राम मंदिर मुद्दा अब किसकी मिलकियत ,मुद्द्दों की नीलामी

Ali Aadil Khan (Editor in Chief)
अयोध्या विवाद में मिलकियत मंदिर की है या मस्जिद की यह तो अदालत में है , और वहीँ से तै होना भी चाहिए ,किन्तु राम मंदिर मुद्दा शायद नीलाम होगया है , जबकि हमारी मान्यता है की आस्था से जुड़ा कोई भी मुद्दा नीलाम नहीं बल्कि हल होना चाहिए , यदि यहाँ मंदिर बनने से देश में शांति और अम्न स्थापित होता हो तो यह जल्द हल होना चाहिए । हालाँकि शांति और सद्भाव के लिए मंदिर नहीं मुद्रा की ज़रुरत है ,शिक्षा और सेहत की ज़रुरत है जबकि जनता मानसिक बीमार हो चली है ।
राजनीती का भूत अब तो उतरने को ही तैयार नहीं है ।देश में लगातार चुनावों का माहौल यदि सिर्फ नेताओं के ही हद तक ही रहता तो ठीक होता लेकिन चुनावों के साथ आम जनता की बढ़ती रुचि अब तो चिंता का विषय लगती है ।जनता का काम काज , नौकरी , सुविधा , सुरक्षा , सेहत ,शिक्षा सब ख़त्म अब चर्चा सिर्फ चुनावों में जीत और हार की ,हिंदू और मुस्लमान की , पाकिस्तान और हिंदुस्तान की ।
चलो अगर चुनाव किसी अच्छे नेता या विचार धारा के Promotion की होती तो आम जनता की चुनावी भागीदारी समझ आती या सही मान ली जाती ,मगर अब तो राजनीत नफरत की , द्वेष की , लड़ने लड़ाने की , मार काट और असहिष्णुता की रह गई है ।जो देश को निगल सकती है ।
देशअभी 23 मई को ही जनता का करोड़ों अरबों रुपया खर्च करके लोकसभा चुनाव से फ़ारिग़ हुआ ही है कि अब देश के कई राज्यों में
विधान सभा चुनावों कि बिसात बिछने लगी , राजनितिक रैलियों और सभाओं और मुद्दों को गरमाने का सिलसिला शुरू होगया । आपको याद होगा राम मंदिर से लेकर और पुलवामा हमले तक जितने भी मुद्दे थे वो सब रातनीतिक लाभ के लिए थे ।
अगर मंदिर मुद्दा या गोकुशी का मुद्दा आस्था का होता तो देश में मंदिर बन गया होता और गाये को राष्ट्र पशु घोषित कर दिया गया होता ,देश में आये दिन हज़ारों मंदिरों का निर्माण होता है और होना चाहिए क्योंकि भारत में अगर साकार पद्धति की पूजा की वेवस्था नहीं होगी तो क्या सऊदी में होगी ? इसके अलावा पुलवामा पर अटैक में मरने वालों का बदला लेने के लिए पाक को तहस नहस कर दिया होता , तो बात समझ आती ,लेकिन ऐसा अभी तक जनता को देखने नहीं मिला ।दरअसल आस्थाओं का यहाँ सियासीकरण होता है धार्मिकरण नहीं ।
आज देश में जिस बहुमत के साथ सत्ता धारी पार्टी आई है इसके बाद देश में विकास ,समृद्धि ,सद्भाव और ख़ुशी का माहौल होना चाहिए था , किन्तु माहौल इसके विपरीत भय ,खौफ और बेचैनी का देखने को मिल रहा है , देश की जनता की एक बड़ी संख्या चिंता , बेरोज़गारी , गिरती सेहत , बढ़ती मंहगाई और अविश्वास के माहौल में सेहमी हुई है , मुझे देश की जनता में सहमापन देखकर एक तूफ़ान की आहट सुनाई देती है
जनता में सरकार के तईं बढ़ते अविश्वास से और देश में सत्ता के भिखारियों के बढ़ते अड़ियलपन ,दिखावा ,अहं व् स्वार्थ के चलते दुनिया के उन देशों की तस्वीर मेरे सामने घूम रही है जो इस बीमारी के पिछले 2 दशकों में शिकार हुए , जहाँ लहलहाते खेत , खूबसूरत और हसीं इमारतों के दृश्य , शानदार और काली चौड़ी सड़कों का जाल , कल कारखाने ,और देश वासियों के मुस्कुराते हसीं चेहरे आज मलबे के ढेर में बदल चुकी हैं , सूनी पड़ी सड़कों और जगह जगह जली हुई इमारतों और वाहनों के पहाड़ उन देशों के हुक्मरानो की ना इंसाफ़ी , ऐश परस्ती और नफ़्स परस्ती की खौफनाक तस्वीर पेश करती हैं ।
आओ बढ़ते हैं देश के राज्यों में विधान सभा चुनाव के माहौल की ओर
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आम तौर पर चुनाव परिणामों के बाद उद्धव ठाकरे एकवीरा देवी के दर्शन के लिए जाते हैं, लेकिन इस बार वो अयोध्या जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि उद्धव भाजपा को इसके ज़रिये एक राजनीतिक संदेश दे रहे हैं , की अब राम मंदिर मुद्दा हमारा होगा , अब हम इसकी कमाई खाएंगे , कम से कम महाराष्ट्र में तो राम मंदिर हमारी सरकार बनवा ही सकता है भले मंदिर बने ना बने ।
आपको याद होगा या होसकता भूल गए हों , लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा से गठबंधन का ऐलान होने से पहले शिवसेना भाजपा पर भी हमलावर थी और उस वक़्त पार्टी के नेता अपने भाषणों में लगातार राम मंदिर का मुद्दा उठा रहे थे। पार्टी की ओर से ‘हर हिंदू की यही पुकार, पहले मंदिर फिर सरकार’ जैसे नारे दिए गए थे। अब शिवसेना अध्यक्ष से यह कौन पूछे की तुम्हारा नारा उलट गया ‘हर हिन्दू की है तक़दीर , पहले सरकार फिर मंदिर ‘ ।
उस वक़्त ख़ुद उद्धव ठाकरे ने कहा था, ‘मंदिर बनाएंगे लेकिन तारीख नहीं बताएंगे। राम मंदिर एक जुमला था ठाकरे ने कहा था और अगर यह बात सही है तो एनडीए सरकार के डीएनए में दोष है।’ अब शायद दोष अच्छाई में बदल गया , यही विडंबना है सत्ता के भिखारियों की ।
उधर, पिछले दिनों भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी फिर से केंद्र सरकार से राम मंदिर निर्माण शुरू करने की अपील की।उन्होंने एक ट्वीट को रिट्वीट किया है, जिसमें लिखा है, “प्रधानमंत्री के पास राम मंदिर निर्माण को और टालने की कोई कानूनी अनुमति नहीं है, शुक्रिया :डॉक्टर स्वामी।” अब यहाँ किसी झगडे को टालने के लिए भी क़ानूनी अनुमति की ज़रूरत पड़ेगी यह सुब्रमण्यम से ही पूछिएगा ।
यानी मुद्दे बिकते हैं या नीलाम होते हैं , मुद्दे मंदिर मस्जिद , गुरुद्वारा नहीं बल्कि मुद्दे विकास , सद्भाव , शान्ति , सेहत, शिक्षा , सामाजिक न्याय , और रोज़गार होना चाहिए था , मगर बद क़िस्मती से देश में अब ये मुद्दे नहीं रहे हैं । ऐसे में देश की जनता को समझना यह होगा की इस बुनयादी मुद्दों से कौन पार्टियां जनता का ध्यान भटका रही हैं असल वही देश और जनता की दुश्मन हैं चाहे वो जो भी हों ।Ediror ‘s desk