लो अब रीटा भी चलीं हंस की चाल ,कहीं अपनी भी न …..
देश में विभिन्न प्रकार के फ़ितने उभर रहे हैं ,कहीं आतंकी हमलों का खतरा तो कहीं पडोसी देशों की थ्रेट ,कहीं नक्सली हमले तो कहीं माववादियों का आतंक,कहीं दलित समाज पर ज़ुल्म तो कभी मुस्लिम समाज पर प्रहार,कभी ऊना की घटना तो कभी उड़ी का हमला ,वो सब तो चलता रहा और रहेगा किन्तु आजकल तीन तलाक़ को लेकर जो देश में फ़ुज़ूल की बहस छेड़ी गयी है इसपर पूरा मुस्लिम समाज अपने मसलकी इख़्तेलाफ़ भुलाकर न सिर्फ एक होगया है बल्कि लॉ कमीशन को इस मुद्दे पर reject करने की मुहीम चला रहा है ,देश में लगभग 700 से ज़्यादा मिल्ली जमातों ने आह्वान किया है कि मुस्लिम समाज कोई भी ऐसा क़ानून नहीं मानता जो इसके शरई क़ानून से टकराता हो ,मगर देश की सरहदों की हिफाज़त,अमन ओ शान्ति तथा विकासशील कामों में हमेशा की तरह अपनी भागीदारी निभाता रहेगा ।
तीन तलाक़ के मुद्दे को केंद्रीय सरकार और उसके सहयोगी विचार धारा के लोग मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के हनन या ज़ुल्म से जोड़कर पेश कर रहे हैं , जबकि रिपोर्ट यह है की इस मुद्दे पर COURT जाने वाली मुस्लिम महिलाओं की संख्या 1% भी नहीं है .जबकि दूसरी ओर मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण समितियों और ग़ैर सरकारी संस्थाओं का मानना है की सरकार 99 % मुस्लिम महिलाओं को किसी भी सिम्त में उनके अधिकारों के लिए संजीदा नहीं दिखती तो फिर तलाक़ के मामले को लेकर इतनी चिंता किसी षड्यंत्र का पेश खेमा दिखती है ।Actually सरकार की नीति का यह हिस्सा है की अपनी नाकामियों से जनता का ध्यान हटाने के लिए देश में इस प्रकार की चर्चाओं का दौर रहना चाहिए ।
हमारा मानना है कि ऐसे में जब देश पर बाहरी आक्रमण और दुश्मनो का खतरा हो तो सरकार को पहले देश के भीतर सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने वाली योजनाओं और कार्येक्रमों को चलाना चाहिए ताकि देश के सभी वर्ग और संगठन देश की सुरक्षा तथा एकता व अखंडता के लिए जान माल से तैयार रहे ,बात तो सही है किन्तु सत्ता धारी पार्टी की बुनयादी ढाँचे में देश की अल्पसंख्यक व दलित समाज का शोषण व दोहन शामिल बताया जाता है साथ ही हिन्दू राष्ट्र का सपना जिन बुन्यादों पर देखा गया है वो किसी भी सूरत में देश को शक्ति नहीं देगा और न ही विकास को । अगर यह सही है तो ऐसे में मोदी सरकार को , …मोदी सरकार को मजबूरन कहना पड़ता है जो देश में पहली बार प्रचलित हुई प्रथा है , देश व्यक्ति विशेष से नहीं बल्कि सामूहिक कोशिशों और विचारों से चलता है ,….हम कह रहे थे की सरकार को चाहिए की चुनावों में हार जीत की चिंता किये बिना देश और जनता के विकास की फ़िक्र करें और ऐसी नीतियों पर सच्चाई के साथ अमल करें जिससे हरेक नागरिक का भला हो ब्यान और अलंकार की भाषा छोड़ अमल और क्रयान्वियन और “सेवा परमो धर्म “की नीति अपनाएँ जनता सवयं आपको चुन लेगी ।
UP जीतना है दंगे करादो,मंदिर का मुद्दा ज़िंदा करदो , नहीं बल्कि वोट विभाजन की नीति की जगह वोट अभाजन या अवाम को जोड़ने की कोशिश करनी चाहिए और नागरिक प्रेम ,बन्दों के साथ इन्साफ की नीति बनायें यक़ीन माने कोई ताक़त आपको सरकार बनाने से नहीं रोक पायेगी । यह फार्मूला सभी पार्टियों के लिए कारगर होगा।सच है न यह बात या फ़ुज़ूल नज़र आती है ? हाँ लाशों के सौदागरों के लिए यह राये फ़ुज़ूल होसकती है ।
इसी बीच UP से रीता बहुगुणा के BJP में शामिल होजाने की अफवाह जैसी खबर आरही है ।इस खबर से किसको कितना होगा फायदा इसकी अटकलें लग रही हैं ,लेकिन जो रीता बहुगुणा 2000 में समाजवादी से कांग्रेस में शामिल होने के बाद कांग्रेस को कोई सियासी लाभ न पहुंचा सकीं वो BJP के कितना काम आ सकती हैं इस पर चर्चा ज़रूर शुरू होगी ।हालाँकि सियासत की इसी उठा पटक में अलीगढ से BJP नेता मधु मिश्रा ने बिना नाम लिए एक वर्ग विशेष के खिलाफ आपत्तिजनक ब्यान देकर जहाँ सियासी माहौल को गरमा दिया है वहीँ दलित आंदोलन के ठन्डे पड़े अलाव में भी पेट्रोल डालकर भड़का दिया है अब इंतज़ार है माया के प्रहार का की वो क्या ग़लती करती हैं और कैसे BJP पलट वार का खेल खेलती है ।मधु मिश्रा ने कहा की “आज तुम्हारे सर पर बैठकर संविधान के सहारे जो राज कर रहे हैं ,याद करो वो कभी तुम्हारे जूते साफ़ किया करते थे ,आज तुम्हारे हुज़ूर होगये हैं , क्यों , हम बट गए हैं “इस सबके बाद जब उनसे सवाल किया गया की क्या आपने किसी वर्ग विशेष के खिलाफ इस प्रकार का ब्यान दिया है तो बोलीं “नहीं भय्या मैं सर्व धर्म समभाव की राजनीती करती हूँ मेरी कोई भावना किसी वर्ग विशेष को आहत करने की नही थी ”
ऐसे में देश पर आने वाले बाहरी संकट को दूर करने के लिए क्या हमको वास्तव में समभाव,सद्भाव,प्रेम और मोहब्बत का माहौल नहीं बनाना चाहिए ? या यूँ ही राम भरोसे छोड़ दें देश को बर्बाद होने के लिए ।नहीं,,जिस तरह देश में हम सबके बराबर के अधिकार हैं इसी तरह duties भी हैं जो हम सबको निभानी होंगी ग़लती चाहे आम नागरिक करे या बड़े से बड़ा नेता सजा बराबर मिलनी चाहिए । और देश को तलाक़,घर वापसी,बीफ , दलित अत्याचार और रोहित वेमुला जैसे अनेकों मुद्दों की जगह इन्साफ,सद्भाव ,प्यार और मोहब्बत का माहौल बनाने में अपनी शक्ति लगानी चाहिए ।देश को यूनिफार्म सिविल कोड ,धरा ३७१,बाबरी मस्जिद राम जन्म भूमि विवाद ,आर्मी तथा इंडियन एयर फाॅर्स में नौकरी करने वाले मुस्लिम कर्मचारियों और अधिकारियों को दाढ़ी रखने पर पाबंदी को उठाने की जगह विकास,रोज़गार,कारोबार,भ्रष्टाचार उन्मूलन ,बढ़ती कीमतों पर रोक ,बिजली उत्पादन, कृषि के विकास ,देश की सड़कों को बेहतर बनाने ,और हर एक नागरिक को फ्री शिक्षा,स्वास्थ्य ,सुरक्षा जैसे मुद्दों पर काम होना चाहिए ऐसा सभी नागरिकों का मानना है ।editor’s desk
Kafi acha likha hai aapne sir, desh me janta ke dwara chuni sarkaren desh ki hi janta ko aapas me ladane ka kaam kar rahi hen, bhai chara, prem, sadbhawna barha nahi rahi balke khatam kar rahi he, khud aage barh ke usme hissa le rahi he
iske alawa jo jitna bada criminal usko utni hi badi posts dete hen, jitne desh ke bade bade criminals / terrorists unke cases khud ladte hen, china ka samaan mat khareedo janta se kehte hen, aur khud hazaro karod ke saude china se karte hen
doghli siyasat hai, ye desh ke qanun ko hi ghuma dete hen.
Aisa qanun banna chahiye chahiye, jo in sarkaron ko bound kare ke unhone agar nafrat ki baat ki to wo sarkar ya party hi dissolve ho jaye, iske liye koshishen jaari hain
koshish hai insaaf ko zinda karne aur desh mein pyaar ka maahol banane ki. aap sehyog den plsss