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बिहार के छपरा जिले में जहरीली शराब पीने से 24 घंटे के अंदर 20 लोगों की मौत

बिहार के छपरा जिले में जहरीली शराब पीने से 24 घंटे के अंदर 20 लोगों की मौत

31 पहुंची मरने वालों की संख्‍या, राजनीत‍ि तेज, नीतीश को आया भाजपा पर गुस्‍सा

बिहार में छपरा के मशरक थाना क्षेत्र में मरने वालों की संख्‍या 31 हो गई है। बताया जा रहा है क‍ि ये सभी मौतें जहरीली शराब पीने से हुई हैं। पीड़‍ितों के पर‍िवार वाले देसी शराब पीने की बात कह रहे हैं। इनका इलाज करने वाले डॉक्‍टर्स का भी मानना है क‍ि शुरुआती तौर पर ऐसा लगता है क‍ि बीमारी और मौतों की वजह जहरीली शराब है।

प्रशासन स्‍पष्‍ट तौर पर यह नहीं कह रहा, लेक‍िन आशंका से इनकार भी नहीं कर रहा है। 13 से 15 तारीख के बीच ये सभी मौतें हुई हैं। छपरा सदर अस्पताल में अभी भी कम से कम आधा दर्जन लोग गंभीर हालत में भर्ती हैं। दो दर्जन से ज्‍यादा लोग कई न‍िजी अस्‍पतालों में इलाज करवा रहे हैं। ऐसे में आशंका है क‍ि मौत का आंकड़ा और बढ़ सकता है।

मरने वालों में ज्‍यादातर गरीब और मजदूर हैं। अस्‍पताल में कई मरीजों ने जो जानकारी दी है उसके मुताब‍िक वे अक्‍सर शराब पीते हैं और उन्‍हें गांव में ही शराब म‍िल जाती है।

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 सरकार ने क्या एक्शन लिए अब तक

मशरक के थानेदार रितेश मिश्रा और चौकीदार बिकेश तिवारी को निलंबित कर दिया गया है। SDPO पर विभागीय कार्रवाई के साथ-साथ उनका तबादला क‍िया जा रहा है। सरकार ने मामले की जांच के ल‍िए एसआईटी बनाई है। एसआईटी का नेतृत्‍व सोनपुर एएसपी अंजनी कुमार को द‍िया गया है। 20 लोगों को ह‍िरासत में लेकर पुल‍िस पूछताछ कर रही है।

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डर के कारण हुई ज्यादा मौत, समय से अस्पताल पहुंचते तो बच सकती थी कई जानें

बिहार

अस्पताल के एक सीनियर डॉक्टर ने बताया कि इनमें कई मरीजों की जान बच सकती थी, लेकिन शराब बंदी के डर और पुलिस स्टेशन के बगल में हॉस्पिटल होने के कारण डर से कई लोग हॉस्पिटल तक पहुंचे ही नहीं।

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वे शरीर में फैलते जहर को बर्दाश्त करते गए या घरेलू नुस्खे अपनाते गए। जब स्थिति कंट्रोल से बाहर होने लगी तब वे अस्पताल पहुंचे। इसके कारण लोगों को बचा पाना मुश्किल हुआ। अस्पताल प्रबंधन की माने तो अगर इस तरह के नंबर का अंदाजा होता तो इलाके में जाकर कैंप लगाया जा सकता था।

कई शवों का बिना पोस्टमार्टम कर दिया अंतिम संस्कार

मौत का ये आंकड़ा सरकारी नंबर से ज्यादा है। इलाके के लोगों की माने तो मंगलवार रात से ही मौतें होने लगी थी। जो थोड़े भी सामर्थ्य थे वे मरीज को लेकर बड़े अस्पताल चले गए। वे कहीं भी सरकारी रिकॉर्ड में नहीं हैं। वहीं पुलिस की दहशत के कारण कई परिजन शवों का बिना पोस्टमार्टम कराए घर से ही अंतिम संस्कार करा दिए।

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