Editor’s Desk
Ali Aadil Khan
लोकतंत्र में वोटर का आदर बस मतदान तक ,अब सेवक का बजेगा डंका
चार दिन की चांदनी फिर अँधेरी रात — नारों , वादों , इरादों और तानों के बाद लोकतंत्र का पर्व समाप्त , अगली बार छले जाने का करो इंतज़ार
क्या भारत गणतंत्र या लोकतंत्र देश है ? अब कुछ लोग कहेंगे , यह क्या बात हुई हम सब जानते हैं , की हम लोकतान्त्रिक देश में रहते हैं ,,,,हाँ काग़ज़ों में जिस तरह संविधान है उसी तरह हमारा देश भी काग़ज़ों में गणतंत्र या लोक तंत्र देश है .हर वर्ष गणतंत्र दिवस मनाया भी जाता है …. वैसे लोकतंत्र किसे कहते हैं ये बात देश में कितने प्रतिशत लोग जानते हैं ?
चलो पहले कम से कम परिभाषा तो समझ ही लें . वैसे जान्ने वालो के लिए यह आम बात हो सकती है , किन्तु बहुत से लोगों के लिए लोकतंत्र की परिभाषा वाक़ई नई बात होगी .
लोकतन्त्र की परिभाषा के अनुसार यह “जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन है”। क्या वाक़ई जनता का शासन है ? दरअसल अलग-अलग विचार धाराओं के शासन काल और परिस्थितियों में अलग-अलग नज़रियों से इसको अमल में लाना हमारी राजनीती का चलन बन गया है ।
यूँ तो लोकतन्त्र के सन्दर्भ में हमेशा से ही ऐसा रहा है कि कभी भी संविधान पर पूरी तरह से क्रियान्वयन नहीं हुआ है ।लेकिन पिछले लगभग दशक से राष्ट्रवाद , लोकतंत्र और संविधान का ढोंग तो है लेकिन सच्चाई यह है की इन दोनों नामों को मुर्दा लाश की तरह ढोया जा रहा है , आप जानते ही हैं लाश के कर्यक्रम की जल्दी भी होती है . शायद यह बात कुछ लोगों को अजीब लगे .लेकिन यह सच है कि आज लोकतंत्र और संविधान सिर्फ़ नाम का बचा है जो कुछ दिन के बाद शायद इतिहास बन जाएगा क्योंकि नया इतिहास लिखने की बात सत्ता के गलियारों में आम है .
अच्छा मैं आपसे पूछता हूँ कि दुनिया में एक सेवक ऐसा बताएं जो अपने दिन के कामों का बखान करे और फिर शाम को मालिक से कहे की साहिब हमको अपना ATM Card दो , इसपर अगर मालिक इंकार कर दे तो वो नौकर कहे , मालिक तेरे लिए हमने खाना बनाया , परोसा , तेरे घर की देख भाल साफ़ सफाई किया , चौकीदारी की और तू हमको बैंक का ATM नहीं दे रहा बड़ा नमक हराम है रे तू , बड़ा गद्दार निकला रे तू हमारे मालिक .
मालिकों की पंचायत में एक सेवक कह रहा है कि देखो फलां गॉंव कि मालिकन ने कहा की मैं तो अपना वोट अपने नौकर को ही दूंगी क्योंकि वो मुझे रोटी और सब्ज़ी बनाकर खिलाता है मेरे कपड़े धोता है , घर की चौकीदारी करता है . अरे इसमें कौनसी नई बात है ? मालिकन ने नौकर को मज़दूरी दी और नौकर ने रोटी सब्ज़ी बनाकर परोस दी , कपड़े धोये चौकीदारी की . सेवक ने अपना काम किया और मालिकन ने अपना फ़र्ज़ निभाया .
लोकतंत्र इसी को कहते हैं , जहाँ प्रधान मंत्री और उसकी पूरी कैबिनेट सेवक की हैसियत से अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाती है , और जनता अपने अपने कामों में इंसाफ़ और ईमानदारी से मसरूफ़ रहते हुए देश को चलाने में अपना किरदार अदा करती है . लोकतंत्र में जनता अपने सेवक की हर हरकत पर नज़र रखती है. जहाँ भी सेवक को ग़ाफ़िल पाती है तुरंत उसको टोकती है , लेकिन यह जभी मुमकिन होता है जब जनता जागरूक हो , साक्षर हो , निडर हो , निष्पक्ष हो और अपने देश के प्रति वफ़ादार हो .थोड़े से फ़र्क़ के साथ इसी को ख़िलाफ़त भी कहते हैं .
यहाँ मामला उल्टा है , सेवक ,जनता की activities और दिन चर्या पर पहरा लगाता है , Phon taping कराता है ,पेगासस का ख़ौफ़ दिखता है , जनता को क्या खाना है , क्या पहनना है , कहाँ जाना है क्या पढ़ना है यह भी आपका सेवक तय: करता है जनता को आत्मनिर्भर के नाम पर बे यारो मददगार छोड़ता है .गन्ने से पेट्रोल , गंदे नालों से रसोई गैस और गोबर का कारोबार कराता है , सेवक सूट बूट में घूमता है और देश के ग्रेजुएट से बूट पालिश कराता है . सेवक भिकारी बनकर आता है और तिजोरियां भर लेता है , जबकि जनता लगातार ग़रीबी का शिकार होती जा रही है .
अब आप ही बताओ क्या यह लोकतंत्र है या लूटतंत्र है ? यह जनता का राज है या सेवक का राज है ? चुनाव ख़त्म लोकतंत्र भी ख़त्म , अब जनता ग़ुलाम और सेवक राजा .आप अपना ATM कार्ड सेवक को दे चुके हो यानी वोट , अब पांच वर्षों तक रहो भिकारी . इसी लिए कहता हूँ वोटर ग़ुलाम है , जबतक वो खुद अपने अधिकार और अपनी ज़िम्मेदारी को न समझे .