आपको क्या चाहिए हिन्दू मुस्लिम विवाद या सुकून की रोटी और शान्ति , सबका जवाब वही , अम्न और शान्ति व दो वक़्त की रोटी , मगर देश के लगभग 50 टीवी चैनलों पर तो हिन्दू मुस्लिम विवाद पर ही चर्चा होती रहती है .अब चर्चा की ज़रूरत देश की जनता को है या टीवी चैनलों को यह फैसला आप पर है .
इंसान की फितरत (स्वभाव ) है उसको संवेदनशील और मसालेदार बातों में ज़्यादा दिलचस्पी होती है .विकास , ज्ञान या नैतिकता के विषयों में उसकी रुचि कम होती है .या यूँ कहें की जो मीडिया जनता को परोसती है वो उसका आदि हो जाता है .मीडिया , खास तौर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अवाम को शैतनत या नफरत और संवेदनशील मुद्दों को ही दिखाया है , सद्भाव ,प्यार , आपसी भाईचारा या इंसानियत के प्रोग्राम या चर्चाएं शायद ही कभी दिखाए जाते हैं , अक्सर ज्ञान ,इतिहास ,नैतिकता या सद्भाव के सीरियल , चर्चाएं या फिल्में फ्लॉप होजाती हैं उसकी वजह है जो माहौल बनाया गया है उससे दिल शैतानत वाले प्रोग. की तरफ ही झुकता है .
मज़ीद हमारे नेताओं ने इंसानो को बांटने के लिए जिस शैली और भाषा व विषयों को पसंद किया है वो जनता को बांटने के सिवा कुछ नहीं करते . .
सांप्रदायिक वार्ताओं और मुद्दों ने देश को बर्बादी के सिवा कुछ नहीं दिया और न दे सकता है . देश रफ्ता रफ्ता जिस मोड़ पर पहुँच रहा है वो बहुत विचारणीय , खौफनाक और दयनीय है . विकास की दर लगातार घट रही है ,रोज़गार ख़त्म होरहे हैं , समाज धर्मों और जातियों और लिंग के आधार पर बंटा जा रहा है .शहरों में हिन्दू मुस्लिम कॉलोनियां अलग अलग बनने लगी हैं , एक दुसरे की कॉलोनियों में नोटिस लगाए जाने लगे हैं कि अल्पसंख्यक या बहु संख्यक के किसी व्यक्ति को प्लाट न खरीदने दिया जाए , किराये पर मकान लेने के लिए अपना धर्म और जाती छुपानी पड़ रही है ,यहाँ तक की व्यापार जगत और कारोबारी धंदे साम्प्रदायिकता की नज़र करदिये जा रहे हैं .इस बंटवारे से किसका फायदा है , देश का , जनता का , समाज का या दुश्मन का ? आप बताएं .
देश में बढ़ती सांप्रदायिक मानसिकता देश को लगातार खोकला कररही है और किसी भी दुश्मन से मुक़ाबले के लिए हमारा देश कमज़ोर होरहा है . दुश्मन से मुक़ाबले के लिए आंतरिक एकता , सद्भाव व भाईचारा बहुत ज़रूरी है .जिस देश में अल्पसंख्यक और बहु संख्यक के धार्मिक गुरु और नेता नफरत और सांप्रदायिक ब्यान बाज़ी करने लगें तो आप खुद जानते हैं उस समाज और देश का क्या भविषय होगा , पिछले 3 वर्षों में बढ़ती असहिष्णुता , असहनशीलता और साम्प्रदायिकता के लिए सरकारों को ज़िम्मेदार बनाने से जनता कोई परहेज़ नहीं कर रही .और इस आग में घी का कम कम मीडिया जितना किया है वो किसी से अब छुपा नहीं है , विडंबनात्मक बात यह है जो कल तक अपनी सभाओं में नफरत , भेदभाव , सांप्रदायिक और ज़हरीले ब्यान देरहे थे आज वो इक़्तेदार और सत्ता की कुर्सियों पर ब्राजमान हैं ऐसे में या तो वो अपने वादों से मुकरकर सत्ताधर्म को निभाएंगे या अपनी क़ौम से किये वादों को पूरा करने में देश से दग़ा करेंगे दोनों ही स्तिथियों में वो अच्छा नहीं कररहे होंगे .
देश में विकास स्तर तेज़ी से नीचे आरहा है जिस पर सत्ता पक्ष के कई नेताओं और कई विदेश तथा देशी पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में भी इसपर टिप्पीड़ियाँ आईं हैं और उन्होंने देश में आर्थिक संकट आने का अंदेशा ज़ाहिर किया है . ऐसे में देश में बढ़ता धार्मिक जूनून का पाखण्ड देश को बर्बादी के दहाने पर लाकर छोड़ देगा जहाँ से विकास , अम्न और प्रगति के सभी रस्ते बंद होजाएंगे ,उसके बाद की गयी हर कोशिश नाकाम होगी . Editor’s Desk
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