आम तौर से रमज़ान में लोग रोज़े रखते हैं मगर चुगली खाते हैं , ग़लत बोलते हैं ,ग़लत देखते हैं ,ग़लत सोचते हैं और रोज़े के वक़्त को गुज़ारने के लिए कई तरह के खेल और फ़ुज़ूल कामों में लगे रहते हैं और शाम को जाइज़ ना जाइज़ सब तरह के माल से रोज़ा खोल लेते हैं दिन में नमाज़ों का भी एहतमाम नहीं करते रात को तरावीह और तिलावत भी नहीं करते ऐसे रोजदारों के बारे में आता है की वो भूके गधे की तरह हैं ।
और ऐसे भी मुसलमान हैं जो खुद रोज़ा नहीं रखते और न ही रमज़ान का एहतराम करते हैं उनपर सख्त सजा की खबर है ।दरअसल रोज़ा सबसे बेहतर अमल है इंसान की भूक ,प्यास और कमज़ोरी को समझने का , रोज़ा इसलिए फ़र्ज़ किया गया ताकि तुमको भूके ,प्यासे और कमज़ोरों की तकलीफ का एहसास होसके और उनसे हमदर्दी पैदा हो यानी इंसानियत से हमदर्दी की तरफ बुलाता है रोज़ा ।
और भूका प्यासा रखकर , हमारे बनाने वाले रब की मंशा है की अपने दिल में फ़ुज़ूल खुअहिशात और नफ़्सानी खुअहिशात को मारा जाए । इफ्तार और सेहर में सिर्फ इतना खाया जाए की इबादत और बच्चों और मां बाप की हुक़ूक़ की रियायत की जा सके , साथ ही कुछ कारोबार को भी देखा जासके मगर आजकल की रोज़ेदारों का मामला यह है की सिर्फ खाने की औक़ात (schedule ) बदलते हैं वरना ग़ैर रमज़ान से ज़यादा और अच्छा खाना खाते हैं तो रोज़े का मक़सद हल नहीं होपाता लिहाज़ा यह रोज़दार मुसलमान , रमज़ान से पहले जैसा था वैसा ही रमज़ान की बाद 11 माह रहता है ।लिहाज़ा रब की ख़ास रहमतों से भी दूर ही रहता है ।मगर यह ज़रूर है की ज़िम्मे से एक फ़र्ज़ उतर जाता है , जिसका मक़सद हासिल न होसका हो ।
इसलिए दोस्तों हमको चाहिए की हम रमज़ान के मक़सद और रब की मंशा को समझें और अपने आस पास तमाम इंसानो के साथ हमदर्दी ,ग़म खुआरी ,खबर गिरी और इंसानियत को बढ़ावा दें और अपने रब की ख़ास रेहमत और लुत्फ़ को हासिल करके दुनिया और देश में अम्न ो सलामती का चमन बनावें और अपने खेरे उमम (बेहतरीन उम्मत )होने के लक़ब को सच साबित करके दिखावें ,रब के सामने रातों को रो रो कर अपने मां बाप की और तमाम इंसानियत की बख्शीश करावें और ब्रादरे वतन के लिए एक मिसाल बनके दिखावें की मोमिन की शान क्या होती है, और मोमिन की असल परिभाषा क्या है ।लोगों के इस्लाम की तरफ रुझान में रोड़ा न बनें अच्छे अख़लाक़ ,मामलात और माहौल को क़ायम करके दुनिया को अमन ो मोहब्बत का चमन बनादें, और भाई चारे की मिसाल बनकर मुल्क और दुनिया में अम्न के पैग़ाम को आम करें , मगर अहले वतन से अपील की ” भाई चारे का मतलब यह न होना चाहिए –हम तो उनको भाई समझें और वो चारा हमें । ।
इसका संकल्प (अज़्म) करें और जितना होसके ज़रुरत मंद ,पीड़ितों और मोहताजों के काम आने की कोशिश करें यही असल मक़सद रोज़े और मुसलमान का है ,रब से दुआ है की मुझे भी और तमाम मुसलमानो को रमज़ान का हक़ अदा करने की तौफ़ीक़ अत करे और ख़ुसूसन हमारे मुल्क को और दुनिया को चैन ो अमन का चमन बना दे ..आमीन सुम्मा आमीन ।editor ‘s desk
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