यह वही आग है जिसमें आप भी जलने वाले हैं
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि क़स्बे की घटना इस बात को साबित करने के लिए काफी है की देश को साम्प्रदायिकता के तंदूर में झोंकने की साज़िश लगभग सफल होचुकी है और देश में नफरत का माहौल बनाकर वोटों का ध्रुवीकरण करके सत्ता का सुख भोगने की भूक ने साम्प्रदायिकता के तंदूर को पूरी तरह भड़का दिया है ,यह वही रुद्रप्रयाग है जहाँ 6 अप्रेल 2018 से पहले कभी कोई सांप्रदायिक दंगे कोई खबर नहीं सुनी गयी बल्कि रुद्रप्रयाग के एक निवासी ने बताया कि यहाँ के इतिहास में सिर्फ सांप्रदायिक सोहाद्र ही देखा गया है ,अचानक एक भीड़ ने यहाँ के चैन और अम्न को आग में बदल दिया हम सोच भी नहीं सकते थे .लेकिन अब ऐसा लगता है जो लोग ये समझ बैठे हैं कि नफरत कि इस आग से हम बचे रहेंगे तो अगर इसको बुझाने कि कोशिश न की तो अगला नंबर आप ही का है यह याद रखें , चूंकि जिसका सब कुछ लूट जाता है फिर उसके लिए बड़े से बड़ा जुर्म आसान होजाता है .
एक अजीब बात यह है की अब नफरत और दंगों की आग में झोंकने के लिए किसी नेता के भड़काऊ भाषण की भी ज़रुरत नहीं है बस एक आपत्तिजनक विडिओ या तस्वीर कहीं से भी उठाइये और व्हाट्सप्प या फेस बुक पर डालदें बाक़ी का काम बेरोज़गार भीड़ अपने आप करलेगी जिसको नफरत के सौदागरों ने पहले ही तैयार कर रखा है .जिस तस्वीर या विडिओ को देखकर बेगुनाहों के घर और दुकाने जलाने के लिए दंगाई निकलते हैं वो इस बात की तहक़ीक़ की ज़रूरत नहीं समझते कि इसकी सच्चाई क्या है , या अगर बिलफार्ज मान भी लें कि वाक़या सच्चा है भी तो क्या भीड़ को इस बात का अधिकार है कि वो बजाये मुजरिमों को ढूंढ़ने के , या उनको पुलिस के हवाले करने के , एक ख़ास समुदाय के बेगुनाहों के घरों और दुकानों को आग लगादें , या लूट ले जाएँ .
हादसे की रिपोर्टिंग के दौरान इस बात का भी पता चला कि दंगाई लूट में ज़्यादा रुचि रखते हैं , और ये वही बेरोज़गार दंगाई होते हैं जो जान बूझकर बेरोज़गार रखे गए हैं ताकि चंद काग़ज़ के टुकड़ों की खातिर या दो वक़्त की भूक मिटाने या अपने कपडे और मोबाइल के खर्चे के लिए इंसानो की जान से खेल जाते हैं . और उनकी भूक या ज़रूरतें भी उनको लुटेरा बना देती हैं . हम समझते हैं जो नैजवान अपने कारोबार या नौकरी में व्यस्त हैं वो सब छोड़कर आग लगाने नहीं जाएंगे या लूटमार करने नहीं जाएंगे . तो बेरोज़गारी , बेकारी भी बड़ी वजह इस सब के लिए हम मानते हैं .इसी प्रकार हर ज़िले में बेकारों और बेरोज़गारों की टोली सत्ता और नफरत के पुजारियों के लिए काम करने का जरिया बनते हैं .
और ये नफरत तथा साम्प्रदायिकता के सौदागर किसी एक तरफ नहीं बल्कि लगभग सभी राजनितिक पार्टियों में मौजूद हैं बल्कि पार्टियों ने नफरत फैलाने के लिए पढ़े लिखे नौजवानों के लिए रोज़गार उपलब्ध कराये गए हैं , जिनको बड़ा खूबसूरत नाम दिया गया है पार्टी का IT cell .आज हम बड़े गर्व से कहते हैं की हमारा देश नौजवानो का देश है किन्तु आज देश के जिस नौजवान को आर्थिक , औद्योगिक और कृषि विकास के लिए अपनी कुशलताओं और कीर्तिमान का उपयोग करना चाहिए था वो देश को नफरत की आग में झुलसाने के लिए प्रयोग किया जारहा है .
देश में नफरत के माहौल बनाने के लिए उपयोग किये गए नौजवान का इसमें क़ुसूर कम और सरकारों का ज़्यादा है , क्योंकि खाली ज़ेहन शैतान का घर होता है ,बेरोज़गारी अपराध की मंडी होती है . जिस तरह से हमारे देश में बेरोज़गार नौजवानो की संख्या बढ़ रही है उसके चलते उनका दुरुपयोग होना कोई ताज्जुब की बात नहीं .ये बात दावे से कही जासकती है देश से बेरोज़गार ख़त्म करदिया जाए 80 % अपराध खुद बा खुद ख़त्म हो जाएगा , 14 घंटे मेहनत और काम करने के बाद कौन नौजवान दंगे करने और साम्प्रदायिकता फैलाने जाएगा .
इस सम्बन्ध में सरकारों को serious योजना बनाने की ज़रुरत है , और विपक्ष भी अपना पूरा ध्यान शिक्षा और रोज़गार की योजनाओं पर केंद्रित करे , साथ ही शिक्षा प्रणाली में ख़ास तौर से इतिहास से नफरत के पाठ एक दम निकाल दिए जाएँ , शिक्षा में प्राइमरी लेवल से नैतिकता और सोहाद्र व् आपसी भाईचारे का बाक़ायदा एक घंटा रखा जाए , हमें अफ़सोस है कि योग सिर्फ लोम अनुलोम और कपाल भारती तक समेट दिया गया है , जबकि योग का मतलब ही जोड़ होता है इसके माध्यम से वर्गों , समुदायों , जातियों , प्रांतों को जोड़ने का काम होना चाहिए था तो शायद यह हमारी भारतीय संस्कृति और ऋषि , मुनियों कि परंपरा को दर्शाता और इसका लाभ पूरा देश उठाता , आज का योग तो किसी एक व्यक्ति या बाबा को उद्योगपति या brand ambasaador बनाने भर ही दिखाई देता है .वैसे भी हमारे देश में कई करोड़पति ,अरबपति , और उद्योगपति ऐसे हैं जिनके पत्नी नहीं हैं .