके प्रभाव

अब अगर सलाल बांध में जमा सिल्ट को पूरी तरह से हटाना है, तो इसके लिए सबसे पहले अंडर-स्लूस गेट्स को दोबारा खोलना होगा, जिन्हें पहले कंक्रीट से स्थायी रूप से बंद कर दिया गया था। इन गेट्स तक पहुंचना आसान नहीं है, क्योंकि वर्षों की गाद ने बांध के निचले हिस्से को पूरी तरह ढक दिया है। लेकिन इंजीनियरिंग में इसका भी समाधान है।

इस प्रक्रिया में एक बड़ा, चार से पाँच मीटर चौड़ा स्टील सिलिंडर उपयोग में लाया जा सकता है — ठीक वैसे ही जैसे नदियों में पुलों के खंभे (पिलर्स) बनाने के लिए किया जाता है। इस सिलिंडर को सिल्ट में धीरे-धीरे नीचे की ओर उतारा जाता है, जिससे वह अंडर-स्लूस गेट की जगह तक पहुंच सके। वहां पहुंचने के बाद, आधुनिक मशीनों की मदद से कंक्रीट को हटाया जा सकता है, जिससे गेट्स को फिर से सक्रिय किया जा सके।

एक बार गेट की मरम्मत हो जाए, तो भारत धीरे-धीरे सिल्ट को बाहर निकाल सकता है, जिससे बांध की भंडारण क्षमता दोबारा बढ़ जाएगी। इससे भारत न केवल पानी रोकने की क्षमता बढ़ा सकता है, बल्कि बिजली उत्पादन भी ज्यादा कर पाएगा।

साथ ही, जब यह सिल्ट पाकिस्तान की ओर आगे बढ़ेगी, तो यह वहां के कैनाल सिस्टम और बांधों में रुकावट बन सकती है, जिससे पाकिस्तान को दोहरी मार—पानी की कमी और सिल्ट के जमाव—का सामना करना पड़ सकता है।

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हालांकि, यह भी ध्यान में रखना जरूरी है कि सलाल बांध के डाउनस्ट्रीम में भारत का भी काफी इलाका आता है, इसलिए किसी भी प्रक्रिया को सावधानी से लागू करना होगा। भविष्य में यही रणनीति बगलीहार बांध पर भी अपनाई जा सकती है।

भारत को चीन की चेतावनी: पानी की जंग का दूसरा मोर्चा

अब बात करते हैं पानी से जुड़ी एक और चुनौती की, जिसमें अगला खिलाड़ी है — चीन। जिस तरह भारत, आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को नदियों के ज़रिए सबक सिखाने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है, उसी पर प्रतिक्रिया देते हुए पाकिस्तान के करीबी सहयोगी चीन ने भारत को चेतावनी देने का प्रयास किया है।

बीजिंग स्थित Center for China and Globalization के वाइस प्रेसिडेंट विक्टर झ़िकाई गाओ ने भारत को नसीहत देते हुए कहा कि, “दूसरों के साथ वैसा व्यवहार न करें, जैसा आप अपने साथ नहीं चाहते।” उनका संकेत साफ़ था—अगर भारत पाकिस्तान का पानी रोकता है, तो चीन भी भारत में आने वाले पानी को रोकने का विकल्प चुन सकता है।

अब सवाल यह उठता है कि क्या चीन वाकई ऐसा कर सकता है? और अगर हां, तो इसका असर कितना गंभीर होगा? इसका जवाब छिपा है उस नदी में जो भारत के पूर्वोत्तर हिस्से के लिए जीवनरेखा है—ब्रह्मपुत्र

ब्रह्मपुत्र: भारत के लिए चीन की जल-रणनीति का केंद्र

ब्रह्मपुत्र नदी, जो तिब्बत में चेमायुंगडुंग ग्लेशियर से निकलती है, चीन में इसे यार्लुंग सांगपो कहा जाता है। यह नदी लगभग 2900 किलोमीटर लंबी है और तिब्बत के पठार में 2057 किलोमीटर तक बहने के बाद भारत के अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है। भारत से होते हुए यह बांग्लादेश जाती है और अंत में बंगाल की खाड़ी में मिलती है।

भारत में प्रवेश से ठीक पहले, यार्लुंग सांगपो एक तेज यू-टर्न लेती है, जिसे “ग्रेट बेंड” कहा जाता है। यही वह रणनीतिक स्थान है जहां चीन दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्टGreat Bend Dam—बनाने की तैयारी में है।

चीन का पानी को हथियार बनाने का इतिहास

तिब्बत क्षेत्र में यार्लुंग सांगपो और उसकी सहायक नदियों पर कई बांध पहले से बन चुके हैं, और अनेक निर्माणाधीन हैं। लेकिन सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना है मेडॉग काउंटी में बन रहा 60,000 मेगावाट क्षमता वाला डैम — जो दुनिया के सबसे बड़े थ्री जॉर्जेस डैम (चीन द्वारा ही निर्मित) से तीन गुना ज्यादा ताकतवर होगा।

इससे साफ है कि चीन पानी को केवल संसाधन नहीं, रणनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है — और भारत के लिए यह चिंता का विषय है, खासकर पूर्वोत्तर राज्यों की जल सुरक्षा को लेकर।

ब्रह्मपुत्र पर चीन की चाल, भारत की चिंता

यार्लुंग सांगपो जब अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है, तो उसे पहले सियांग, और आगे चलकर ब्रह्मपुत्र नदी कहा जाता है। चीन द्वारा इस नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने की योजना से भारत में गंभीर चिंता जताई जा रही है। आशंका है कि इससे चीन को पानी रोकने और छोड़ने का नियंत्रण मिल जाएगा — जिससे वह अपनी जरूरत के हिसाब से पानी रोक सकेगा और अचानक छोड़े गए पानी से भारत में बाढ़ की स्थिति पैदा कर सकता है।

चीन पर भरोसे की कमी इन आशंकाओं को और गहरा करती है, विशेषकर तब जब ब्रह्मपुत्र बारिश के मौसम में पहले से ही विकराल रूप लेती है। इतना ही नहीं, यह परियोजना नदी के पूरे इकोसिस्टम और जैव विविधता को भी प्रभावित करेगी।

एक और गंभीर मुद्दा यह है कि चीन 2022 से ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों से जुड़े हाइड्रोलॉजिकल डेटा भारत को देना बंद कर चुका है, जबकि ये आंकड़े—जैसे जल स्तर, वर्षा की मात्रा और नदी का प्रवाह—बाढ़ की चेतावनी और जल प्रबंधन के लिए बेहद जरूरी होते हैं।


क्या चीन भारत का पानी रोक सकता है?

ब्रह्मपुत्र नदी भारत के छह राज्यों—अरुणाचल प्रदेश, असम, नागालैंड, मेघालय, सिक्किम और पश्चिम बंगाल—से होकर बहती है। सेंट्रल वॉटर कमीशन के अनुसार, ब्रह्मपुत्र का लगभग 60% जल भारत में वर्षा से आता है, जबकि 40% पानी तिब्बत से। भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र बारिश से समृद्ध है, लेकिन फिर भी नदी के ऊपरी हिस्से में पानी की कमी का असर नीचे के इकोसिस्टम और आजीविका पर पड़ सकता है।


भारत की रणनीति: जवाब में देश का सबसे बड़ा बांध

चीन की बांध नीति को “वॉटर बम” कहे जाने की एक बड़ी वजह यह भी है कि अगर वह अचानक अपने जलाशयों से पानी छोड़ दे, तो भारत में भयानक बाढ़ आ सकती है। ऐसे किसी खतरे का जवाब देने के लिए भारत भी तैयारी कर रहा है।

अरुणाचल प्रदेश के अपर सियांग ज़िले में देश का सबसे बड़ा बांध बनाने की योजना पर काम चल रहा है। इस बांध की संभावित क्षमता 11,000 मेगावॉट होगी और यह करीब 9 अरब घन मीटर पानी स्टोर कर सकेगा। इससे बिजली, पीने के पानी और सिंचाई की ज़रूरतें पूरी की जा सकेंगी। हालांकि, पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील इस क्षेत्र में बांध निर्माण को लेकर विरोध भी तेज़ है।

भारत और चीन के बीच 2006 से एक Expert Level Mechanism (ELM) भी काम कर रहा है, जिसके तहत चीन को ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों से जुड़ी जल स्तर संबंधी जानकारियाँ साझा करनी होती हैं—हालांकि हाल के वर्षों में इस पर अमल नहीं हुआ है। with AI support

 

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