BJP को हराने के लिए कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन की रणनीति
सियासत में दोस्ती और दुश्मनी की परिभाषा प्यार और आश्क़ी की कहानियों से काफी अलग रहती है।राजनीति में जहां आखरी समय तक पार्टियाँ एक दूसरे के प्रति नफ़रत या विरोध का आभास जनता के सामने जाहिर करते रह्ते हैं,भले नेता लोग आपस में मस्ती की शाम रोज़ एक ही मैखाने में गुजारते हों ।जबकि इश्क़ की कहानी इसके खिलाफ होती है ।
लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन के बीच कई सीटों पर दोस्ताना संघर्ष देखने को मिल सकता है। हालांकि दौनों तरफ से सुलह का समय लगभग समाप्त होने के संकेत मिल चुके हैं मगर तीसरा ध्रुव अभी भी इस कोशिश में है कि प्रदेश में भाजपा को कमजोर करने के लिए ज्यादातर सीटों पर आपसी सहमति का फार्मूला निकाला जाए।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हम सपा-बसपा को लेकर अडे हुये नहीं हैं। गठबंधन ने हमारे लिए दो सीटें छोड़ीं हें ,जवाब में हमने भी तय किया कि उनके लिए भी कुछ सीटें छोड़ेंगे, लेकिन कई राज्यों के दिग्गज नेता चाहते हैं कि कांग्रेस और सपा-बसपा के बीच समझौते की गुंजाइश बनाई रखी जाए।
गठबंधन में शामिल न होने की सूरत में ऐसी सीटों को चिह्नित किया जाए जहां दोस्ताना संघर्ष संभव है। करीब दो दर्जन सीटों पर इस तरह का रुख अपनाया जा सकता है। सूत्रों ने बताया कि सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। उम्मीद बनी हुई है।
किन नेताओं की कोशिश है जारी
कांग्रेस पर एनसीपी नेता शरद पवार, नेशनल कांफ्रेंस नेता फारुख अब्दुल्ला, टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू के अलावा राजद की ओर से भी लचीला रुख अपनाने का दबाव है।
इसके अलावा पार्टी के भीतर भी बड़ी संख्या में ऐसे नेता हैं जो चाहते हैं कि पूरे देश में गठबंधन ज्यादा से ज्यादा सीटों पर होना चाहिए। भाजपा का उदाहरण देकर पार्टी को नरम रुख अपनाने की नसीहत दी जा रही है। भाजपा ने कुछ राज्यों में अपनी जीती हुई सीटें भी सहयोगी दलों को दी हैं। जो क़ुर्बनी का दर्जा रखती है ।
नफ़रत की राजनीति को हराने की रणनीति पर काम
कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि दिल्ली की तर्ज पर दूसरेे राज्यों में सुलह के लिए कई ऐसे दल अपनी भूमिका निभा रहे हैं जिनका उन राज्यों में चुनाव लड़ने का आधाार नहीं है। उनकी इच्छा है कि भाजपा को किसी भी सूरत में पराजित करने की रणनीति पर काम करना जरूरी है। मतों का विभाजन जितना रोका जा सकता है रोकना चाहिए।
कांग्रेस ने अपनाया लचीला रुख
कांग्रेस के रणनीतिक कार का कहना है कि हमारी भी पूरी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा भाजपा विरोधी दलों के साथ सहमति बनाई जाए । उनका कहना था हम जहां और जितना लचीला रुख अपना सकते हैं अपनाएंगे ,लेकिन दूसरे दलों को भी कांग्रेस की अहमियत समझते हुये सहयोग करना चाहिये ।
सूत्रों का कहना है कि बसपा ने कुछ सीटों को लेकर तल्खी बरकरार रखी, जिसकी वजह से सहमति बनने में दिक्कत आई है। वहीं, कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने हमेशा सपा-बसपा को लेकर नरमी दिखाई है।