सबसे पहले शाम यानि सीरिया के बारे में नबी स.अ.व् . की एक हदीस कोट करता चलूँ ,
मोहम्मद स.अ.व्. ने फ़रमाया ,उसका मफ़हूम है कि “सरज़मीं ए शाम में एक बादशाह होगा जो ऊपर से मुस्लमान और अंदर से काफिर(रब का नाफरमान) होगा और वो काफिरों , मुशरिकों का हामी होगा वो ज़ालिम होगा उसके खिलाफ मुल्क ए शाम के मुसलमान उठ खड़े होंगे और उसके खिलाफ ग़ोता नामी एक क़स्बे से तहरीक(आंदोलन)शुरू होगी ,
मोहम्मद स.अ.व्. ने फ़रमाया यह ग़ोता नामी क़स्बा मुसलमानो का मेहफ़ूज़ खेमा शुमार होगा और शाम में यह जंग, ख़ाना जंगी (civil war ) में बदल जायेगी , शाम के इर्द गिर्द के देशों की सरहदें ख़त्म होने लगेंगी और रफ्ता रफ्ता यह जंग , जंग इ अज़ीम या (तृतीये विश्व युद्ध ) में बदल जायेगी और इन कमज़ोर , निहत्ते और मज़लूम और मुख्लिस मुसलामानों को फ़तेह (जीत ) हासिल होगी और उसके कुछ वर्षों कि कड़ी आज़माइश और क़ुरबानी के बाद पूरी दुनिया में मुसलमानो का ग़लबा होगा ”
यहाँ एक बात याद दिलाने की यह है की जब बात मुसलमान की होती है तो उसका मतलब वो लोग होते हैं ” जो एकईश्वरवाद यानि तौहीद पर यक़ीन रखते हैं , ईश्दूत यानि पैग़म्बर के बताये रास्ते पर चलते हैं , इन्साफ और अम्न को पसंद करते हैं और ज़ालिम का विरोध और मज़लूम की हिमायत करते हैं , प्रभु ( रब ) की बनाई (मख्लूक़) या हर एक जीव से प्यार करते हैं , नाहक़ किसी को नहीं सताते हैं , इंसानियत से प्यार करते हैं “इन्ही को मुस्लमान कहा जाता है ,, और जो ऐसा न करे वही काफिर है .
याद रहे सिर्फ गोश्त खाने वाले , ज़ुल्म करने वाले ,लोगों का माल हड़पने वाले दिखावे का लिबास और चेहरा बनाने वाले , पड़ोसियों को सताने वाले , मिस्कीनों और यतीमों का माल खाने वाले लोगों को मुस्लमान नहीं कहा जाता ..
“मुहम्मद स.अ.व्. ने आगे फ़रमाया शाम की सर ज़मीन की यह जंग दुनिया में इस्लाम के ग़लबे की पहली कड़ी होगी और दूसरी कड़ी खुरासान(अफ़ग़ानिस्तान और सरहदी क़बाइली इलाक़े ) की सर ज़मीन का लश्कर है” याद रहे यहाँ खुरासान में जंग का ज़िक्र नहीं बल्कि लश्कर का ज़िक्र किया गया है जबकि अफ़ग़ानिस्तान पिछले 35 वर्षों से दुनिया की फौजों का मुक़ाबला करता आरहा है और जंगों की मुश्किलें और तजुर्बे झेल रहा है …
यहाँ एक दूसरी हदीथ (मुहम्मद स.अ. व. का फरमान ) का हवाला देते चलें की आप स. अ. व. ने फ़रमाया जिसका मफ़हूम है की एक वक़्त आएगा जब दुनिया की तमाम क़ौमे मुसलमान के खिलाफ एक दुसरे को ऐसे बुलाएंगी जैसी लज़ीज़ खानो के दस्तरखान पर बुलाया जाता है , और वो मुसलमानो के खिलाफ इकठ्ठा होजाएंगी , तो किसी सहाबी ने पूछा की या रसूलुल्लाह क्या उस वक़्त मुसलमानों की तादाद कम होगी , आपने फ़रमाया नहीं ,बल्कि उनके दिलों में वहन की बीमारी पैदा होजायेगी , फिर किसी ने पूछा ये वहन क्या है तो अपने फ़रमाया यह एक बीमारी है जिसमें दुनिया से मोहब्बत और मौत का खौफ दिलों में पैदा होजाता है .
तारीख के पन्ने पलटने और हदीसों के अध्यन से यह भी पता चला के बाबुल यानि इराक़ के बादशाह बख्त ए नज़र ने येरुशलम पर हमला किया और 6 लाख यहूदियों का क़त्ल किया और 6 लाख गिरफ्तार कर लिए गए इसके बाद जेरुसलम 150 से 200 वर्ष तक वीराना पड़ा रहा .
टाईकस रूमी नामी के एक दुसरे बादशाह ने सन 70 ईस्वी में बनी इसराइलियों यानी यहूदियों पर हमला किया और डेढ़ लाख यहूदी एक दिन में क़त्ल किये गए ।यानि यहूदियों पर ये कहर बरसता रहा यहाँ तक की दुनिया के हर खित्ते से या तो इनको निकाला गया या गिरफ्तार किया गया नहीं तो क़त्ल करदिया गया , यहाँ सोचने की बात यह है की इनका क़ुसूर किया था , दरअसल ये क़ौम अपने रब की चहीती क़ौम में से हुआ करती थी और रब ने इनको दुनिया की सारी दौलतें , हुस्न और औलाद से मालामाल किया था लेकिन यह क़ौम हरदम अपने रब की न फ़रमानियों (अवहेलना) में विलीन रहती थी ,जिसकी वजह से इसको सजा के तौर पर क़त्ल किया जाता रहा ।
बताया जारहा है मुसलमानो पर भी ठीक वही ज़ुल्म होंगे जो बनी इजराइल क़ौम यानी यहूदियों पर हुए थे .उसकी वजह बताई जारही है कि यह सब मुसलमानों की बदआमाली की वजह से ही होगा .
सूरह दुख्खान आयत न. 10 और 11 में क़यामत की अलामतों में से एक अलामत ब्यान की गयी है जिसमें चारों तरफ धुआं ही धुआं होगा , जो पिछले दिनों हमको दिल्ली में भी देखने को मिला .हमारा मानना है कि वह भी आसमानी अज़ाब ही था जो एक अलार्म भी है .
“हज़रात हुज़ेफा रज़िअल्लाहु ताला से रिवायत है की एक रोज़ हम क़ियामत के बारे में ज़िक्र कररहे थे , इसी दौरान आप सल्ललाहु अलैहि वस्सलाम तशरीफ़ ले आये और पूछा क्या कररहे थे हमने कहाँ क़ियामत का ज़िक्र कररहे थे आपने फ़रमाया याद रखो क़यामत जब तक नहीं आसकती जबतक तुम 10 निशानियां न देख लो , जिनमें से दज्जाल और आसमान से धुंए का छा जाना भी आपने ज़िक्र किया (सहीह मुस्लिम )
याद रहे अल मरहमतुल कुबरा या अरमेडोगोंन की जंग इसको ईसाई मत के अनुसार क़यामत की निशानी ही कहा गया है जो सीरिया से ही शुरू होगी .
यह भी याद रहे की आर्मेगैडन और ज़ोर दार चीख को भी क़यामत कि निशानियों में ज़िक्र किया गया है .चीख का मतलब सूर का फूँका जाना है , और कुछ विचारक इसको जंगी जहाज़ों के शोर और एटॉमिक हत्यारों के शोर से भी जोड़कर देख रहे हैं ,क़यामत की निशानियों में यह भी है की दुनिया की सत्ता पर अहमकों ,मूर्खों , अज्ञानियों , जाहिलों और मुनाफ़िक़ों का क़ब्ज़ा होजायेगा (मसनद अहमद )
एक और हदीथ का मफ़हूम यह भी है “क़यामत तब तक क़ायम नहीं होगी जब तक दुनिया की क़यादत (सत्ता) सबसे कमीने लोगों के हाथ न चली जाए .”
माज़ बिन जबल रिवायत करते हैं की बैतूल मक़्दस का आबाद होना मदीना की वीरानी है ,और मदीना की वीरानी जंग इ अज़ीम का होना है , और जंग ए अज़ीम का होना कुस्तुन्तुनिया (इस्ताम्बुल) का फ़तेह होना है , और कुस्तुन्तुनिया का फ़तेह होना दज्जाल के आने का सबब है , एक रिवायत है की जब लोग मदीना के पास से गुज़रेंगे तो कहेंगे कि कभी यहाँ भी लोग रहा करते थे , यहाँ तक की शहर के सभी निशान मिट चुके होंगे , और इलाक़ा वेह्शी जानवरों से आबाद हो जाएगा ..।।
आज जो भी हालात सीरिया में हैं वो इंशाल्लाह हक़ और इन्साफ की जीत का पेश खेमा है ,ईमान वालों कि कामयाबी कि बशारत है , इससे घबराने की ज़रुरत नहीं है यह मशीयत ए इलाही है नबी की पेशनगोई है लेकिन ज़रुरत इस बात की है कि तुम्हारे रब कि जिन आमाल पर पकड़ आती है उनसे बचने कि पूरी कोशिश कि जाए और जिन आमाल पर अल्लाह के इनामात का वादा है उनको अपनी ज़िंदगी में लाने कि कोशिश कि जाए , साथ ही उम्मत के मासूमों और मज़लूमों के लिए दुआ का एहतमाम हो और पूरी इंसानियत के साथ एहसानात का मामला किया जाए और तमाम इंसानोको जहन्नुम से बचाने कि मेहनत होनी चाहिए ,उम्मीद है कामयाबी मिलेगी , बस ख्याल इसी बात का रहे कि किसी का दिल न टूटे और किसी के साथ ज़ुल्म न हो क्योंकि वो सबका रब है और नेकी बड़ी का फैसला और बदला तो आखरत या परलोक में ही मिलेगा .